Manju Saraf

Abstract

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Manju Saraf

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शिक्षकों ने दी सही राह

शिक्षकों ने दी सही राह

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एक बच्चे के जीवन में स्कूल के पहले दिन से लेकर कॉलेज की पढ़ाई तक शिक्षक वर्ग का जो महत्व है उसे नकारा नहीं जा सकता । शिक्षक ही बच्चे को गढ़ते हैं और उनके भविष्य का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । शिक्षक दिवस का भी अपना महत्व हैआपने इस आलेख के द्वारा हमें हमारे पुराने दिनों की याद दिला दी ।बहुत सुनहरे दिन थे स्कूल के , खूब पढ़ते थे हम और हमेशा अपनी क्लास में अच्छे नम्बरों से उतीर्ण होते , हमारे सभी शिक्षक भी हमें बहुत पसंद करते ।

स्कूल से निकलने के बाद कॉलेज जाने का अहसास ही रोमांचित कर देता है , कहाँ स्कूल में रोज यूनिफॉर्म में जाना और कॉलेज रंगबिरंगे कपड़ों में ,सोच कर ही मन खुश हो जाता है ।

 हम तीन सहेलियां थीं जो क्लास सेवंथ से साथ ही पढ़ रही थीं, स्कूल में हमारी दोस्ती के चर्चे मशहूर थे और अब हमने एक ही महिला महाविद्यालय में एडमिशन लिया ।

को -एजुकेशन वाला शहर से दस किलोमीटर दूर था और हमारे अभिभावक भी वहाँ भेजने को राजी न थे सो हमने यहीं एडमिशन लिया ।वो समय भी ऐसा था जब अभिभावक जो कहते बच्चे मान लेते ,आज की तरह नहीं कि अपने मन की ही करें ।

खैर , कॉलेज में सारे प्राध्यापक बहुत अच्छे थे जिनमें कुछ महिलाएं और कुछ पुरुष प्राध्यापक थे । हम लोगों की हिंदी की क्लास त्रिपाठी सर लेते थे ,जिनके सिर पर बाल कम थे या यूँ कहें थोड़े गंजे ही थे । पढाते भी बहुत अच्छा थे वे । 

एक दिन की बात है ,हम तीनों सहेलियां पढ़ने के मूड में नहीं थीं , हमें कुछ शैतानी सूझ रही थी हम उस दिन सबसे पीछे की बेंच पर जा बैठे ,सर ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिख रहे थे मैंने उनकी तस्वीर बनाई और अपनी सहेली को दी ,उसने अपने बगल वाली सहेली को पास कर दी वह तस्वीर, मुँह दबा कर हम हँस रहे थे और वह तस्वीर आगे बढ़ते -बढ़ते सबसे सामने वाली बेंच तक पहुंच गई सभी लड़कियाँ हँसने लगी , सर ने पूछा -"आप सब क्यों हँस रही हो ।" तो एक लड़की ने वह तस्वीर उन तक पहुंचा दी । 

अब हमारे काटो तो खून नहीं, आज बहुत डांट पड़ने वाली है,शायद प्रिंसिपल से शिकायत भी ना कर दें सर।सर थोड़ी देर तक देखते रहे तस्वीर फिर पूछा -"किसने बनाई है।"

सब का इशारा मेरी तरफ । "हे भगवान बचा ले मेरे मन से प्रार्थना निकलने लगी ।"

"उठिये आप " सर ने कहा ।

"जी जी सर वो " बामुश्किल बस यही निकला मुंह से ।

" तस्वीर बढ़िया बनी है पर आपने इस तस्वीर में मेरे बाल ज्यादा बना दिये हैं जबकि मेरे तो बाल हैं ही नहीं "-और वे जोर जोर से हँसने लगे ।

सभी लड़कियां हँसने लगी ।

 मुझे बहुत बुरा लगा ,अपने आप पर गुस्सा भी आया ,मैंने उसी वक्त सर से माफी माँगी ।त्रिपाठी सर ने कहा "कोई बात नही कभी- कभी हँसी -मज़ाक भी जरूरी है । " बस पढाई के समय ये सब मत कीजिये ।बाद मैं मैंने अपनी सहेलियों को नाराजगी भी जताई कि तुम लोगों ने वह तस्वीर सर तक क्यों पहुँचने दी ।उन्होंने कहा कि "सब देखने के चक्कर में आगे बढ़ाती गईं और वह सर तक पहुँच गई ।

 उस दिन के बाद हमने कान पकड़े की अब सिर्फ पढ़ाई करनी है क्लास में ।

आज इस घटना को काफी वर्ष हो गए पर ,जब भी कॉलेज के दिनों की याद करती हूँ ,इसकी याद जरूर आ जाती है।शिक्षकों का महत्व तब और समझ आया जब स्वयं प्रिंसिपल बने तब महसूस हुई कि कितनी बड़ी जवाबदारी हम पर है अपने विद्यार्थियों को सही शिक्षा और मार्गदर्शन देने की , आज इस मंच के माध्यम से अपने स्कूल कॉलेज के सभी शिक्षकों को नमन क़रतीं हूँ ,जिनके सच्चे मार्गदर्शन के कारण आज इस पद पर पहुँची हूँ ।



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