पापा का आखरी कॉल
पापा का आखरी कॉल
वालिद अल्लाह की ओर से दी गई वो अज़ीम नैमत है जिसका अंदेशा इंसान की सोच से बाहर है।
पूरी दुनिया में सिर्फ वालिद ही एक ऐसी हस्ती है जो चाहता है की उसके बच्चे उससे भी कामयाब बने और उससे भी ज्यादा तरक्की करें।
लेकिन इंसान उनकी अहमियत को समझ नहीं पाता।
वालिद भले ही शक्ल से सख्ती बरतता है बच्चों से लेकिन दिल ही दिल में सोचता भी है की कहीं ज्यादा सख्ती तो नहीं कर दी।
वालिद का प्यार बच्चों के लिए शक्ल ओ सूरत से ज्यादा उनके दिल में होता है।
भले हम उनके प्यार को देख नहीं पाते लेकिन ज़िंदगी के कुछ लम्हे उस सर पोशीदा ( छुपे हुए ) प्यार को एक लम्हे में जाहिर करा देते है।
बात आज से तक़रीबन ढाई साल पहले की है हमारे वालिद साहब एक खुश मिजाज़ और कम सख्त शख्स थे उन्हें हर पल खुद से ज्यादा हमारी ओर हमारे भाई की पड़ी रहती थी बहन की शादी हो चुकी थी तो दिन में कई बार उसे फोन कर खबर लिया करते।
वाल्दा को अक्सर कहते की बच्चे को ज्यादा डांटने की जगह समझाओ।
बच्चों पर ज्यादा सख्ती न बरतो यह बच्चे फूलों की तरह होते है चाहे कितने भी बड़े हो जाए उम्र में लेकिन हमारे लिए तो छोटे फूल ही है जिन्हें ज्यादा डांटने से शक्ति बरतने से वो मुरझा जायेंगे या तो टूट जायेंगे।
हमेशा हमारी हर ख्वाहिश को पूरा करते फिर चाहे महंगी बाइक हो महंगे फोन हो या महंगे कपड़े कभी किसी चीज़ के लिए ना नहीं कहते।
खाना खाने ओर खिलाने के बड़े शौकीन थे जैसा खाते जरूरतमंदों को वैसा खिलाते मदद के लिए हमेशा तक पर रहते ओर दरिया दिली से मदद करते।
खैर सब के वालिद अच्छे ही होते है उनकी जितनी तारीफ करो कम है।
तो अज़ीज़ ए ख्वातीन ओ हज़रात, जैसा कि हमने जिक्र किया की बात आज से ढाई साल पहले की है।
आज से तक़रीबन 4 साल पहले हमारा ग्रेजुएशन खत्म हो चुका था और हमारी पहली पोस्टिंग हमारे टाउन से 150 km थी।
तो हम घर से बहार रहा करते ओर छुट्टियां मिलने पर घर को आते जिसकी खुशी में वालिद साहब हमें लेने के लिए रेलवे स्टेशन नहीं आते बल्कि हम जहां जॉब करते वहाँ लेने आते और हमारा पसंदीदा खाना घर से लेकर आते।
इत्तफाकन एक वक्त हमें 3 महीनों से छुट्टी नहीं मिली और न वालिद साहब को इतना वक्त मिल पाया की वो खुद हमसे मिलने आए। हम वो फोन पर तो बात कर लेते लेकिन थोड़ी नाराज़गी के साथ हम उन्हें मनाते ओर वो मान जाते।
बस
रमज़ान का चांद दिखने वाला था हमें घर आए हुए 4 महीने गुज़र चुके थे ओर हमारी तबीयत कुछ नासाज़ थी तब ही शाम के करीब 5 बजे वालिद साहब का फोन आया कहने लगे की बेटे रमज़ान का चांद दिखने वाला है अब वो छुट्टी न भी दे तो आ जाओ घर।
हमने कहा जी बस हमारे जी कहने से वो समझ गए की हमारी तबीयत सही नहीं है और कहने लगे की बेटे क्या हुआ है हमने कहा की पप्पा तबीयत ठीक नहीं है है हम उन्हें पप्पा कहते थे ज्यादा तर गुजरात में पापा को पप्पा कहते है।
तो वालिद साहब मचल गए कहने लगे की ठीक है बेटा कल हम आते है आप को छुट्टी भी दिलवा देंगे और दवाई भी हमने कहा की ठीक।
और अगले दिन रमज़ान चालू हो गए थे और पहला रोज़ा था सुबह 4 बजे शेहरी के वक्त वालिद साहब का फोन आया कहने लगे की बेटे कुछ वक्त बाद हम यहां से निकल जायेंगे।
हमने कहा की इतनी जल्दी आराम से निकालिएगा कहने लगे की जितनी जल्दी निकलेंगे उतनी जल्दी पहुंच जायेंगे कह कर कॉल कट कर दी ।
हम खुश थे की वालिद साहब आ रहे है हम कई महीनों के बाद उनसे आखिर मिलेंगे।
लेकिन सद अफ़सोस की वो फोन उनका आखरी फोन था बस उनका फोन रखना ही था की तकरीबन 15 min बाद अम्मी का फोन आया की बेटे आप वहाँ से यहां आ जाओ आप के पापा की तबीयत बिगड़ चुकी है।
हमारी आंख से आंसू निकल गए और हम जैसे तैसे कर के हाथ मुंह धोए बिना ही वहां से दौड़ लगा दिए। 4 घंटे बाद घर पहुंचे तो देखा की घर के बाहीर मोहल्ले में काफी भीड़ है। सब टोपी लगा कर बैठे है हम समझ गए की वालिद साहब अब हमारे बीच न रहे वो दारुल फना से दारुल बका की और कूच कर गए। हम इस गम में रोड पर ही गिर गए सब आए हमें उठाया हिम्मत दी लेकिन हम में इतनी हिम्मत न बची थी के अम्मी के करीब जाए भाई के करीब जाए या बहन को समझाए लेकिन हिम्मत कर के अम्मी के करीब गए उन्हें समझाया और सब को संभाला।
हैरत की बात यही थी की जब वालिद साहब ने हमें फोन किया था तब वो बिलकुल तंदुरुस्त थे फोन रखने के बाद अम्मी से कहने लगे की देखो बहुत अजीब अजीब महसूस हो रहा है उलटी सी आ रही है और चक्कर सा लग रहा है तो भाई फौरन उन्हें हॉस्पिटल लेकर गए डॉक्टर ने चेक किया और कहा की चाचा आप नॉर्मल है आप को कुछ नहीं और यह कुछ दवाई है लेकर सो जाइयेगा। तो वालिद साहब कहे ठीक है और वहाँ से उठने लगे थे की बैठे बैठे गिर गए भाई अम्मी और डॉक्टर उठाते इतनी देर में वो अपनी आंख बंद कर चुके थे और दारुल फना से दारुल बका की और कूच कर चुके थे।
और जब अम्मी ने हमें फोन किया तब तक हमारे वालिद साहब हम सब को छोड़ कर जा चुके थे।
और तब हमें उनकी मुहब्बत महसूस हुई की उनके आखरी वक्त में वो हम से बात किए फोन पर और उसके 10 min बाद ही वो हम सब को छोड़ कर चले गए।
आखिर में इतना ही कहेंगे की अल्लाह आप सब के वालिद वाल्दा को तंदुरुस्ती अता फरमाए।
जिनके वालिद नहीं है अल्लाह उनके वालिद को जन्नत उल फिरदौस में आला से आला मकाम अता फरमाए।
और उनकी वाल्दा का साया हमेशा उनपर बरकरार रखे।
और जिनकी वाल्दा नहीं है अल्लाह उनकी वाल्दा को जन्नत उल फिरदौस में आला से आला मकाम अता फरमाए और वालिद साहब का साया उनपर बरकरार रखे
और जिनके वालिद और वाल्दा दोनों नहीं है अल्लाह उनके वालिद वाल्दा को जन्नत उल फिरदौस में आला से आला मकाम अता फरमाए।
