Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

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Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

काश बात कर ली होती

काश बात कर ली होती

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"मम्मा! आप का फोन बज रहा" 9 साल की खुशी ने अपनी मम्मी सौम्या को आवाज़ देते हुए कहा|

"किसका फोन है, बेटा देखना तो मैं तैयार होकर आती हूँ" सौम्या ने कहा|

"ओफ़ ओह मम्मा, नानाजी का फोन है दस बज गए ना और किसका होगा"?

सौम्या खुशी के स्कूल पीटीएम में जाने के लिए तैयार हो रही थी, उसने जैसे ही सुना कि उसके पापा अमर जी का फोन है सोचा पहले बात कर ले| लेकिन तभी उसको अपने पति अभय की याद आयी कि अभी अगर बात करने में लेट हुई तो बेकार में जाते वक्त मूड खराब होगा। वैसे भी अभय को अमर जी का रोज फोन पर बात करना पसंद नहीं था। अभय हर बार जब भी अमरजी फोन करते घर में बखेड़ा खड़ा कर ही देता। बात बात में सौम्या को ताने मारते हुए कहता कि "तुम्हारे पापा को कोई काम नहीं तो खाली बैठे बैठे फोन ही मिलाते रहते है, भूल जाते है कि बेटी की शादी कर दी है अब उसका अपना भी घर संसार है तो फोन जब तक जरूरी ना हो ना करें।


"हैलो! नानाजी प्रणाम,आप कैसे है?" खुशी ने फोन उठाकर कहा

"अरे !वाह खुशी बेटा मैं अच्छा हूं आप कैसी है?" अमर जी ने कहा

खुशी-"मैं अच्छी हूँ नानाजी"

अमरजी-"मम्मा और पापा कहाँ है बेटा?"

तभी अभय ने खुशी को दिखाने के लिए अपने फोन से बात करने लगा, खुशी ने जैसे ही फोन देना चाहा बात करने के लिए अभय ने कहा"बेटा आप बात करो, मैं अभी किसी से जरूरी बात कर रहा हूं।"

अभय जी की आवाज अमरजी ने सुनी और दूर खड़ी सौम्या भी अपने पिता के साथ हुए इस व्यवहार को देखकर दुःखी हो गयी। वो सोचने लगी कि लाख व्यस्तता होने पर भी अभय कभी अपने मातापिता का फोन उठाना और हर रोज उन्हें फोन करना नहीं भूलता। लेकिन उसके पापा से इतना बैर आखिर क्यूँ?

तभी खुशी ने कहा -" नानाजी, मम्मा रेडी हो रही है आज मेरे स्कूल पीटीएम में जाना है। और पापा किसी से फोन पर बात कर रहे है।"


अमरजी-"अच्छा !बेटा मम्मा को कहना कि नाना जी का फोन था जब भी फ्री हो बात कर ले।"


खुशी - ओके नानाजी प्रणाम।

तभी अभय ने आवाज लागई, सौम्या चलो जल्दी लेट हो जाएंगे।

तभी खुशी ने कहा "मम्मा,नानाजी को आपसे बात करनी थी बोला फोन करने के लिए"

जैसे ही सौम्या ने हाथ में फोन लिया। अभय ने तुरंत कहा "अब बाप बेटी पंचायत मत करने बैठ जाना समझी, चलो जल्दी अब"

सौम्या नहीं चाहती थी कि खुशी के सामने कोई तमाशा हो इसलिए उस ने गुस्सा दबाते हुए कहा "बात नहीं करने जा रही हूं फोन पर्स में रख रही हूं, बोलो तो यही घर में रख दूँ।"

अभय-" हाँ!रख दो,वैसे भी कौन सा तुमको कोई जरूरी फोन आने वाला है ऑफिस का।"

सौम्या ने गुस्से में फोन घर में ही रख दिया।

स्कूल जाकर पीटीएम अटेंड किया, तभी अभय के फोन पर उसके दोस्त अशोक का फोन आया तो कहा" यार!यही बगल में आया है तो घर भी आजा काफी दिन हो गए मिले हुए।"

और अभय अपने दोस्त के घर सबको लेकर चला गया। लेकिन आज सौम्या का मन कही नहीं लग रहा था ना चाहते हुए भी उसे बेचैनी हो रही थी रोने का मन हो रहा था।



