शीर्षक-फिसलता हुआ वक्त
शीर्षक-फिसलता हुआ वक्त


आज परिवार के साथ दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण देखते हुए जब उसमें विदाई का दृश्य आया तो रमा का मन सहसा पुरानी यादों में खो गया।आंखों के सामने चलचित्र की भांति पुरानी यादें घूमने लगी।
साथ ही साथ एहसास हुआ कि माता-पिता को अपना दिल कितना कठोर करना पड़ता है अपनी बेटी के विदाई के लिए। राजा जनक जैसे तपस्वी भी अपनी बेटी की विदाई पर फूट फूट कर रो पड़े यह दृश्य देखकर आंखों से अविरल अश्रु धारा बहने के साथ ही माता-पिता और भाई बहनों की यादों का सागर दिल में उमड़ पड़ा।
मेरे पिता जब मेरे लिए वर् खोजने जाते तो घर वापस आकर मां से हमेशा यही कहते हैं कि मेरा मन बिल्कुल नहीं करता बेटी का विवाह करने के लिए हमने इतने लाड प्यार से और नाजो से पाला है पता नहीं कैसा ससुराल मिलेगा कैसे लोग मिलेंगे और जब मैं यह बात छुपकर सुनती तो हृदय में पित्रस्नेह और बढ़ जाता । और मेरा छोटा भाई सदैव यही कहता कि मैं तो अपने जीजा जी को यहीं पर रहने बुलाऊंगा मैं अपनी दीदी को कहीं नहीं जाने दूंगा और मैं कितने लाड से उसको गले लगा लेती थी उसकी बाल सुलभ बातें और बालहठ सारे रीति रिवाज और सामाजिक दायरों से परे थी।
मेरी शादी के समय मेरा छोटा भाई बहुत छोटा था मुश्किल से 10 साल का और मैं भी उसको इतना प्यार करती थी कि उसके बगैर ससुराल जाने की कल्पना से ही सिहर उठती।
छोटी बहनों के प्यार का वर्णन करने बैठूं तो शायद शब्द ही कम पड़ जाए सचमुच कितनी मधुर स्मृतियां होती हैं मायके की।
बेटियां कभी भी माता पिता पर बोझ नहीं होती पर समाज के जो रीति रिवाज होते हैं उनका तो पालन करना ही पड़ता है वरना कौन अपने कलेजे के टुकड़े को किसी अनजान और अपरिचित के हवाले कर दे। सचमुच बेटी की विदाई माता-पिता के जीवन का सबसे कठिन समय होता है।
विदाई के समय ऐसा लगता है ...... काश ! फिसलते हुए वक्त को रोक ले यह घड़ी यह वक्त यही रुक जाए।