STORYMIRROR

Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

4  

Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

माफ कर देना

माफ कर देना

4 mins
482

    आजकल जिंदगी समझ में नहीं आ रही है। समझ नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है, चल क्या रहा है। समझ नहीं आ रहा है कि क्या चाहती है जिंदगी। कुछ लेना चाहती है या कुछ सिखाना चाहती है ,क्या करना चाहती है ?

  हर बार, हर रोज दिल डरा हुआ रह ता है। नींद खुलते ही एक अनजाना डर घर क र जाता है। ईश्वर आज का दिन बस अच्छा बीत जाए। बीते कुछ दिनों में जिंदगी में जो कुछ हुआ है उसने अंदर से हिला कर रख दिया है। ऐसा नहीं कि पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ ...पहले भी हुआ है और कोई बहुत अपना मैंने खोया है।

  लेकिन अचानक ही वह इस तरह से चली जाएगी ...इस बारे में मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। अगर ईश्वर को मुझे यह सिखाना था कि मुझे उन लोगों की कद्र करनी है जो मुझे निस्वार्थ भाव से अपना मानते हैं तो कोई और तरीका भी तो हो सकता था या फिर यह उसने बस इतने दिनों तक ही मेरे साथ एक रिश्ता निभाना था। मुझे अपनी ओर से अपनेपन से भर देना था लेकिन फिर वह सब उस समय क्या था? क्यों था? जो मेरे अपने परिवार में चल रहा था। मेरे पिता की स्थिति एकदम नाजुक होना, मेरा जाना और उसी बीच तुम्हारा भी वही हाल होना। और जैसे वे ठीक होने लगे तुम्हारा चला जाना। जाने क्यों मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब हो रहा है ...पर हुआ।

   ट्रेनिंग के दौरान तुमने मुझे दोबारा से जीना सिखाया। अपनी मां की मौत के बाद मैं बिल्कुल खो चुकी थी। तुमने जिंदगी को दोबारा खूबसूरत नजर से देखने को कहा। इस बार भी बहुत कुछ सिखा गई तुम मुझे एक झटके में। कहा करती थी... "दी ...देखो ना मेरी जिंदगी में सब कुछ कितनी जल्दी-जल्दी हुआ है ,शादी ,बच्चे जिम्मेदारी नौकरी कॉलेज लाइफ तो जी ही नहीं। " हां, उसे कॉलेज लाइफ जीनी थी। मुझे उकसाती थी , "दी बताओ न आपको "***" अच्छे लगते हैं या "****"। पगली...मेरी राय जान कर एक तिलिस्म जीना चाहती थी। कुछ कहने पर कहती थी "अरेsssss... यहां का यहीं छोड़ जाती हूं दी। " उसका खिलखिलाता, जीवन से भरा व्यवहार ...बहुत से लोग , कई लोग उसके व्यवहार को पसंद करते थे। उसके जाने के बाद जिस तरह से लोगों के फोन की झड़ी लगी मेरे पास, मुझे एहसास हुआ कितने सारे लोग उससे प्यार करते थे और वहीं वो बस मेरे प्यार को "सिर्फ उसके लिए " रहे इस पर परेशान रहती थी।"बहुत पोजेसिव हूं दी आपके लिए। " 

 कहां हो तुम .... काश तुम यूं छोड़ ना गई होती। एक शून्य छोड़ गई हो दिल में। मुझे आज भी कोचता है वह पल जब मैं पंचायत चुनाव के लिए अपने विद्यालय में व्यवस्था में फंसी हुई थी। तुम्हारा फोन आया और मैं उठा ना सकी। बाद में घर की जिम्मेदारी, भागदौड़ ,पिताजी की तबीयत इन सब में भूल गई तुम्हें कॉल करना था। लगा फ्री होकर वैसे ही लंबी बात करेंगे जैसे हम दोनो करते हैं। लेकिन मुझे पता नहीं था कि तुम इस बार ये न होने दोगी और फोन न  उठाने की  इतनी बड़ी सजा दोगी। काश..... तुमसे बात हो पाती। अब हिम्मत नहीं कर रही है की मैं तुम्हारे बच्चों से मिल पाऊं। भाई साहब कि वह बात मेरे कानों में आज भी गूंज रही है " वह मेरी जिंदगी है "। लेकिन तुमने अपने बच्चों को जो सकारात्मक होने की सीख दी है उसे उन मुश्किल पलों में मैंने महसूस किया। लेकिन तुम सकारात्मक क्यों नहीं हो पाई ? तुम क्यों नहीं लड़ पाई? जाने क्यों मुझे यह लगता है कि तुम लड़ रही थी। तुम जीना चाहती थी पर पता नहीं क्या वजह रही कि तुम्हारा दिल साथ नहीं दे पाया। तुम तो जिंदादिल थी। तुम तो जिंदगी को जीना चाहती थी। हर बात में हंसती खिलखिलाती अचानक से खामोश हो गई। बिना किसी से कुछ कहे चुपचाप गहरी नींद में सो गई।

मुझे नहीं पता मैं यह क्यों लिख रही हूं। शायद मन का एक त्रास है।  मैं तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हूं। शायद मैं बहुत कुछ समझ रही थी , जान रही थी और शायद मैंने बहुत सारी चीजें तुम्हारे साथ जानें अनजाने गलत करी है। तुम मुझे किसी से बांट नहीं सकती थीं।तुम्हारी कही वो बात "दी देखना आपको मैं और मेरा प्यार बहुत याद आयेगा" सच कहा था तुमने। मैं तुम्हारी कद्र नहीं कर पाई ...सॉरी। हो सके तो माफ कर देना। लेकिन फिर भी तुम्हारी दोस्ती ने मुझे हर बार सहारा दिया। बहुत कुछ कहना चाहती हूं बहुत कुछ लिखना चाहती हूं लेकिन नहीं लिख पाऊंगी.

  तुम्हारे जाने के बाद जब तुम मेरे सपने में आई और और पीछे से आकर मेरी आंखें बंद कर दी ...मैंने सच में तुम्हारी उंगलियां महसूस करी ....बिल्कुल हकीकत छूते ही बोल पड़ी थी रुचि है और रुलाई फूट पड़ी। तब मुझे तुम्हारी वही आवाज सुनाई दी जैसे तुम हैरान होती थीं और कहती थी "अरेsssss!" वैसे ही जैसे तुम मुझे गलत कहने/सोचने पर कहती थी।  

   तुम्हें मेरे दिल का , मेरी भावनाओं का कितना ख्याल था और एक मैं थी....जो तुम्हारे लिए सिर्फ नाम की भावना " दी" हुई। तुम्हारी भावनाओं का ख्याल नहीं रख पाई तुम्हारी दोस्ती को वह अपनापन नहीं दे पाई.... तुम्हारी किसी काम नहीं आ पाई ... मुझे माफ कर देना। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy