पहले उस्ताद ए गिराम वालिदैन
पहले उस्ताद ए गिराम वालिदैन
अज़ीज़ दोस्त व क़ारिईन ए किराम
जैसा की हम सब जानते है कि हर इंसान कि ज़िंदगी में इल्म ओ तालीम बहुत ज़रूरी होती है इल्म इंसान को तराश कर एक बेश कीमती संग ओ अलमाश ( बहुत कीमती पत्थर या हीरा ) में तब्दील करता है जिसकी कीमत लगाना मुमिकन न हो
चुनाँचे वोह अपनी रौशनी से आने वाली तमाम नस्लों को भी इल्म से रौशन कर देता है
असलियत में हर इंसान की असल तालीम उसके दर ओ दीवार में ही होती है और ये दर ओ दीवार ही उसका पहला और आखिर दानिश कदाह ( स्कूल और कॉलेज ) होता है और उसके असल ओ अव्वल उस्ताद ए गिराम ( आदरणीय शिक्षक ) उसके वालिदैन ( माता पिता ) ही होते हैं जो इक अच्छी तरबियत देकर उसे बाहरी तालीम के लिए तैयार करते है
ता हम वालिदैन अपने बच्चो को
इल्म से भी आश्ना कराते है दर हकीकत इल्म अक्ल के हाथों नहीं मिलता वो तो ख़ुद से ख़ुद किए एहसास और मेहसूसात से मिलता है
वालिदैन के हाथों अपने दर ओ दीवार में अच्छी तालीम हासिल करने के बाद ही इंसान बाहरी उस्तादों के हाथ तालीम हासिल कर जिंदगी में कुछ कर गुज़रने के लिए तैयार होता है
इसी लिए उसका पहला हॉस्टल उसका घर होता है
ज़हां वो मुख्तलिफ इल्म महसूस कर समझ कर जाहिरी दुनिया में उतर कर ज़िंदगी जीने के लिए तैयार हो जाता है।
चुनाँचे
असल मैं पहले उस्ताद ए गिराम वालिदैन ही होते है और पहला दानिश कदाह और हॉस्टल अपना घर ही होता है।