Bhawna Kukreti

Abstract

4.8  

Bhawna Kukreti

Abstract

वेटिंग रूम

वेटिंग रूम

5 mins
496


 बारिश की बूंदों ने, दोनों को देर रात उस वीरान नजर आते स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठने को मजबूर कर दिया था। आज अचानक रागिनी को अपने ससुराल किसी कार्यक्रम में जाना था। उसे जो ट्रेन मिली उसका टिकट करा कर वह चली आयी थी।


जयंत के बस में होता तो शायद दोनो, एक साथ , एक ही समय पर एक स्टेशन पर भी ना होते। नफरत ने इस तरह जकड़ रखा था कि कोई कह नही सकता था कि ये दोनों कभी करीबी दोस्त भी रहे होंगे। आज दोनो दो पत्थर के टुकड़ों की तरह एक जगह पर बैठे हुए थे। दोनो के दिल एक दम सर्द थे।


आखिरी बार 2 साल पहले जयंत ने उसे उसकी साफ़गोई पर कहा था कि वो अब उसकी आवाज तक सुन ना बर्दाश्त नही कर सकता। रागिनी हर बार जयंत के गुस्से को शांत रह कर सह जाती थी। लेकिन उस एक आखिरी बार उसने, उसे समझाने की कोशिश की तो जयंत ने उसकी ईमानदारी पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिये। हार कर रागिनी ने जयंत को अलविदा कह दिया। उसके बाद वे फिर कभी एक छोटे से शहर में रहते हुए भी, एक दूसरे से नही मिले।



रागिनी ने वेटिंग रूम में समान रखते हुए बहुत धीमे से कूली से अपनी ट्रेन के प्लेटफॉर्म का पूछा। उसकी ट्रेन 1:35 पर इसी प्लेटफार्म पर आने वाली थी। कूली ने कहा कि वह ट्रेन के समय पर आ जायेगा। जयंत को कुर्सी पर बैठे बैठे नींद आने लगी थी पर नींद अब काफूर थी। जबकि कुछ देर पहले ही उसने अपनी पत्नी को फोन पर उसे 2 बजे जगाने को कहा था । आज वह अपने प्रोमोशन के लिए जरूरी इंटरव्यू के लिए जा रहा था।


रागिनी ने अपना फोन टटोला। बैटरी कम थी, उसने उठ कर अपना फोन चार्जिंग पॉइंट पर लगाया और अपने घर फोन मिला दिया। जयंत ने उसे ऐसा पहले भी करते देखा था और कई बार टोका था। वो बोलने को हुआ पर फिर वहीं कुर्सी पर करवट ले कर , आंखे बंद कर सो गया। रागिनी मुह्फ़ेर कर फ़ुस्फ़ुसाते हुए किसी को समय पर दवा लेने की हिदायत दे रही थी कि चार्जिंग पॉइंट में स्पार्किंग हुई और झटके से रागिनी के हाथ से फोन गिर कर टूट गया। जयंत अपने ठीक सामने लगे शीशे में से पीछे होती घटना देख रहा था। रागिनी ने एक पल उसकी ओर देखा फिर नजरें हटा लीं।

जयंत ने उसका देखना देखा मगर वो चुपचाप वैसे ही पड़ा रहा। रागिनी ने टूटा हुआ मोबाइल समेटा और खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई।


बाहर सब अंधकार में डूबा हुआ था।बारिश की बूंदें अब बहुत हल्की हो गईं थीं लेकिन हवा तेज थी। रागिनी सोच रही थी ,एक समय बातें किये बगैर नहीं रह पाते थे और आज इतनी देर से दोनों अपने-अपने कोने पकड़े हैं।कमरे में जैसे दूसरा मौजूद ही नहीं।



वेटिंग रूम की बत्ती भी फ़लक्चुएट होने लगीं थी। रागिनी ने अपना स्ट्रोली और पर्स उठाया और वेटिंग रूम के बाहर आ कर एक कोने में फुहार से बचती खड़ी हो गयी। जयंत ने उसका इस तरह अंधेरे में बाहर जाना भी इग्नोर किया। वेटिंग रूम की रोशनी खिड़की से छनती बाहर कुछ उजाला कर रही थी।



