MS Mughal

Abstract Classics Inspirational

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Abstract Classics Inspirational

शायरी के अंदाज़ हिस्सा १

शायरी के अंदाज़ हिस्सा १

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अज़ीज़ दोस्तों व अज़ीज़ क़ारिईन ए किराम, ( प्रिया पाठकों ) आज की मज़मून ए ख़ास में एक अहम मौज़ू को अपना मौज़ू ए सुखन बनाया हैं ता हम इस गुफ्तगू में शेर ओ शायरी में इस्तेमाल होने वाले कुछ आम अल्फाजों का जायज़ा लेंगे जो की अपने अपने मायनों के ब मुत्तालिक हैं तो आईए अज़ीज़ ए गिराम ब कायदा मौज़ू का आगाज़ करते हैं 

अज़ीज़ क़ारिईन ए किराम, ( प्रिया पाठकों ) बुलबुल ओ गुलाब के हवाले से अर्ज़ है कि अगर चे शायर किसी शायरी में गुलाब का ज़िक्र करता हैं तो उसका एक मतलब ये हैं कि वोह गुलाब के फूल की बात कर रहा हैं जो कि अपने रंग ओ खुशबू के सबब पसंद किया जाता हैं लेकिन ये बात दुनियावी शायरी के हवाले से दुरुस्त हैं

लेकिन जब हमारा शायर यानी रूहानी शायरी देखी जाए तो

उसमे तीन किस्म निकल के आती हैं 

पहला दुनियावी जिसकी मिशाल वो ख़ास फूल है जिसे गुलाब कहते हैं 

दूसरा इश्क़ ए मजाज़ी के हवाले से देखा जाए तो गुलाब के मायने बदल जाते हैं मिशलन 

 "मुहब्बत, हुस्न ए माशूक, आशिक़, मेहबूब, मुहीब"

ओर तीसरा इश्क़ ए हकीकी जिसका सीधा ताल्लुक खुदा से हैं 

यानी अगर चे शायर ने दुनियावी शायरी के हवाले से गुलाब लफ़्ज़ इस्तेमाल किया हैं तो उसका मतलब वो फूल की बात कर रहा हैं 

अगर शायर मजाज़ी अंदाज़ से गुलाब लिख रहा हैं तो उसका मायना मेहबूब और आशिक से मुराद किया गया गया हैं 

ओर अगर शायर हकीकी अदा से गुलाब लिख रहा हैं तो उसे सीधा खुदा से जोड़ा जाएगा 

अब ये बात तो गुलाब की रही जो की अपने अपने तसव्वुर ओ नजरियात से सब की दुरुस्त हैं 

आम तौर पर फ़ारसी रिवायात से मालूम होता हैं कि गुल ओ बुलबुल अल्फाज़ का ताल्लुक इश्क़ ओ मुहब्बत से हैं जिसमें बुलबुल को गुलाब का आशिक़ कहा जाता हैं जो की गुलाब के बागों में गश्त लगाती हुई देखी जा सकती हैं, बुल बुल को गुलाब से इक तरह का इश्क़ होता हैं कि वोह इस पर बैठती हैं 

लेकिन गुलाब के कांटे उसे रौकते हैं , जो कि रकीब कहलाते हैं 

आम तौर पर एक मेहबूब से मुहब्बत करने वाले दो शख्स हो तो वो एक दुसरे के रकीब कहलाते हैं 

वैसे ही एक रकीब गुलची ( माली ) भी कहलाता हैं जो की गुलाब को तोड़ कर बाज़ार में बेच देता हैं 

शेर ओ शायरी में ऐसे कई अल्फाज़ हैं जिनका ताल्लुक इश्क़ ओ मुहब्बत से हैं जो की आम तौर पर लोग नहीं समझ पाते जैसे की 

"शम्म ओ परवाना, कातिल ओ मकतूल, बीमार ओ चरागार

फरहाद ओ शिरीन, महमूद ओ अयाज़, गुल ओ बुलबुल,

साकी ओ पैमाना , जाम ओ पैमाना, मय ओ मयखाना, 

दिल ओ दीवाना, गुल ओ गुलज़ार, मस्त ओ मस्ताना"

थोड़ा थोड़ा हर चीज़ मैं इख्तिलाफ हैं जो कि पढ़ने वाला अपनी सोच के मुत्तालिक समझता है।


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