बर्बादी की ओर कदम
बर्बादी की ओर कदम


हिना और पंकज दोनों आपस में बेइंतहा प्यार करते थे समाज के विरुद्ध दोनों ने अन्तर्जातीय विवाह किया। दोनों का वैवाहिक जीवन हंसी-खुशी गुजर रहा था । दो छोटे-छोटे प्यारे बच्चों से आंगन की फुलवारी महक उठी।लेकिन पंकज की मां इस विवाह से खुश नहीं थी और वह हिना को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ती...... हिना के हर काम में मीन मेख निकालना तो जैसे उनकी आदत बन गई थी।जैसे ही पंकज घर आता उल्टी-सीधी बातें बना बना कर अपने मन से हिना के खिलाफ उसके कान भर् देती।
इसका परिणाम यह हुआ पंकज धीरे-धीरे शराब और सिगरेट के नजदीक जाता गया..... रोज रोज परिवार की कलह के बीच में सिगरेट के कश में अपना सुख ढूंढने लगा....
धीरे धीरे सदैव हंसमुख रहने वाला पंकज कब गंभीर होता चला गया कोई अनुमान नहीं लगा पाया हिना पूरी कोशिश करती कि उसका पारिवारिक जीवन तबाह ना हो लेकिन पंकज की मां के आगे हिना की एक न चली...... और एक दिन अचानक जैसा होने की आशंका हिना के मन में पनप रही थी वही हुआ......डॉक्टरों के मुताबिक ज्यादा सिगरेट और शराब के सेवन करने से पंकज का लीवर और फेफड़े खराब हो चुके था और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी.....
कितना रोई थी हिना दर-दर उसने मन्नतें मांगी हर डॉक्टर के दरवाजे पर सर झुकाया लेकिन कहीं से कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आई और अंततः एक दिन पंकज सबको रोता बिलखता छोड़ कर चल पड़ा अनंत यात्रा की ओर!मुस्लिम होने के कारण हिना को ससुराल में कोई जगह नहीं मिली मायके वाले तो कब का त्याग चुके थे शुक्र भगवान का उसने कुकिंग कोर्स सीखा था और दृढ़ निश्चय लेते हुए चल पड़ी कि................ "मैं ही काफी हूं" अपने बच्चों की परवरिश के लिए।
काश !!परिवार में कलह का वातावरण ना होता तो आज एक हंसता खेलता परिवार यूं बर्बाद ना होता।एक इंसान बर्बादी की ओर कदम तभी बढ़ाता है जब परिवार के लोग उसको मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगते हैं अगर उसको परिवार में पर्याप्त प्यार मिले तो वह कोई भी व्यसन का सहारा कभी ना ले ।