उपहार
उपहार
बहु ये देखो किस का कुरियर आया है। सुधा जी ने हाथ में कुरियर का पैकेट लिए बाहर से अंदर घर में आते हुए अपनी बहुओं को आवाज लगाई।
आवाज़ सुन के बड़ी बहू रमा अपनी सास के पास आयी। तो सुधा जी ने कुरियर उसके हाथ में पकड़ा दिया।
बहु किसका नाम लिखा है। माँजी नाम तो देवर जी (अमन)का लिखा है। शायद ये कुरियर निशा(छोटी देवरानी) के लिए है।
तभी निशा ने कुरियर रमा के हाथ से लेते हुए कहा "बिलकुल सही कहा आपने ये मेरा ही है। क्योंकि इतना महंगा गिफ्ट तो जेठ जी आप को दे नहीं सकते। ये मेरे करवाचौथ का गिफ्ट है।"
सुधा जी निशा को बोलने के लिए जैसे ही आगे बढ़ी रमा ने उनका हाथ पकड़ लिया। और इशारे से कुछ भी बोलने से मना कर दिया।
गिफ्ट खोला तो उसमें महंगी साड़ी और सोने के कंगन के साथ गले का हार था। तभी निशा के फोन पर अमन के फोन की घण्टी बजी।
निशा ने फोन उठा कर बोला "अमन! थैंक यू थैंक यू तुम कभी मुझे करवा चौथ पर गिफ्ट देना नहीं भूलते।" और निशा फोन पर बात करते हुए अपने कमरे में चली गयी।
तब सुधा जी ने कहा "बहु तुमने मुझे बोलने बोलने से क्यों रोका। उसको क्या पता नहीं की आज अमन जो कुछ भी है तुम्हारी और अमर की वजह से है। तुम दोनों ने अगर ना पैसे दिए होते तो वो आज कुछ भी नहीं होता। "
तब रमा ने कहा "माँजी निशा मुझसे छोटी है और मेरे लिए वो छोटी बहन के समान हैं। आपके बोलने से बेकार में त्यौहार पर उसका मूड खराब रहता और घर का माहौल भी तो बोल के क्या फायदा। इसलिए मैंने आपको मना किया।
रमा और निशा में जमीन आसमान का अंतर था रमा जहाँ प्यार, और परिवार की खुशियों को पहले वरीयता देती थी। वही निशा को पहले अपनी खुशी और फिल्मी लाइफ स्टाइल पसंद थी। जिसे पूरा करने के लिए अमन पुरजोर कोशिश करता। बात बात में निशा, रमा को ताना मारती रहती। लेकिन रमा की चुप्पी उसपर भारी पड़ जाती।
अंदर कमरे से रमा के पति अमर जी ने निशा की बात सुनी तो उन्हें पता चला कि चार दिन बाद तो करवा चौथ है। और उन्होंने अभी तक रमा के लिए एक साड़ी तक नहीं ली थी। लॉक डाउन की वजह से प्राइवेट नौकरी में मिलने वाली तनख्वाह भी आधी हो गयी थी। और बचत के पैसों से बच्चों की स्कूल फीस और घर खर्च मुश्किल से चल पाता।
छोटे भाई अमन की कमाई अच्छी थी । लेकिन बड़े भाई के परिवार से कोई खास मतलब नहीं रखता। क्योंकि उस कमाई से निशा और अमन का ही खर्चा पूरा नहीं होता।
रमा जब अंदर कमरे में आयी। तो अमर ने कहा "रमा करवाचौथ नजदीक आ रहा है क्या कब है जरा तारीख तो बताना।"
रमा अमर को तारीख बताकर रसोई में खाने की तैयारी करने चली गयी। इधर अमर अब हर रोज पैसों के जुगाड़ में लगने लगा। कि रमा को कम से कम अच्छे दाम की साड़ी तो दे ही दे उपहार में।
रमा ने नोटिस किया कि अमर आजकल कुछ परेशान रहने लगे है। उसने अगले दिन रमा ने मौका पाकर दोपहर में अमर से पूछा " इस चिंता का कारण जान सकती हूं मैं, और हाँ सवाल सीधा है तो मुझे जवाब भी सीधा ही चाहिए।"
अमर ने कहा "सीधा जवाब ये है कि कल करवाचौथ है और मैं तुम्हारे लिए कोई भी उपहार नहीं लाया।"
