बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं
बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं
एक सब्जी फरोश ( सब्जी बेचने वाला ) और उसके दो फरजंद ( दो बच्चो ) की तरबियत
अज़ हमह ए मा अज़ीज़ ए दिल आज से कई दिन कब्ल ( पहले ) की एक दास्तां है की कई रोज़ पहले शब से बेदार हुए तो अंदेशा हुआ की हमारी गर्दन चुप बंद ( अकड़ ) गई है
और बे तहासा दर्द कर रही है
इस हाल ओ सूरत में सब शनास है की दर्द की शिद्दत क्या होती है
और हम पहले से ही ऊस्तुख्वान ए पुश्त ( पीठ की हड्डी ) के मर्ज़ से हल्का ए पुश्त कमतर खम शूद ( पीठ से हल्का सा झुके हुए भी है ) तो इस हाल से परेशान और कम बख्त गर्दन के दर्द की शिद्दत से काफी हैरान थे और काम का बौज़ सर पर था
मफहुम ( समझ ) कुछ नहीं आ रहा था की आखिर कार करे तो करे क्या आराम कर नहीं सकते थे
इस हाल में जब हम हमारे कामों को अंजाम देने के लिए हमारे कासाने ( घर ) से बाहिर निकले और तकरीबन मगरिब के वक्त ( शाम के वक्त ) सारा काम खत्म कर घर की और लौट रहे थे तब
सर ए राह एक चौराहा आया जहा से हमें राह के एक और से दूसरी ओर जाना था
लेकिन राह पर बेश तर गाडियां आ रही थी और जा रही थी
गर्दन के दर्द से गर्दन एक ओर घूम नहीं पा रही थी जिस के सबब दाई ओर देखने के लिए पुश्त को दाई ओर से घुमाना पड़ रहा था तो हम इस हाल में राह के दूसरे किनारे जाने के लिए गाड़ी देख रहे थे की कही हमारी नज़र न रहें और कोई गाड़ी हम से टकरा न जाए
इतने में हमारा पुश्त ( कमर ) से दाई ओर घूमना हुआ और पहले से ही बा दस्तूर पुश्त का नीचे की ओर झुकाव हमारे इस हाल में एक सब्जी फरोश ( सब्जी बेचने वाला ) का अपने दो फरजंद ( दो बच्चो ) के साथ उनकी बाइक से गुज़र हुआ उनकी निगाह हमारे इस हाल पर पड़ी
तो वो सब्जी फरोश ( सब्जी बेचने वाला ) अपने दो फरजंद ( दो बच्चो ) से हंस कर कहने लगा की देखो बेटा वो कुजदार ( कुबड़ा ) कैसे चल रहा है
उसका ये कहना था इतने में उसके दोनो फरजंद हमारी और देख कर सदा लगाने लगे कुबड़ा कुबड़ा
सद अफ़सोस की आज कल लोग अपने फरजंद ( बच्चे ) की तरबियत और तालीम किस तरह कर रहे है
इस तरह की तालीम देकर वो क्या दिखाना चाहते है
किस हद तक वो खुद अपनी नस्लों को अपने ही हाथो से तबाह कर रहे है
इस तरह की बद ज़ुबानी व बद अखलाकी सीखा रहे है
इस हवाले से खुद के लिखे कुछ शेर अर्ज़ है
'हसन' खूब चश्म इर्क़ ज़हब उज़ हस्त
के गुफ़्त ओ शुनूद, गुफ़्त जुज़ नेस्त
( हसन अच्छी निगाह पेड़ की जड़ों की तरह होती है जो नस्ल दर नस्ल फैलती रहती है
जब की तर्क वितर्क वाली बाते बातों का हिस्सा नहीं होती )
बद कार ओ बद बख्त शख्स ए हयात
शामिल ए हयात ओ मर्ग ए बुज़ हस्त
( बेकार काम करने वाले बद मिजाज़ी की ज़िंदगी
भेड़ बकरियों के जीने और मरने के बराबर है )
चुनाँचे,
अपनी नस्लों को इस तरह की बे कार ओ बद ज़ुबानी से दूर रखे और उन्हें इज़्ज़त ओ मआब की राह सिखाए
हत्ता की आज ये आम हो चुका है की जब घर में कोई छोटा बच्चा जो की नया नया बोलना सीखा हो वो बद जुबानी ( गाली ) देने लगता है तो घर के लोग बड़े खुश होते है और फूले नहीं समाते और दीगर अफ़राद के आगे बच्चे को ले जा कर कहते है की
बेटे चाचू या मामू को गाली देकर सुनाओ और जब वो बेटा उनके आगे गाली देता है तो लोग और खुश होते है
चुनाँचे
इन तमाम चीज़ों से खुद भी बचना चाहिए और ओरों को भी बचाना चाहिए
शुक्रिया .......
