तुम्हारा ख्वाब
तुम्हारा ख्वाब


एक ख्वाब देखा मैंने, तुम बताना खूबसूरत था या कैसा था।
ख्वाब में मैंने वो वक्त देखा जब हम दोनों जरा बालिग हो रहे थे। एक दूसरे से अनजान थे और एक कोई पहाड़ी इलाका था। शायद इस सपने को जान कर तुम्हें अपने लड़कपन के प्यार की याद आ जाए। मगर मुझे अब भी ये सपना और बस वो तुम और जगह याद आ रही है जैसे हकीकत में जिया हो वो पल ।
तो जो देखा वो यूं था ...
तुम अपनी मस्ती में फौजी जूते पहने अपने अंदाज में चले आ रहे हो और में वहीं किसी मंदिर में ...हाँ उस पहाड़ में ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच एक मंदिर भी था उसके एक कोने में मैं नतमस्तक खड़ी हूँ। उस जगह पर ऐसा अहसास है जैसे उस जगह और तुम को जानती भी हूँ और अनजान भी हूँ , मगर मन ही मन आह्लादित हूँ तुमसे मिलने को, तैयार हूं तुम्हें एक प्यारा सा धप्पा देने के लिए। मगर तुम ... तुम किसी और को ढूंढ रहे हो और लो वो आ गयी जिसे तुम ढूंढ रहे थे। दुबली सी कोई जो तुम्हें देख कर मुस्करा रही है। एक कसक सी महसूस हुई मगर बुरा नहीं लगा क्योंकि उसने तुम्हें वो
प्यारा सा धप्पा दिया और तुम चौंक कर खुश हो गए। कुछ समय तुम दोनों दुनिया से बेखबर एक दूसरे के साथ बात चुहल करते हुए और मैं पूरी चौकन्नी... कहीं कोई देख न ले तुम दोनों को!!
फिर अहसास हुआ कि शाम होने में तो वक्त है लेकिन अपनी अपनी किताबें उठा कर तुम दोनों जाने के लिए उठ गए हो। तुम्हें जाता देख मैं बेचैन हो गई, अभी तो आये थे तुम!!
जैसे कोई हूक उठी हो और उसी पल तुम मुड़े, तुमने सरसरी निगाह से उस ओर देखा जहां में खड़ी हूँ चुपचाप मगर शायद मैं तुम्हें नजर नहीं आयी। और कपड़े झाड़ते हुए तुम दोनों धीरे धीरे नीचे उतर गए।
मैं जाने क्या सोच रही हूँ कि मुझे मेरा नाम सुनाई दिया लगा जैसे तुमने पुकारा...मैंने मुड़ कर देखा। तुम उन पहाड़ी वादियों में खिलखिला रहे थे , बादलों में मुस्करा रहे थे चिड़ियों में चहचहा रहे थे मंदिर की लौ में जगमगा रहे थे जैसे कहीं गए ही नहीं मगर मैं ...उस वक्त भी,जाने क्यों अकेली ही थी।
बताना ये सपना कैसा था?