वो ख्वाब सी...
वो ख्वाब सी...


"तुम ख्वाब सी रहीं मगर ख्वाब नहीं थी ज़ैनब " अपनी मोबाइल स्क्रीन को रुमाल से पूछते हुए नंदन ने कहा । "स्क्रीन पोछ रहे हो क्या? " दूसरी ओर से कांपती आवाज ने कहा। "हां...तुम्हारा वीडियो धुंधला रहा है, शायद ग्रीस का हाथ लग गया।" नंदन आज कल अपने गो डाउन आने लगा है।ऐसी कोई गाड़ी नहीं जो उसके गो डाउन में नहीं । देश के नामी कार विक्रेताओं में उसका नाम है। मगर ऐसा हमेशा नहीं था। एक समय वो शहर के शहर अपनी फिएट से नापा करता था।
"नंदन...नंदन ",
"बोलो"
" स्क्रीन नहीं अपनी आंखें पोछों..भर आयी हैं।"कहते हुए उस ओर की आवाज भर्रा गयी।
"तुम्हारा गला अब ठीक रहता है?" नमन ने मुस्कराते हुए आंखें पोछते कहा।
"हां ,शादी के बाद मालिक ने पहले उसी का इलाज कराया।"
"तुम्हारा पति अच्छा इंसान लगता है।"
"हां एक अच्छा शौहर और बाप भी है।"
"हम्म "
"निशि और बच्चे? "
"तुम्हे निशि के बारे के कैसे पता चला?" नंदन ने बहुत गौर से मोबाइल स्क्रीन पर देखा।
"तुमने बेटे की शादी का ग्रुप फोटो शेयर किया था।"
"तुमने कहाँ देखा?"
"फेस बुक पर ...डॉ मलिक की प्रोफाइल से।"
"डॉक्टर साहब को तुम कैसे .."
"डॉ मोहसिन मलिक ही मेरे शौहर हैं।"
"ओह! बहुत अहसान है उनके मुझपर, दिव्य की हार्ट सर्जरी और निशि का बायपास... ।"
"जानती हूँ।"
"ज़ैनब?!!"
"हां.. जानती हूँ पूछोगे की तब क्यों सामने नहीं आयी?"
" हाँ"
"उससे क्या होता, ख़ामोखां एक सैलाब आता भावनाओ का जो हम दोनो के अजीजों का दिल दुखाता।"
"अब क्या बोलूं मैं....हमेशा मुझे दोयम करती आयी हो।"
"अरे!... बस तुम्हारे इसी उबाल की वजह से ही तो...ख़ैर अभी क्या मतलब ,कब्र में पैर उतरे हुए हैं।
"ज़ैनब....कब तक?"
"क्या पता कब तक नंदन ...मलिक का हौसला अब टूट चुका है, बस आदिल है जो एक झूठी उम्मीद लिए है।
"ऐसा न कहो.. कुछ समय उपर वाले से उधार मांग लो।"
"अब किसलिए ?...बस एक खवाहिश बाकी थी सो आज ...तुमसे बात हो ही गयी।"
"नहीं बहुत बातें है अभी, तुम्हे अपनी मर्सीडीज में घुमाना है। " नंदन फौरन बोल पड़ा।
"कोई नहीं ...लिमोजीन में घूम लुंगी औ
र सपनो में आकर ढेर सारी बात करूंगी तुमसे..।"
"....तो तुम बस ख्वाब ही रहोगी !" नंदन थोड़ा उदास हुआ।
"...."
"बोलो ...ऐसे क्या देख रही हो ?"
"..मेरा ये बूढ़ा दोस्त अब ठरकी हो रहा है ..." ज़ैनब ने बेबसी से मुस्कराते हुए सीने पर हाथ मलते हुए कहा।
"हहहहहह...ऐसा सुनाई पड़ रहा हूँ क्या?
"....."
"मुस्कराती आज भी अच्छी दिखती हो।"
"...."
"कुछ कहती क्यों नहीं, तारीफ कर रहा हूँ!"
"....."
"तुम बिल्कुल नहीं बदली..फिर वही ड्रामा..बोलोगी भी या मुस्कराती रहोगी?"
"...."
"ज़ैनब!"
"...."
"वीडियो फ्रीज हो गया लगता है।"
"...."
"दुबारा कॉल करता हूँ।"
नंदन सेठी ने दुबारा कॉल लगाई मगर कोई जवाब नहीं।
नंदन ये सोच कर की किसी काम मे लग गयी होगी वापस अपने घर को पैदल चल पड़ा । निशा के जाने के अरसे बाद उसे जिंदगी में एक ताजगी सी लगी थी।
ज़ैनब , उसकी एक खूबसूरत दोस्ती की याद , और साथ बिताए पलों को रास्ते भर सोचता गुनगुनाता वह आधे घंटे में अपने घर पहुंच चुका था। जहां विज्ञ , नंदन और निशा का बेटा , बगीचे में अपनी माँ के लगाये लीची के पेड़ों की देखभाल में लगा था। अपनी मां के चले जाने के बाद उसे जब भी मां की याद आती वो बगीचे में चला आता।अपने पापा को आतेदेख वो उनकी ओर चला आया।
नंदन लॉन में लगे झूले में बैठ गए। इतना दूर पैदल चल कर आने से सांस फूल रही थी। बाला दाई गुनगुना पानी लेती आयी। घूंट घूंट पीने के बाद अपने पास आकर बैठे विज्ञ को देख के छेड़ते हुए बोले
"इतना उदास क्यों दिख रहा, तेरी गर्लफ्रेंड.. मतलब बहु आ तो रही है मायके से।"
"पोप्स... नॉट नाउ ...एक सीरियस बात है।"
"क्या.. बहु नहीं आ रही? "
नंदन में विज्ञ को आंख मारते कहा।
" एक्चुअली अभी 5 मिनट पहले डॉक्टर मोहसिन का फोन आया था।उनकी वाइफ मिसेज ज़ैनब मलिक नहीं रहीं, कुछ देर पहले हार्ट अटैक हुआ , कल सुपुर्दे ख़ाक ...लिमोजीन मंगवाई है।"
सुनते ही नंदन के हाथ से उसका मोबाइल छूट गया।
"ॐ शांति" गहरी सांस लेते नंदनने अपना मोबाइल उठाया और छड़ी के सहारे से धीरे धीरे अपनी पत्नी के बगीचे की ओर बढ़ गया।