शीर्षक यथार्थ के धरातल से परे
शीर्षक यथार्थ के धरातल से परे


रागिनी और नीरज की पूरी रात आंखों आंखों में ही गुजर गई मनुष्य को पहचानना सचमुच कितना कठिन काम है शायद दुनिया के सारे कठिन कार्यों में से यह एक कार्य है।
जिस व्यक्ति से हम लंबे समय तक परिचित हैं और प्रतिदिन मिलते हैं फिर भी यह नहीं जान सकते कि उसके मन के अंदर क्या है ?
काश छह इंद्रियों के अलावा इंसान के पास एक सातवीं इंद्रिय ऐसी भी होती जिससे वह सामने वाले के मन की बात समझ सकता या कोई उसके पास ऐसी जादुई ताकत होती जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है इंसान हमारा अच्छा सोच रहा है या बुरा
लेकिन सुबह तो अपने तय वक्त पर आती ही है सूरज भी अपने सही समय उगाचिड़ियों की चहचहाहट मुर्गे की बांग सब कुछ तो समय पर हो रहा था।
समय की नियति ही कुछ ऐसी होती है की दुनिया में कुछ भी होता रहे लेकिन वक्त कभी परिवर्तित नहीं होता वह सतत अपनी चाल चलता ही रहता है।
जिंदगी में हमेशा पूनम की चांदनी नहीं मिलती अमावस्या और ग्रहण भी सहने पड़ते हैं कितनी आसानी से रागिनी नीरज को समझा रही थी लेकिन दिल में तो उसके भी उथल-पुथल मची हुई थी कहते हैं ना कि जिंदगी कितनी ही अच्छी क्यों ना हो मगर जिंदगी परीलोक जैसी नहीं होती है और अगर होती भी है तो उसमें बहुत सारे जिन्न होते हैं जिनका मुकाबला इंसान को हर हाल में खुद ही करना पड़ता है।
नीरज से बात करते-करते रागिनी अपनी कल्पनाओं की दुनिया में खो गई जहां सिर्फ वह है और नीरज दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले प्यार से एक दूसरे को निहार रहे हैं कोई गम नहीं कोई दुख नहीं जिंदगी से कोई शिकायत नहीं जैसे उन दोनों की मोहब्बत का एक नया ब्रह्मांड बन गया होजिसमें रागिनी धरा है और नीरज उसका अनंत आकाश
चारों और सिर्फ मोहब्बत ही मोहब्बत ऐसा लग रहा था जैसे पृथ्वी पर कहीं कोई मलिनता नहीं है किसी के दिल में कोई हिंसा की भावना नहीं कुटिलता भी नहीं और क्रोध तो इंसानों से कोसों दूर चला गया है!
कैसी स्वप्नलोक सी दुनिया में विचर कर रही थी रागिनी
शायद इस स्वप्नलोक की दुनिया मैं रागिनी के लिए जीवन का मतलब है 'सुख' जीवन का मतलब है 'प्यार' जीवन का मतलब है निश्चिंतता
यथार्थ के धरातल से कहीं प्यारी है यह स्वप्नलोक की दुनिया काश आज चलता हुआ वक्त यहीं थम जाए।