Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

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Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

भाग 13

भाग 13

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दीपिका ने मां को टीवी देखते हुए देखा तो उनके सामने सोफे पर जाकर बैठ गयी। लेकिन उसकी माँ ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। उसे जोरों की भूख लग रही थी। वो उठकर रसोईघर में गयी तो देखा वहाँ कुछ भी खाने के लिए नहीं रखा हुआ है।


वो रसोई से निकलकर अपनी मां के पास आयी।

माँ को हिलाकर उसने कहा," माँ, माँ मुझे बहुत तेज भूख लगी है। कुछ खाने को दो ना प्लीज"


दीपिका की माँ ने बिना कोई भूमिका बनाएं हुए कहा,"जाओ जाकर खा लो"


"क्या खा लू, आपने तो कुछ बनाया ही नहीं, क्या आज किसी ने नाश्ता नहीं किया?"


"किया है ना सब नाश्ता करके टिफिन लेकर अपने अपने काम पर गए अब शाम को जब सब आएंगे तब खाना बनाऊंगी"

"तब खाना बनाऊंगी से क्या मतलब? और मैं क्या खाऊँगी? क्या मैं शाम तक भूखी हूं?"


मैंने कब कहा कि तुम भूखी रहो,तु म बड़ी हो जिम्मेदार हो अपना अच्छा बुरा जानती हो, तो अपने लिए नाश्ता भी बना लो, इसके लिए मेरा या किसी और का इंतजार क्यों करना?


"ओके तो आप इस तरह से अपना गुस्सा निकाल रही है। तो कोई बात नहीं, मैं जा रही हूं मुझे कुछ नहीं खाना"


इधर रिया भी रात भर रवि के बारे में सोचती रही। रवि के दिए उपहार को सीने से लगाए वो उसके बारे में सोचते सोचते कब सो गयी उसको पता नहीं चला।


अगले दिन जब सुबह उसकी आंख खुली तो उसने सबसे पहले अपना फोन उठाया इस उम्मीद में कई शायद रवि ने उसे फोन किया हो या कोई मैसेज ही किया हो। लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी। रवि ने उसे कोई मैसेज या फोन नहीं किया था।


तभी उसके कमरे में उसकी माँ आयी। रिया को परेशान देखकर उसकी माँ ने कहा, "क्या हुआ बेबी? सब ठीक तो है ना, तुम इतनी परेशान क्यों हो?"


रिया-"कुछ नहीं माँ वो कल थकावट ज्यादा हो गयी। वैसे आप क्यों आयी यहाँ आपकी तो आज महिला समिति में मीटिंग थी ना"


"हाँ थी तो, लेकिन कैंसिल हो गयी। तो सोचा आज अपनी बेटी से ही बात कर लूं। और बताओ कल की बर्थडे पार्टी कैसी लगी तुम्हें?"

अपनी मां के गले लगते हुए रिया ने कहा, "बहुत अच्छी मां"


"और गिफ्ट"

"वो भी अच्छा था"

"और अमर से मिलकर कैसा लगा?"

"अच्छा लगा, लेकिन आप ये सब क्यों पूछ रही है?"


"कुछ नहीं बस ऐसे ही"

"अच्छा अमर ने कुछ कहा तुमसे"

"नहीं तो"

"अरे! कुछ तो कहा होगा? कुछ तो तुम लोगों ने बातें की होंगी।"

"हाँ वही बस वही इधर उधर की बातें"


"अच्छा कुल मिलाकर तुझे अमर कैसा लगा?"

"माँ सच बोलूं तो वो मुझे ज्यादा समझ नहीं आया क्योंकि वो व्यवहार से अच्छा लेकिन चेहरे के भावों से अलग ही प्रतीत हो रहा था। कुल मिलाकर कहूं तो दोहरे चरित्र वाला इंसान बाकी तो भगवान मालिक है।"


"भगवान मालिक है मतलब"

"मतलब ये मेरी प्यारी मां की वो कैसे भी हो अच्छा या बुरा मुझे क्या फर्क पड़ता है? कौन सा मुझे उसके साथ रहना है।"


"और यदि रहना पड़े तो"

इतना सुनते रिया के चेहरे के भाव बदल गए। वो अपनी मां को पलटकर एकटक देखने लगी। चेहरे पर हजारों सवालों की लकीरें खींच गयी।

जिसे देखकर उसकी माँ ने कहा, "तू मुझे ऐसे क्या देख रही है? तेरे पापा ने अमर को तेरे लिए पसंद किया है। उनका कहना है कि एक बार अमर से तेरी शादी हो गयी। तो तेरी जिंदगी संवर जाएगी। और उनका बिजनेस भी आसमान छूने लगेगा।


"माँ लेकिन इतनी जल्दी शादी क्यों अभी तो मेरी पढ़ाई बाकी है।"

"क्या करना है तुझे इंजीनियरिंग करके नौकरी तो तुझे करनी नहीं? बाकी जो करना होगा शादी के बाद करती रहना किसने रोका है तुम्हें" रिया के पापा ने कमरे ने घुसते हुए कहा।



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