Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

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Ragini Ajay Pathak

Drama Tragedy Others

लोहे का पिटारा

लोहे का पिटारा

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पीले खतों ने यादों की पिटारी खोल दी थी आज| अमन और बाबू जी को आज सासूमाँ की याद आ गयी थी, उनको गुजरे हुए काफी समय हो गया था। अमन जब 15 साल के थे तभी उनका स्वर्गवास हो गया था।

"बाबूजी मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं तो कमरे की सफाई कर रही थी कि तभी ये मेरे हाथ में आ गया। कसम खा के कहती हूं मैंने इसे खोल के नहीं पढ़ा। बाबूजी प्लीज कुछ बोलिये ऐसे चुपचाप आप लोगों का होना मुझे डरा रहा है" सीमा बोले जा रही थी|

लेकिन शिवकुमार जी को तो इन पीले खतों ने सावित्री जी से जुड़ी सभी यादों के पिटारे खोल दिये थे। वो वहाँ से बिना कुछ बोले ही चले गए।

"अमन तुम तो कुछ बोलो| ऐसा क्या है इन पीले खतों में? मैंने तो बाबू जी की मदद करने के लिए ये सब किया। इतना भारी लोहे का पिटारा अपना खुद ही उतारते साफ करते और रखते हैं। अब उनकी उम्र कहाँ रही? इतने भारी सामान उठाने की कितनी बार बोला| कि इसका सामान अलमीरे में रख दूँ पर नहीं| उनको तो इस लोहे के पिटारे से ही प्यार हैं। माँजी की यादों से इतना प्यार है तो माँजी से कितना करते रहे होंगे इसलिए सब इनको मजनूं बुलाते हैं। ऐसा क्या है इन पीले खतों के पिटारे में|""


"चुप करो! सीमा तब से कुछ भी बोले जा रही हो। जानना है ना लो पढ़ लो।" अमन ने वो पीले खत सीमा के हाथ में रख दिए।

"सुनो सीमा....तुम्हें लगता है, ना कि बाबू जी माँ को बहुत प्यार करते थे तो नहीं ऐसा नहीं था। बाबू जी शहर में नौकरी करते थे और उनकी वहाँ अलग दुनिया थी किसी और औरत के साथ। मेरी माँ गाँव में मेरे दादा दादी की सेवा करती और इनके आने का इंतजार हर रोज करती। बाबूजी ने कभी भी माँ से प्यार किया ही नहीं था। वो तो उन्होंने अपने माता पिता के दबाव में आ के माँ से शादी कर ली और ये बात सबसे छिपा के रखी। माँ अनाथ थी मामा मामी के साथ पली बढ़ी थी तो उन्होंने विरोध करने की बजाय अपनी किस्मत मान के इंतजार करना शुरू कर दिया कि कभी तो बाबूजी को उनपर तरस आएगा। हर रोज उनको एक पत्र लिखती पर कभी भेजने की हिम्मत नहीं हुई। लिख के अपने इस लोहे के बक्से में डाल देती। इस उम्मीद में की कोई जवाब ना आये और कही पढ़ के बाबूजी और गुस्सा हो गए तो। लेकिन उनका इंतजार इंतजार ही रह गया। उनकी लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत भी रखती। शराब भी खूब पीते थे। और शायद उसका नशा था या माँ पे भगवान का रहम की शादी के चार साल बाद मेरा जन्म हुआ।

बाबूजी को जब ये बात पता चली तो बहुत खुश हुए क्योंकि उनकी शहर वाली पत्नी को बच्चा नहीं हो सकता था।


मेरे जन्म के बाद मुझसे मिलने के बहाने अब उनका गाँव आना जाना शुरू तो हुआ पर माँ के लिए कुछ नहीं बदला था मां सिर्फ बाबूजी को देख के ही खुश हो लेती। दबी आवाज़ में ये भी कह देती |कि सुनिये जी हो सके तो शराब पीना छोड़ दीजिए। जवाब भी मिल जाता तुम अपने काम से काम रखा करो।

अचानक एक दिन शहर से फोन आया कि बाबू जी की तबीयत बहुत खराब हैं। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। सभी का रो रो के बुरा हाल था ये समाचार सुन के।

