नौ खैज़ हुस्न ए होशरूबा बला
नौ खैज़ हुस्न ए होशरूबा बला
हमारा दौर ए बचपन ज्वाइंट फैमली गुज़रा जिसमे घर में कम से कम 20 लोग रहते थे हम 3 भाई बहन और 3 चचेरे भाई बहन और 3 बड़े पापा के बच्चे और हम सब के वालिद वाल्दा दादा और दादी को मिला कर हम 15 ओर 5 घर ओर दुकान पर काम करने वाले नौकर रहते थे
हम घर के बच्चों को हमारी दादी हमेशा घर के पिछले हिस्से में जाने के लिए मनाअ किया करती थी हमारे घर के 2 आंगन थे एक आगे की ओर
ओर एक पीछे की ओर और दोनो आंगन में कुआ था
पीछे वाले आंगन में न तो हम खेल सकते थे न तो वहा जाने की इज़ाजत थी और पीछे वाले आंगन से लग कर 4 कमरे थे जहा खेलना तो दूर जाना भी मना था
हम सब बच्चे जानना चाहते थे की आखिर कार वहा ऐसा क्या है जिसके सबब हमे वहा जाने नहीं दिया जाता ओर न तो घर के बड़े वहा जाते
आखिरकार ऐसा क्या था वहा
हमने बहुत जानने की कोसिस की लेकिन न जान पाएं न दादी हमे कुछ बताती और वोह एक ऐसा राज़ था की जिस राज़ को सिर्फ दादी दादा और बड़े पापा जानते थे उनके अलावा कोई नहीं जानता न कोई पूछता न कोई वहा जाता
हम ज़िद्द पर अड़ गए और दादी से कहा की दादी आज आप को बताना होगा की वहा ऐसा क्या है और क्या नहीं
दादी बहुत समझाती रही लेकिन हम न समझे
आखिरकार दादी बताने को तैयार हो गए
उन्होंने एक खोफनाक वाकिया बताया
जो की कुछ ऐसा था
जब हमारी दादी की नई नई शादी हुई थी तो हमारे घर में काम करने वाला एक परिवार घर के पिछले आंगन में रहता था जिनका नाम राम दयाल था और उनकी बीवी का नाम सीता और उनकी एक बेटी थी जिसका नाम रूपवती था।
दादी जी कहने लगी की उनकी बेटी रूपवती बेहद खूबसूरत थी।
ओर पूरे मोहल्ले में उस लड़की की तरह कोई लड़की नहीं थी।
एक दिन रूपवती मोहल्ले के किसी लड़के के साथ भाग गई और कई दिनों बाद घर को लौटी मां बाप शर्म से पानी पानी थे जब वोह घर को पहुंची तो वोह हमल से थी ( गर्भवती थी )
तो मां बाप ने पूछा की अब क्यूं आई हो यहां पर तुम्हारा और हमारा कोई नाता नहीं है।
तो वोह रोने लगी और कहने लगी की मां बाबूजी उस लड़के ने हमारा ना जायज फायदा उठाया है।
ओर अब उसने मुझे छोड़ दिया।
उसी वक्त दिल के बीमार राम दयाल जी को दिल का दौरा पढ़ा और वोह चल बसे
जिसका दर्द सीता जी सहन न कर सकी और कुछ ही दिनों में वोह भी चल पड़ी
एक हस्ता खेलता परिवार कुछ ही दिनों में तबाह हो गया
रूपवती अकेली क्या करती कुछ दिनो बाद उसने भी खुद को जला लिया और उसने खुदकुशी ली
लेकिन बात यहा खत्म नहीं हुई
जिस लड़के के साथ रूपवती भागी थी अचानक वो लड़का गुमशुदा हो गया और कई दिन तक मिला नही आखिरकार बहुत दिनो बाद उसकी लाश एक पेड़ पर टंगी मिली जो बे तहाशा खूंखार तरीके से नोचि हुई मिली जिसे देख सब खौफजदा हो गए
ओर दादी ने कहा की
हर दिन मोहल्ले में कुछ न कुछ घटना होती रहती
