ये क्या था -1
ये क्या था -1


शिवालिक के जंगल में बहुत दूर तक अकेले, बिना बताए चले आने का अजीबोगरीब ख्याल सिर्फ उसे ही आ सकता था।
सुबह के 8 बज रहे थे। रेस्ट हाउस में हलचल मची थी। फारेस्ट गार्ड जीप तैयार कर रहे थे। एक खूबसूरत गठीले शरीर का 40-45 का व्यक्ति कमोफलाज पहने हुए रेस्ट हाउस से बाहर निकल कर इशारों से सबको गाड़ी में बैठने को बोल कर सफारी जीप में ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
"सर मैं ड्राइव करता हूँ आप नेविगेट करें" एक और कमोफलाज पहने युवा ने आते ही कहा ।
कुछ देर बाद जंगल की पगडंडियों पर। तीन जीप जा रहीं थी। तीनों आगे की राह पर मिलते दो राहों पर , अलग अलग दिशा में चल दीं।
इधर जंगली बेर की मिठास को एन्जॉय करते और झींगुर की आवाजों को सुनते कदम कितने अंदर चले आये थे ये पता ही नहीं चला । जंगल और इसकी गूंजती खामोशी हमेशा से उसे जानी पहचानी और अपनत्व का अहसास कराती थी। किस्मत से उसे ईश्वर भी बार बार मौका देते जंगलों के करीब आने का।
अचानक से उसकी नजर एक वल्लरी पर पड़ी। अनजाने आकर्षण से वह उस ओर खींची चली गयी। वल्लरी को छूते ही जैसे एक अद्भुत महक से उसकी हथेलियां भर गयी। कुछ देर उस महक का आनंद लेने के बाद उसे अजीब से दृश्य दिखाई देने लगे। नन्हीं तितलियां और चमकदार गोले उस वल्लरी के आस पास घूमती दिखायी पपड़ने ने लगी। उसने गौर से देखा तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ। बचपन में फेयरी टेल में जैसे दिखाया गया था हूबहू वैसी ही परियां दिखाई पड़ रही थीं। अजीब सा माहौल हो रहा था । जंगल की भुनभुनाहट यह नीरवता में बदल रही थी। फिर उसी नीरवता में धीमे धीमे विचित्र संगीत सुनाई देने लगा। उसे लगा कहीं यह वल्लरी किसी तरह का सुंगंधित स्राव तो नहीं करती जिससे मतिभ्रम होता हो?!
उसने तुरंत वहां से उठना चाहा लेकिन तभी उसे लोगों की बातचीत होती सुनाई दी जैसे कोई बाते करते उसी ओर चला आ रहा हो।
उसने पलट कर देखा पीछे जंगल नहीं था बल्कि एक आश्रम था जहां बहुत विशाल झ
ोपड़ियां बनी थी और उन सब में अंदर से आवाजें आ रहीं थी। वो उठी और उन्हीं की ओर बढ़ चली। उसने फिर पलट कर देखा अब वल्लरी क्या वो जंगल भी भी वहां नहीं था।
उसे लगा जैसे वो किसी रिहायशी जगह पर टेलिपोर्ट हो गयी हो। मगर ये सेटअप किसी गाँव का नहीं था । ये बहुत ही अलग था। उस जगह की हवा में बहुत ताजगी थी। वो सामने दिखती झोपड़ी की ओर बढ़ी।
ये क्या ?? वहां बच्चे लाइन से बैठे हुए थे लेकिन कद में उसके बराबर। सब सिद्धासन में आंख बंद कर बैठे थे। उसने सामने देखा । एक ऊंची जगह पर दैत्य जैसा इंसान बैठा था। उसे बहुत डर लगा की ये क्या जगह है और ये कौन सी जनजाति है जिनका कद इतना बड़ा है कि बच्चे भी औसत कद से काफी बड़े दिख रहे थे। तभी उस दैत्य ने उन बच्चों को कुछ कहा। उसे लगा जैसे वह दैत्य से इंसान ठीक उसके बगल में बैठ के बोला हो । लेकिन वह उससे करीब 40 फ़ीट की दूरी पर था।
उसे यह सब अब डराने लगा। तभी उसके करीब बैठा बच्चा उठा और सीधे उसके शरीर के आर पार होता हुआ उस दैत्य के तरफ चल पड़ा। वो बहुत जोर से चीखी लेकिन आज पास किसी को कोई असर न पड़ा जैसे कि किसी ने उसकी आवाज ही नहीं सुनी हो न ही उसे देखा हो। तभी पीछे से किसी के आने की आहट हुई । अभी वह डर से कांप रही थी लेकिन जैसे उसने पलट क्क्त देखा तो अवाक भी हो गयी। उसने खुद को बेहद ऊंचे कद में देखा। जिसके हाथ में कई सारी हरी और सूखी घास थी जिसे उसी वल्लरी से बंधा हुआ था जैसी उसे दिखाई पड़ी थी। उसका वह प्रतिरूप भी उसके बीचों बीच से होता हुआ उस दैत्य की ओर बढ़ चला।
उसे समझ आ गया कि या तो यह कोई हलुसिनेशन है या ये कोई लीला हो रही है। वो भी चुपचाप उसी दैत्य की ओर बढ़ गयी। उसका प्रतिरूप दैत्य के ठीक पास बैठ गया। ये सब आपस में उन घास को लेकर कुछ चर्चा करने लगे। उसने उस वल्लरी को फिर से छुआ। अचानक उसके प्रतिरूप ने उसके हाथ पर चपत लगाई। वो हैरान रह गयी। क्या तुम मुझे देख सुन पा रही हो? उस प्रति रूप ने उसकी ओर देखा और मुस्करा दी और आंखों से चुप रहने का इशारा किया.....
क्रमशः