अच्छा! जनाब इस बात की चिंता में मूड ऑफ किये हुए है आप। तो मेरी एक बात ध्यान से सुनिये। जो आप भी मानते है कि आपका सच्चा प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है। और हाँ मेरा करवाचौथ किसी महंगे उपहार का मोहताज नहीं। रमा ने कहा
"तुम्हारी बात ठीक है रमा लेकिन ...पति होने के नाते मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है कि तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करुँ।" अमर ने कहा
"हम्म! अगर बात मेरी ख्वाहिश की है तो फिर मैं जो बोलूं वो पूरा कर दो बस। देखो मैंने अभी तक मेहंदी नहीं लगाई। तुम बस दो कोन मेहंदी के लेते आओ। बाजार जा के। मैं चाहती हूं कि इस बार मेरे दाहिने हाथ पर मेहंदी तुम लगाओ अभी तो फिलहाल इस करवाचौथ यही ख्वाहिश है मेरी" रमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
अमर ने बाजार से लाकर मेंहदी रमा को दी। और कहा सुनो तुम एक हाथ पर मेहंदी खुद से अच्छी वाली रच लो। आज घर के काम मैं करूँगा। तुम आराम से मेहंदी लगाओ। अब तुम आगे कुछ मत कहना। शाम को निशा रसोई में आई ।
तो अमर ने कहा "'निशा जाओ तुम भी आराम करो आज और कल रसोई में सारा काम मैं करूँगा।"
निशा अपनी आंखें मिचती हुई आश्चर्य में बोली "सच्ची भाई साहब आप कर लेंगे सब काम अकेले।"
हाँ निशा तुम जाओ..निशा ने मेहंदी डिजाइन करने वाली लड़की को घर पर बुला के दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई। अमर और सुधा जी ने मिल के सारा काम खत्म किया।
रात में निशा पानी लेने उठी तो उसने देखा कि अमर अपने हाथों से रमा के दाहिने हाथ पर मेहंदी लगा रहे थे।
जेठ जेठानी का ये प्यार देखकर निशा को अपने हाथों पर सलीके से खूबसूरत रची मेहंदी फीकी लगने लगी। क्यों अमन के साथ उसकी ऐसी कोई याद नहीं थी।
करवाचौथ के दिन अमर रमा के लिए बाजार से गजरा लेकर आये और रमा के बालों में अपने हाथों से लगाया। रमा आज सादगी से सजी होने के बावजूद भी निशा को बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी। क्योंकि रमा का तन मन अमर के प्यार के गहने से सजा हुआ था।
रात को पूजा के बाद रमा ने अमर का चेहरा छलनी से देखा। अमर ने अपने हाथों से रमा को पानी पिलाया। और व्रत खोलवाया।
इधर निशा अमन को फोन पर फोन किये जा रही थी आखिर में अमन ने फोन उठाकर कहा "निशा! मुझे आने में देर हो जाएगी तुम अपना व्रत खोल लो और खाना खा के सो जाओ।"
निशा इतना सुनते दुःखी हो गयी उसकी आँखों में आंसू आ गए। तभी रमा कमरे में निशा को आवाज़ देती हुई आयी। निशा चलो खाने ।
निशा को उदास देखकर रमा ने जैसे ही उसके सिर पर हाथ रखा। निशा के आंसू गालों पर लुढ़क गए।
क्या हुआ निशा।
भाभी अमन रात में देर से आएंगे बोला बाकी खुद ही व्रत खोल लो मेरी की तस्वीर मोबाइल में देख के। किसको दिखाऊँ ये श्रृंगार।
भाभी "आप बिल्कुल सही कहती है कि करवाचौथ किसी महंगे उपहार की नहीं बल्कि पति के साथ और सच्चे प्यार की जरूरत होती हैं।"
निशा उठो ऐसे शुभ मौक़े पर उदास चेहरा अच्छा नहीं लगता। चलो मुस्कुराओ व्रत खोलो। अच्छी बात तो ये है कि तुम ये बात समझ गयी कि करवा चौथ किसी उपहार का मोहताज नही होता।
आज निशा को रमा उससे ज्यादा अमीर लग रही थी क्योंकि रमा के पास अपने पति का सच्चा प्यार और साथ था जो किसी भी उपहार का मोहताज नहीं था।