ओर 10 दिनो के अंदर अंदर ही मोहल्ले के 12 नौ खेज़ ( जवान ) लड़के एक के बाद एक उसी तरह पेड़ पर मरे मिले और राज़ खुला की वोह 12 ओर वोह लड़का 13 लोग मिलकर रूपवती के साथ जबरदस्ती करते रहें जिसके सबब रूपवती की बला ने उनकी जान लेली पूरे मोहल्ले में एक खौफ रहता रात को वोह हर किसी को परेशान करती ओर अचानक यह सारा मामला शांत हो गया लेकिन लोग कहने लगे की रूपवती को वोह अक्सर हमारे घर के उस कमरे में देखते जहा वोह उसके मां बाप के साथ रहती थी वोह उस कमरे में सजती संवरती और रात रात भर आंगन में घूमती लेकिन हमने कभी न देखा उसे
हमारे वालिद साहब इस बात से इत्तेफाक न रखते और न घर के दूसरे लोग रखते सिवाय दादी और बड़े पापा के
उस कमरे को खोल दिया गया और हम पापा के साथ वहा उस कमरे में रहने लगे इतना सब सून ने के बाद हमारे दिमाग में अक्सर वही बाते घूमती
एक दिन हम रात को उठे और हमने देखा की एक लड़की हमारे आंगन के कुए पर बैठी है
हम उसके करीब गए वोह लड़की कोई और नहीं रूपवती थी
उसने पीले कलर के कपड़े पहने हुए थे ओर हाथ में पीली चूड़ियां सर पर पीली बिंदी और बालो की जुल्फ गालों तक थी और मानो कोई अफसरा परी की तरह बेहद खूबसूरत थी
हम डरे नहीं हमने पूछा की आप कोन
उसने कहा की हम रूपवती है
ओर कहा की बेटा आप हमारे कमरे में रह रहे हो तो अब हम कहा रहेंगे
हमने कहा की आप भी हमारे साथ रह सकते है वोह आई हमारे साथ और कई कई दिनों तक हम बात करते
एक दिन अम्मी उठी रात को और देखा की यह इतना बड़ बड़ा रहा है वोह भी रात के 3 बजे तो अम्मी ने हमे डांट लगाई और सुला दिया
दूसरे दिन इत्तेफाकन फिर अम्मी उठी और देखा
अम्मी ने हम से पूछा की बेटा किस्से बात कर रहे हो हमने कहा रूपवती दीदी से तो अम्मी चौंक गए वालिद साहब को उठाया और सारा वाकिया बताया वालिद साहब ने समझा कर हमे सुला दिया
ओर दूसरे दिन एक दिमाग के डॉक्टर के पास लेकर गए डॉक्टर ने हम से सारी हकीकत पूछी हमने सब कुछ उन्हे बता दिया
फिर हमें कई दवाई दी जाने लगी गालीबन 6 महीने के बाद हम ठीक हो गए दवाई का बंध होना हुआ और रूपवती का दिखना बंध हुआ
बात सिर्फ इतनी थी की हम कुछ ज्यादा ही उस कहानी में खो चुके थे जिसकी वजह से हमारे दिमाग में सिर्फ वोह कहानी ही थी जिसकी वजह से हमारे दिमाग ने हमे वही सब बताया जो हमने सोचा था।
ओर एक दिन वोह 13 मौत के राज़ भी खुल गए जो रूपवती से जबरदस्ती करने वालो के हुए थे
रूपवती का एक भाई था जो की हिंदुस्तान से बहार किसी मुल्क में बस चलाता था उसने ही सारे कत्ल किए थे।
जब उसके मां पिताजी की मौत हुई थी तो उसकी चिट्ठी उसे 3 महीने बाद मिली थी।
ओर वोह फौरन हिंदुस्तान आ गया था उसने सारा पता किया और कत्ल किए।
और कत्ल के 28 साल बाद उसने खुद से अपने गुनाह कबूल किए और खुद खुदकुशी कर ली।