इधर अभय पर लगातार फोन आये जा रहा था तो अशोक ने कहा "यार! किसका फोन है? उठा तो सही हो सकता है कोई जरूरी काम हो"

अभय ने फोन साइलेंट करते हुए हँसते हुए कहा "अरे यार तू तो जानता है, कुछ लोगों का काम होता बस फोन करके परेशान करने का मेरा मतलब कस्टमर केयर वाले है।' और इतना सुनते अशोक और अभय ठहाके लगा कर हँस पड़े।

शाम को जब सौम्या घर पहुंची तो देखा उसके फोन पर उसके पापा, भाई और माँ के बीसो मिस कॉल थे

तभी पीछे से अभय ने कहा" कि तुम्हारे घर वालो को जरा भी दिमाग नहीं की किसी को लगातार फोन ना करें, जब किसी को समय होगा वो खुद ही फोन करेगा।"

आज सौम्या ने जवाब देने की बजाय पहले अपना फोन उठाकर कमरे में जाकर अपने पापा को फोन किया। और जैसे ही कहा"हैलो पापा, तभी उसे पीछे से अपनी माँ के रोने की आवाज़ आयी। पापा आप बोल क्यों नहीं रहे? और माँ रो क्यों रही है क्या हुआ? "


तभी उसको आवाज आयी, दीदी पापा कहते हुए मनोज की आवाज भर्रा गयी।

मनोज तू पापा कहां है? और सब रो क्यों रहे है? बोल कुछ, अच्छा पापा को फोन दे उनसे बात करुँ..

दीदी! पापा अभी बात नहीं कर पाएंगे, आखिरी शब्द तक उन्होंने आपका ही नाम लिया। वो कह रहे थे बस एक बार सौम्या से बात करा दो, बहुत कोशिश की जीजा जी को भी फोन किया। लेकिन फोन नहीं उठा


पापा को हार्ट अटैक आया और अस्पताल में एडमिट है डॉ बोल रहे है कुछ नहीं कहा जा सकता कंडीशन सीरियस हैं।

इतना सुनते सौम्या के हांथो से फोन छूट कर नीचे गिर गया। उसकी आंखे पथरा गयी, भावना शून्य वो मूर्ति की तरह दीवार से चिपक गयी। एक अपराधबोध के साथ काश सब बातों को किनारे करते हुए पहले बात कर ली होती।

कि तभी अभय ने कहा"होगयी बाप बेटी की पंचायत बड़ी जल्दी फोन रख दिया"


सौम्या ने कहा "अभय क्या तुमको मनोज ने फोन किया था"



अभय -हां किया था

सौम्या -"तो उठाया क्यों नही?"

उसकी नजर जैसे ही सौम्या पर गयी उसने कहा " उन बातों से क्या करना तुम्हें? ऐसी कौन सी बात कर ली जो मूर्ति बनी खड़ी हो कही मेरी चुगली तो नहीं कर दी तुम्हारे पापा ने मैं तो परेशान हूं तुम्हारे घर वालों खासकर तुम्हारे पापा की फोन करने की आदत से,"

सौम्या-"अभय मैं अभी जा रही हूं।"

अभय -"मतलब"

और सौम्या फुटकर रो पड़ी रोते रोते उसने कहा "मैं अपने मायके जा रही हूं, पापा एडमिट है।"

अभय"अच्छा !तो वहाँ तुम्हारी क्या जरूरत मनोज को बोलो की उसके एकाउंट में पैसे डाल देता हूँ तुम क्या करोगी वहाँ जाकर डॉक्टर तो हो नहीं जो उनको ठीक कर दोगी। और यहाँ खुशी का स्कूल छूटेगा, तो कोई जरूरत नही,"

आज सौम्या ने कहा " मिस्टर अभय पहली बात की आज मुझे जाने से कोई नहीं रोक पायेगा क्योंकि आज मुझे एक बेटी होने का फर्ज निभाने से कोई नहीं रोक सकता।"


रही बात खुशी की तो पिता होने के नाते तुम्हारे भी कुछ फर्ज है तो तुम पूरा करो। और ये भी याद रखना की तुम भी एक बेटी के पिता हो भगवान ना करें कभी तुमको ये दिन देखना हो कहकर सौम्या सामान पैक कर घर से निकलने लगी तभी उसने पीछे मुड़कर अभय से कहा


