शीर्षक -खुशगवार पल
शीर्षक -खुशगवार पल


बारिश की छम छम बूंदों के साथ नीरज और रागिनी कितनी देर तक एक दूसरे की आगोश में खोए रहे .... अचानक नीरज थोड़ा रोमांटिक होते हुए बोला मैडम जी बारिश के साथ अब थोड़ा चाय और पकौड़े भी हो जाए पेट में चूहे धमाचौकड़ी मचा रहे हैं....... रागिनी भी नीरज के आगोश से निकलते हुए बोली जनाब आपको भी मेरी आधी मदद करनी होगी यूं ही बैठे बिठाए नहीं मिलेंगे चाय पकौड़े.....
थोड़ी ही देर में किचन से चाय और पकौड़े की खुशबू पूरे घर में तैरने लगी ।
रागिनी ने अपनी सासू जी उमा देवी एवं ससुर जी रमेश जी के कमरे में भी चाय और पकौड़े देकर आई ....
अपने और नीरज के लिए उसने वहीं बालकनी में ही कुर्सी टेबल लगाकर चाय और पकौड़े रख लिए। साथ ही साथ पुरानी यादों को ताजा करने के लिए अपनी शादी के एल्बम निकाल कर ले आई।
एक-एक करके एल्बम के पन्ने पलटना शुरू हुआ सबसे पहले सगाई की तस्वीरें देखी फिर शादी के सुंदर पलों को संजोए हुए एक-एक करके सारे दृश्य आंखों के सामने गुजरने लगे एकाएक रागिनी जोर जोर से हंसने लगी.....
क्या हुआ मैडम जी क्यों इस तरह खिल खिला रही हो नीरज बोला...
अब आज आप इतने अच्छे मूड में हो तो आपको बता ही देती हूं इस तस्वीर का राज...
खिलखिलाते हुए रागिनी बोली
राज.....कैसा ! राज ??
नीरज आश्चर्यचकित होते हुए बोला
रागिनी ने नीरज को विदाई के कुछ समय पहले होने वाली रस्मों की एक फोटो दिखाई..
नीरज को अभी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था
नीरज ! हां यह तो तुम्हारी कुलदेवी के पूजन वाली तस्वीर है ना शायद मेरे ख्याल से...
रागिनी का तो पेट पकड़ पकड़ कर हंस हंस के बुरा हाल हो रहा था शब्द बोल भी नहीं पा रही थी हंसी के मारे और नीरज परेशान हुआ जा रहा था कि ऐसी क्या बात है जो इतना हंस रही है।
जैसे तैसे अपनी हंसी रोक कर रागिनी बोली इस लाल कपड़े में लिपटी हुई जो हमारी कुलदेवी हैं मेरी हंसी की वजह वही है.....
क्या ! मतलब तुम्हारा
अच्छा बाबा रुको समझाती हूं विस्तार से रागिनी मुस्कुराते हुए बोली।
दरअसल बुंदेलखंड में विदाई से पहले पूजा के कमरे में वर और वधु दोनों से कुछ-कुछ रस्में करवाई जाती हैं जिसमें एक रस्म यह होती है..
एक लाल कपड़े में लड़की की चप्पलों को सुंदर थाल में लाल कपड़े में लपेटकर रख दिया जाता है और लड़के से बोला जाता है कि यह हमारी कुलदेवी हैं तुम इनकी पूजा करो।
अब जिनको पता रहता है वह मना कर देते हैं और जिन को नहीं पता होता है वह हंसी का पात्र बन जाते हैं।
नीरज के साथ भी यही हुआ था शायद नीरज के परिवार में इस तरह की रस्में नहीं होती थी
कितनी श्रद्धा भाव से नीरज रागिनी की चप्पलों की पूजा कर रहा था।
बस यही देखकर रागिनी की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी और तस्वीर का राज जानकर नीरज भी मंद मंद मुस्कुरा उठा।
पुरानी यादों को याद करते हुए नीरज भी बोला तभी मैं बोलूं कि जैसे ही मैंने पूजा शुरू की तो तुम्हारे वहां की सारी औरतें मुंह दबा दबा कर क्यों हंस रही थी अब समझ में आया तुम लोगों ने मुझे अपनी हंसी का पात्र बना लिया था।
सचमुच आज की बारिश के तो रंग ही निराले थे कितने वर्षों के बाद रागिनी नीरज का स्नेहिल सामीप्य महसूस कर रही थी। भी खुशगवार पल ही तो हमारे जीवन की अमूल्य धरोहर होते हैं। सहेज रही थी रागिनी खुशगवार पलों को अपने आंचल में।