Ragini Ajay Pathak

Drama Others

4.5  

Ragini Ajay Pathak

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गृहलक्ष्मी भी तुम गृहस्वामी भी

गृहलक्ष्मी भी तुम गृहस्वामी भी

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"रिया! सामान की लिस्ट बना देना। मैं ऑफिस से आते वक्त लेता आऊंगा" अमर ने अपनी पत्नी से कहा।

"अमर अगर तुम कहो तो मैं जाकर मार्केट से सामान ले लूंगी" रिया ने कहा।

"नहीं तुम रहने दो!"

"मैं कर लूंगा मैनेज!!!"

शाम को घर आ के अमर ने रिया को सामान पकड़ाते हुए कहा "ये लो सामान लिस्ट से मिला लेना। "

रिया ने सामान देखा तो लिस्ट से सिर्फ आधा ही सामान आया था। रिया ने कहा "ये क्या अमर इस बार फिर तुमने आधा ही सामान लिया है। "

"आधा नहीं जरूरी सामान बाकी बेकार की चीजें हटा दी मैंने तुम्हें तो मैनेज करना नहीं आता" अमर ने कहा।

"लेकिन अमर उसमें माँजी और बच्चों के पसंद की भी चीजें थीं"।

"उनको जो भी चाहिए, बोलो सीधा मुझे आकर कहें। "

अमर की कंजूसी से पूरा घर वाकिफ था तो सब चुप ही रहते थे। अमर सारे मार्केटिंग के काम खुद ही करता कपड़े से लेकर राशन तक सब अपनी पसंद का ही लेने देता। लेकिन आज सामान में अपनी पसंद की चॉकलेट ना देख के बारह वर्षीय बड़े बेटे तरुण ने कहा "माँ, पापा इस बार भी नहीं लाये मेरा सामान। पिछले तीन महीनों से कह रहा हूं, लेकिन अब नहीं कहूंगा। अब तो आपसे भी कुछ नहीं कहूंगा। क्योंकि आप तो कुछ कर नहीं सकती। अब मैं भी बड़ा होके कभी भी पापा की पसंद का कुछ नहीं करूँगा।"


रिया को बेटे की इस बात ने अंदर तक हिला कर रख दिया। उसने सोच लिया। कि अब और देर नहीं करेगी। वरना आगे चलकर उसका परिवार बिखर जाएगा। उसने अगले दिन अमर से बेटे की सारी बात कही और कहा "कि तुम पैसे दो मैं खुद जाकर सामान दिला दूँगी या तुम ही जाकर दिला दो। "।

" लेकिन अमर ने उसे ही झूठा साबित करते हुए कहा"रिया तुम्हें शर्म नहीं आती। पैसे खुद के लिए चाहिए और बच्चें का नाम ले रही हो। दिनभर घर में बैठ कर जो सिर्फ फरमाइश आती है ना बाहर जाकर काम करना पड़ेगा तो पता चलेगा। कि पैसे कही पेड़ पर नहीं उगते। मेहनत करने से आते है। "

आज रिया के सब्र का बांध टूट गया। उसने कहा "अमर मैं ये घर छोड़कर जा रही हूं.क्योंकि मैं नौकरानी बन कर और नहीं रह सकती। जिस घर में अपनी पसंद का खाना और कपड़ा भी नसीब ना वहां रह कर क्या फायदा?अगर तुमको मुझपर विश्वास ही नहीं ।तो कोई मतलब नहीं बनता। मेरा यहाँ रहने का जब तुमको ही सबकुछ खुद से करना है। तो घर के बाकी बचे काम भी अब तुम खुद ही करो। तुम्हे ये लगता हैं कि मैं दिनभर घर में बैठी रहती हूं तुम्हारे पैसे लुटाती हुँ। पैसों के लिए झुठ बोलती हुँ। तुम्हारे हिसाब से घर में कोई काम नही। मैं पैसों का महत्व नहीं समझती। तो ठीक है। अब आज से बल्कि अभी से इस घर के गृहलक्ष्मी भी तुम गृहस्वामी भी तुम और करो बचत। संभालो अपना घर ,बच्चे और अपनी माँ भी। अब मैं तभी लौट कर इस घर में आऊंगी। जब मुझे पूर्ण गृहणी के अधिकार प्राप्त होंगे।


शाम को जब अमर ऑफिस से लौटा तो ।घर पूरा अस्त व्यस्त था। उसे उम्मीद भी नहीं थी कि रिया सच में ऐसा कदम उठाएगी। गुस्से में उसने भी रिया को फोन नहीं किया। काम करते करते मन ही मन बुदबुदाने लगा। तुमको क्या लगता है? कि तुम्हारे बिना मेरा काम नहीं चलेगा। मैं चला कर दिखाऊंगा।

उस दिन उसने खुद घर के सारे काम किये। क्योंकि दोनो बेटों को कुछ आता नहीं था और माँ से कुछ भी हो नहीं पाता था अगले दिन रविवार था उसने इधर उधर बात करके दोस्तों से एक कामवाली की व्यवस्था की। लेकिन उसने भी अमर की शर्तों पर काम करने से मना कर दिया।