मैं 12 साल का था तब मैं और माँ शहर आये पहली बार और अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टर ने बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हो गयी हैं। अगर डोनर नहीं मिला तो बचना मुश्किल है। मुझे अच्छे से याद है। करवा चौथ का व्रत था माँ का उस दिन।

पहली बार अपनी सौतन से मिली लेकिन बड़ी ही शालीनता से मैं आज भी सोचता हूँ किस मिट्टी की बनी थी माँ| कभी कोई शिकायत नहीं। हमें अस्पताल के बिल और कमरा दिखा के पता नहीं कहाँ चली गयी? उसके बाद वो कभी नहीं आयी। पता नहीं कहाँ चली गयी? माँ ने अपनी किडनी देने की बात कही तो डॉक्टर ने कहा इसके लिए हमें कुछ टेस्ट करने होंगे। टेस्ट हुए और माँ ने बाबूजी को अपनी एक किडनी दी।

बाबूजी का ऑपरेशन सफल रहा। अस्पताल से छुट्टी मिलते हमलोग बाबूजी को गाँव ले के आ गए। इसबार बाबूजी ने कोई विरोध नहीं किया। ना ही अपनी पहली पत्नी के बारे में कुछ भी पूछा। इसके बाद ना वो आयी ना बाबूजी ने पता किया कभी। माँ बाबूजी का पूरा ख्याल रखती। अब बाबूजी का मन भी माँ के लिए बदलने लगा था। जो भी मिलने आता बाबूजी से मां की तारीफ करते ना थकता। और बाबुजी सहमति में बस मुस्कुरा देते। पर इन सब में माँ ये भूल गयी कि आराम और सेवा की जरूरत उनको भी हैं।

ज्यादा काम होने के कारण वो अपना ध्यान और परहेज ना कर पाती जिसकी वजह से उनकी हालत और खराब हो गयी और माँ हमसब को छोड़ के इस दुनिया से चली गयी |लेकिन जाते जाते मुझसे ये वादा भी ले लिया कि मैं हमेशा बाबूजी का ख्याल रखु और माँ के साथ हुए व्यवहार के लिए उन्हें दोषी ना समझूँ । आखिरी समय में माँ ने बाबूजी को अपने लोहे के बक्से की चाभी दी| ये कहते हुए की उसमें उनके लिए कुछ है ।पता है सीमा वो कौन सा दिन था? करवाचौथ का और उनका जन्मदिन भी।

माँ के जाने के बाद बाबूजी ने जब माँ का दिया हुआ लोहे का बॉक्स खोला और चिट्ठी पड़ी तो उनके आंसू नहीं रुक रहे थे। उन्हें लगा चिट्ठियों में कोई तो शिकायत होगी पर नहीं उसमें तो एक तरफा मोहब्बत का प्यार भरा संदेश था। मेरी माँ ने कभी शिकायत नहीं की| किस्मत वाली मां नहीं सीमा किस्मत वाले बाबूजी थे। उस दिन से हर साल बाबूजी माँ के लिए करवा चौथ का व्रत करते हैं। माँ को अपने हिस्से का प्यार तो मिला पर उनके ना रहने पे। लो चाहो तो पढ़ लो ये पत्र।

आज सीमा निरुत्तर थी सामने सासूमाँ की फ़ोटो को देख के बस यही सोचे जा रही थी कि आज तक जिनकी किस्मत से वो जलती थीं। हर रोज अमन को बाबूजी जैसा बनाने की दुआ मांगती थी आज शुक्रगुजार थी भगवान की।

दोस्तों बहुत बार ऐसा होता हैं कि हम अपनी जिंदगी की तुलना दूसरों से करने लगते हैं बिना सच जाने की क्या वाकई उस इंसान की जिंदगी उतनी ही खूबसूरत है जितनी दिख रही हैं। या कोई छिपा हुआ दुःख भी है। जो हम नहीं देख पा रहे है। और दुखी रहने लगते हैं। तो कृपया ऐसा ना करते हुए जो है जितना हैं उसमें ख़ुश रहें।



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