"और हाँ अगर आज मेरे पापा को कुछ भी हुआ। तो मैं तुमको कभी भी माफ नही कर पाऊँगी" कहते हुए सौम्या घर से निकल गयी।

एयरपोर्ट से सीधा हॉस्पिटल पहुंची| पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सौम्या को देखते उसकी माँ रोते हुए बोल पड़ी" तू कहाँ थी बेटा, तेरे पापा आखिरी दम तक यही कहते रहे आज बात नहीं हुई सौम्या से पता नहीं कैसी है सौम्या,उसको बुला दो,एक बार मिला दो। कुछ दिनों से कुछ उदास है मेरी बेटी

सामने पिता का मृत शरीर जिसे पकड़ कर सौम्या की माँ बार बार रोते हुए कहे जा रही थी "सौम्या के पापा, उठिए देखिये सौम्या आ गयी। आप तो कहते है कि सौम्या में आपकी जान बसती है। तो अब उठिए ना, बोल बेटा सौम्या तेरे पापा को उठाने के लिए तेरी तो वो हर बात मानते हैं।"


सौम्या को आज कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब किससे क्या कहे, माँ को क्या कह के सांत्वना दे, आज सौम्या निरुत्तर खड़ी थी किसी पत्थर की शिला की तरह| मन में ग्लानि इतनी की काश बात कर ली होती| हॉस्पिटल की सीढ़ियों पे जा बैठी सौम्या समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें। उसकी आँखों के आंसू जैसे सुख गए थे| तभी उसके पीठ पे किसी ने हाथ रखा। सौम्या ने पलट के देखा तो अभय।

अभय ने जैसे ही सौम्या से बोला "मुझे माफ कर दो! मैं एक बेटी का पिता हो के भी तुम्हारे जज्बात नहीं समझ सका।"

अभय को देखते ही सौम्या को बीती सभी बातें याद आ गयी| कि कैसे कभी भी अभय ने उसके पापा के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। सौम्या ने बहुत बार कोशिश की थी अभय का व्यवहार बदलने की लेकिन अभय जैसे का तैसा ही रहा सौम्या आज अपने गुस्से पे काबू नहीं कर पा रही थी आज उसका सब्र टूट चुका था


फिर सौम्या ने अपना गुस्सा दबाते हुए बोला "क्या कहा? माफ कर दूँ! ठीक है ले के आओ मेरे पापा को।"

मैं तुम्हें माफ कर दूँगी, ला सकते हो तो बोलो, तुम्हें हमेशा उनके फ़ोन आने और एक बाप बेटी के बात करने से परेशानी रही वो भी बिना वजह| और जब तुम्हें जरूरत होती थी तो दिन में दस बार फोन करते थे। अब मेरा फ़ोन नहीं बजेगा। अब मेरी जिंदगी की इस कमी को कोई भी पूरा नहीं कर सकता| तो तुम मुझसे कोई उम्मीद मत रखना" और एक बात की जितना पछतावा और कसक आज मुझे है कि काश मैंने अपने पापा से बात कर ली होती। उतना ही एक दिन तुम्हें भी होगा क्योंकि वक़्त हर सवाल का जवाब जरूर देता है। और हम जैसा करते है वैसा भरते भी जरूर है। कहकर सौम्या वहाँ से रोती हुई चली।

आज पूरे दो साल बाद उनके आज के आखिरी दिन की तारीख को याद करते हुए सौम्या की आंखों में आँसू आ गए। वो सोचने लगी काश अतीत में जाकर मैं अपनी भूल सुधार पाती। और पापा से एक बार बात कर लेती।


दूसरी तरफ अभय सौम्या को देख कर ये सोच रहा था कि काश अतीत में जाने का मौका मिलता तो मैं बाबूजी से अपने किये व्यवहार के लिए माफी मांग पाता।

प्रिय पाठकगण उम्मीद करती हूँ कि मेरी ये रचना आप सब को पसंद आएगी। कहानी का सार सिर्फ इतना है कि कितनी भी व्यस्तता क्यों ना हो, या कोई परेशानी हो लेकिन अपने माता पिता के लिए समय अवश्य निकालें और जब भी वो आप से बात करने की कोशिश करें आप जरूर बात करें। किसी भी त्रुटि के लिए माफ करें। कहानी पसंद आये तो शेयर और मुझे फॉलो करें।




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