Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Kamini sajal Soni

Abstract

4.6  

Kamini sajal Soni

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शीर्षक - नई सुबह का आगाज

शीर्षक - नई सुबह का आगाज

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आज सुबह से ही मीना को बहुत डांट पड़ रही थी कारण यह था कि वह गली में बच्चों के साथ खेल रही थी और उसने कपड़े अपने भाई के पहने हुए थे।

बस इसी बात को लेकर दादी चिल्ला रही थी कोई संस्कार नहीं दिए तुमने अपनी बेटी को...... हमेशा लड़कों के जैसे कपड़े पहन कर घूमती रहती है।

जब देखो तब आवारागर्दी घर का तो कोई काम इन महारानी से होता नहीं और दादी के यह शब्द नेहा (मीना की मां) को प्रतिपल छलनी किए जा रहे थे। क्या हुआ अगर उसने अपने भाई के कपड़े पहन लिए मेरे लिए तो दोनों एक समान है। दोनों बच्चे मेरी आंखों के तारे हैं फिर एक के साथ हर बात में छूट और दूसरे बच्चे के साथ हर बात में पाबंदी यह बात नेहा के बर्दाश्त से बाहर थी।

पर वह कर भी क्या सकती थी ?

दादी तो घर की सर्वे सर्वा थी उनके खिलाफ कोई चूं तक नहीं कर सकता था ।

हम बचपन से देखते हैं कि हर परिवार में कोई ना कोई एक ऐसी महिला या तो दादी के रूप में या नानी के रूप में अवश्य होती हैं जो परिवार के सदस्यों में भेदभाव की भावना रखती है।

मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि एक स्त्री ही भेदभाव की जनक होती है अगर हम स्त्रियां हैं स्त्रियों को समान नजर से देखने लगे तो समाज से 80% भेदभाव खत्म हो जाए।जब एक सास अपनी बहू को बेटी के समान समझने लगे और एक मां अपने बेटे और बेटी के भेद को भुलाकर दोनों की परवरिश समान रूप से करें तो शायद दुनिया बराबरी वाली कायम हो सकती है।

हमारे समाज में कई सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि बेटे ही परिवार का नाम आगे बढ़ा सकते हैं बेटियां नहीं ? किसी ना किसी हद तक यह मानसिकता हमारे समाज को दूषित करते हैं तथा दो लिंगों के बीच में असमानता के बीज बो देती है।

जब एक परिवार में बच्चे दादी के द्वारा या नानी के द्वारा भेदभाव की भावना देखते हैं तो उनके ऊपर भी इन बातों का गहरा प्रभाव पड़ता है।

लेकिन आज नेहा ने इन सभी दकियानूसी बातों के प्रति आवाज उठाने का फैसला कर ही लिया और चल पड़ी नई सुबह का आगाज करने।


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