जयंत ने दो चार बार करवट बदली लेकिन उसे किसी करवट सज नही आ रही थी। वो अपनी बेचैनी का कारण नहीं समझ पा रहा था। रागिनी ने बाहर से कुर्सी की बार-बार चरमराहट सुनी वो समझ गयी कि जयंत बेचैन हो रहा है लेकिन उसने अपने अंदर उठती कसमसाहट को दबाते हुए अपनी घड़ी में समय देखा। अभी 1:35 होने में 10 मिनट थे।



वेटिंग रूम का इकलौता बल्ब फ्यूज हो गया। एकाएक स्टेशन पर घुप्प अंधेरा सा छा गया था। वेटिंग रूम के बाहर कुछ देर को हलचल सी हुई। एक पल को जयंत को लगा जैसे रागिनी ने दबी आवाज में उसे आवाज दी। पर वह अनजान बन कर अंधेरे में कुछ पल वहीं बैठा रहा। कान बाहर की ओर लगे थे पर सिवाय कुछ हल्की सी खड़खड़ाहट के उसे रागिनी की आवाज दुबारा नहीं सुनाई दी।


अनायास ही उसने अपना मोबाइल निकला और टोर्च ऑन किया। काफी देर से बाहर खड़ी रागिनी की कोई हलचल नहीं मालूम पड़ रही थी। जयंत ने अपने मित्र को फोन मिलाया और बात करते हुए बाहर निकल रागिनी के खड़े होने की उल्टी दिशा में टहलकर जाने लगा। कुछ देर बात करने के बाद वेटिंग रूम की ओर लौटते हुए उसने अंधेरे में ही नजरें बचाते हुए रागिनी को देखने की कोशिश की। मगर उसका समान वहां नहीं था और वो भी नदारद थी। उसने स्टेशन पर टहलते हुए कुछ दूरी तक देखा मगर रागिनी कहीं नहीं थी।" अभी तो उसकी ट्रैन भी नही आयी थी।और इस समय उसे वापसी की कोइ बस या रिक्शा भी नही मिलेगा वो ये अच्छी तरह जानती थी, फ़िर किधर चली गयी, अब तक भी जरा भी अकल नही आयी उसे" वो मन मे बोला।



किसी अनहोनी की आशंका ने उसके दिलोदिमाग में पसरना शुरू कर दिया था। उसने फोन में रागिनी का नंबर ढूंढा। तल्खियों के बावजूद रागिनी का नम्बर अब भी उसके फोन पर था। पर जैसे ही मिलाने को हुआ उसे याद आया, रागिनी का फोन गिर कर उसके सामने ही टूटा था। रागिनी की ट्रेन का समय हो रहा था । जयंत ने प्लेटफार्म पर उसे एक दो बार और ढूंढा। मगर वो जैसे हवा में गायब हो गयी थी।


जयंत पोलिस स्टेशन में था। उसी ने पुलिस को फोन करके बुलाया था। पोलिस उस से पूछ रही थी कि वह रागिनी को कैसे जानता है?.रागिनी की लाश स्टेशन के बाहर अस्त व्यस्त हालात में मिली थी। कुछ उच्चके पकड़े गए थे। पूछ ताछ में पता चला कि रागिनी को उच्चको ने पहले ही चुन लिया था। उन सब को लगा कि वह स्टेशन पर अकेली है। उनमे से एक ने अंधेरे का फायदा उठा कर रागिनी को साथ चलने को कहा कि उसकी ट्रैन दूसरे प्लेटफार्म पर आएगी। पर रागिनी को शक हो गया था। उसने जयंत को पुकारने की कोशिश की लेकिन इन सब ने उसका मुह दबा दिया था।



उचक्के ,पोलिस और जयंत के सामने कह "साहब...वह बार-बार वेटिंग रूम की ओर देख रही थी जैसे कि उसका कोई वहां हो। हमारा इरादा उसे मारने का नहीं था साहब , पर वेटिंग रूम से जैसे ही रोशनी सी निकली उसने एक बार और जोर लगा कर फिर से किसी "जयंत " का नाम पुकारना शुरू कर दिया था...और हम लोगों ने घबरा कर, उसका गला घोंट दिया।"


मोर्चरी से लौटते समय जयंत आखिरी बार रागिनी को देख रहा था । वो खामोश पड़ी थी मानो उसकी कही हुई बात का मान रख रही थी,


" मैं तुम्हारी आवाज़ तक सुनना नहीं चाहता।"


विधा- कहानी





Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract