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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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विलाप

विलाप

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यहां कोई आसमान से नहीं टपकता आपकी मदद के लिए। आपके या आपके अपनो के कर्म होते हैं। और ये भी कि आपकी जिंदगी जिस मुकाम तक जानी होगी आप वहां तो पहुंचेंगे ही मगर किस तरह से क्या इस बारे में कभी ख्याल आया। आप इस गद्य को पढ़ कर मुझसे असहमत हो सकते है या आपको अटपटा लग सकता है कि क्या और क्यों लिखा ये मगर पढ़ लीजिएगा। कभी कभी आड़ी तिरछी रेखाएं भी कुछ अर्थ लिए रहती हैं।

 इस छोटे से समय अंतराल में मैंने जाना (मैंने किनके लिए क्या किया, क्या नहीं किया इसके बारे में छोड़ कर) कि मेरे परिवार के दो महत्वपूर्ण लोगों (माता-पिता) ने निस्वार्थ भाव से अपनी समझ-स्तर पर जो पुण्य (सिर्फ दान या पूजा पाठ नहीं, निस्वार्थ सहयोग)  किया उसका फल मुझे, मेरे अन्य सहोदरों को जरूर मिल रहा है। मगर शायद उनका समय या उस समय के नैतिक मूल्य विकास की आंधी से अछूते रहे। ऐसा नहीं कि विकास तब नहीं हो रहा था लेकिन मानवीय संवेदनाओं में विकास अधोमुखी नहीं था।

   आज के दौर में जहां कृष्णा की गीता का एक अर्थ/ उपदेश " जीवन में देने पर ही प्राप्ति होगी" का अर्थ हम सब एक अलग ही सूरत में ले रहे हैं। सच कहूँ तो हम जीवन के हर पड़ाव पर कृत्रिमता को ओढ़ रहे हैं की लक्षित की "प्राप्ति " कर सकें। यही कृत्रिमता हमारे मानवीय मूल्यों को धराशायी कर रही है। यदि कोई निस्वार्थ आ भी रहा है , कुछ कर भी रहा है तो हम विश्वास नहीं कर पाते और उसको अपने भोग के लिए निरंतर "उपभोग " करने की एक योजना बना कर चलते हैं।  

   मगर भूल जाते हैं कि "जीवन में देने पर ही प्राप्ति होगी "के सबके लिए है। जो निःस्वार्थ है उसके लिए भी और जो स्वार्थ वश है उसके लिए भी।

 आप कहाँ जाएंगे , कितने दूर तक जाएंगे इस पिपासा- लिप्सा को ले कर। कितने प्रपंच करेंगे , कितना गिरेंगे । कहीं तो थकेंगे या नहीं थकेंगे। थकेंगे...क्योंकि अंतिम सत्य यही है। हर चीज का अंत है मगर कर्मो के परिणाम के साथ।  

  जब अंत समय मृत्यु मुंह बाए सामने खड़ी हो आती है न तो कोई तिकड़म काम नहीं आती। मृत्यु इस शब्द का इस तरह प्रयोग करने के लिए क्षमा ...मगर ये सत्य है कि ये कुछ को डराने वाला शब्द, कुछ के लिए पीड़ा भरा शब्द और कुछ के लिए मुक्ति का पर्याय होता है और ये कर्मगति से निर्धारित होता है...ये मेरा अनुभव है।

 ये अनुभव आया कहाँ से? थोड़ा "ज्ञान" जैसा, "प्रवचन" जैसा लगेगा लेकिन मृत्यु से मैं रोज ही मिलती हूँ, और आप सब भी!!! लेकिन उसको आप समझ नहीं पाते और मैं महसूस करने की, मनन करने की कोशिश करती हूँ... रोज रात सोते हुए। सोना...एक अल्प कालिक मृत्यु है। सोचिये... के कई रात आप चैन से सोते है और कई रात आप सोने से पहले कितने बेचैन होते है। कभी संगीत का सहारा , कभी किसी साथी की निकटता और ये सब नहीं तो दवाइयों का सहारा लेते हैं। लेकिन उसके पूर्व क्या क्या घूमता है आपके मन मस्तिष्क में?? फेंटेसी की बात नहीं कर रही , वो खुराफात है। मनन की बात कर रही हूँ । सोचिये आपने ऐसा क्या किया है ,कब किया है ,कहाँ किया है ,कितना किया है, क्यों किया है। उस सब से किसी को आत्मिक शुद्ध स्थिर सुख / स्मृति मिली ?? दूसरों को छोड़िए क्या आपको मिली? आपने "प्राप्ति के लिए" दिया था न!!

आपके परिवार की वजह से आपको जो मिल रहा है क्या आप उसके लिए कृतज्ञ हैं? क्या आप ईमानदारी से उस परम्परा को आगे बढ़ने की हिम्मत रख रहे हो? क्या आप अपनी अगली पीढ़ी को अपने लिए ये कृतज्ञता देने का प्रयास कर रहे हो, या किया है ऐसा?

   नहीं...तो विलाप क्यों, हाँ.. तो विलाप क्यों? सोचिये, मनन करिए। अभी भी वक्त बचा है आपके पास ...


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