एक दूसरी कामवाली बाई उसने ढूंढी। पहले दिन ही उसके हाँथ का खाना खाते माँ ने अमर से कहा" बेटा इसमें तो तेल ज्यादा और स्वाद भी नहीं है। अमर ने गुस्से में देखा तो सब बिना खाये ही उठकर चुपचाप चले गए। अमर ने जैसे ही खाना चखा ।उसको लगा उल्टी हो जाएगी। उसने भी खाना छोड़ दिया। शाम को जब उसने बाई से कहा "कि आज खाना थोड़ा ठीक नहीं बना था"

बाई ने कहा "साहब एक बात साफ साफ सुन लो। काम जमता है तो बोलो वरना दूसरी बाई ढूंढ लो। इतना सुन के मैं काम नहीं करने वाली। मुझे और भी बहुत काम है। "

बाई का जवाब सुन अमर शान्त हो गया।

कामवाली ने उसके लाये हुए सामान को एक सप्ताह में खत्म कर दिया। और अमर से कहा "साहब सामान लाओगे तो ही कल किचन में खाना बन पाएगा। पूरा राशन खाली है। "


अमर ने अपना हाँथ सिर पर रखते हुए कहा",क्या इतनी जल्दी"?

"जल्दी कहाँ ???"साहेब!" मैंने तो माँजी को बताया था। " अब माँजी की गलती उन्होंने आपको नहीं बोला तो। और इतना थोड़ा थोड़ा सामान परिवार वाले घर में कौन रखता है।

अमर ने कामवाली के एक सप्ताह के पैसे पकड़ाए और कहा"सुनो!कल से मत आना। "

जैसे तैसे एक सप्ताह बीते। कंजूस अमर के खर्चे एक सप्ताह में ही डबल हो गए।

उसे रिया की याद आने लगी।

अगले दिन अमर ने सुबह सुबह बच्चों और माँ से कहा सब तैयार हो जाओ।हम सब चल रहे है।

लेकिन कहा"किसी के पूछने की हिम्मत ना हुई। "

सब कार में बैठे । अमर ने कार ले जाकर रिया के मायके रोकी।

दरवाजा रिया की माँ ने खोला"अरे!दामादजी, समधनजी, बच्चें सब आये है रिया बिटिया जल्दी आ बाहर। "

रिया ने अपनी सास के पैर छुए । और अमर को देखकर भी अनदेखा किया। बच्चें माँ से गले लग गए।

तभी रिया की माँ ने कहा "समधनजी बहुत अच्छा किया। रिया को भेज कर हमारा भी मन लग गया। रिया को पूछा" कि बच्चों को भी ले आती तो उसने कहा"माँ लेकिन माँजी अकेली हो जाती। "अगली बार सब आएंगे। "

रिया जा," बेटा चाय नाश्ता तो बना दे। "

अमर ने कहा" बाबूजी! मुझे वाशरूम जाना था। अभी आता हूं। "

कह के चुपके से दबे पांव किचन में जाकर। रिया को पीछे कमर से पकड़ कर कहा"रिया!मुझे माफ़ कर दो। प्लीज्! अपने घर चलो। वो घर तुम्हारे बिना अधूरा हैं। मुझे मेरी गलती समझ आ गयी है। अब तुम्हारे काम तुम ही करोगी।


किसी ने सच ही कहा है"बिन गृहिणी घर भूत के डेरा"

यहाँ सब क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में.......

इतने में रिया मुस्कुरा पड़ी। यहाँ किसी को कुछ पता नही। भाभी को मायके जाना था उनकी माँ बीमार थी। और भाई को ऑफिस के काम से एक सप्ताह के लिए बाहर तो माँ ने मुझे फोन करके कुछ दिन के लिए बुलाया। कि मैं आ जाऊ उनकी मदद के लिए उनकी तबियत नहीं ठीक थी। मैंने भी मौके का फायदा उठाया। तुम्हारी गलती का एहसास कराने के लिए। क्योंकि उसदिन तरुण की बातों ने मुझे झकझोर कर रख दिया।

इसलिए मुझे ये कदम उठाना पड़ा।

अच्छा अब तुम जल्दी जाकर अपना सामान पैक करो। मैं अब और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। आज से तुम ही पूर्ण रूप से उस घर की गृहलक्ष्मी हो।

पूरे रास्ते बच्चें रिया को बाईयों के काम और अमर की बातें बताते और हँसते रहे।

सब ने एक साथ मिलकर अपनी अपनी पसंद का रात का खाना होटल में खाया। रास्ते में जैसे ही अमर ने कहा"बच्चों अब हम आइसक्रीम भी खाने चलेंगे। " बच्चें खुशी से चीख पड़े .....

येहहहहहहह...

रिया बच्चों और सास के चेहरे पर खुशी देखकर खुश थी। घर पहुँचकर रिया ने सब कुछ सही ढंग से रखा। तभी अमर ने रिया के हाँथ पर पैसे और डेबिट कार्ड रखते हुए कहा"ये लीजिये मेरी अर्धांगिनी , इस घर की गृहलक्ष्मी जी जो समझ आये कीजिये। अपना घर अब सम्भालिए। " औऱ ठहाके लगा के दोनों हँस पड़े।

दोस्तों उम्मीद करती हूं मेरी ये नई रचना आप सबको पसंद आएगी। किसी त्रुटी के लिए माफ करे। इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना नही। कहानी का सार ये है कि पत्नी और परिवार के हर सदस्य को उसके हिस्से का अधिकार दे। बजाय सारा काम खुद के कंधों पर ले के महान बनने के। खुलकर समीक्षा करें। पसंद आने पर लाइक शेयर कमेंट और मुझे फॉलो भी करे।



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