ख़ुद को दुरुस्त करें
ख़ुद को दुरुस्त करें
अज़ीज़ क़ारिईन ए किराम , आज की मज़मून में हमने इक अहम मौज़ू को अपना मौज़ू ए सुखन बनाया हैं ता हम बज़्म ए गुफ्तगू में कई बेहतरीन चीज़ों से सीखने की कोशिश करेंगे तो आइए कुछ नया जानते हैं
अज़ीज़ क़ारिईन ए किराम अज़ीज़ दोस्त ओ दिल ए ख़ास अफ़राद,
क़िसास ए चाह ( बदले की भावना ) यकीनन इक दिन बर्बादी के और ले जाती हैं
हत्ता कि तमाम तर चीज़ों से बिगाना कर तन्हाई लाचारी और मजबूरी के ज़ेर कदम रौंद देती हैं
कहीं आलम में पुश्त पनाही के नक्श ओ निशां नज़र तक नहीं आने देती
चुनाँचे इंसान दर बदर जा ब जा मारा मारा फिरता हैं और ज़हनी तौर से कमज़ोरी उसे अपने दामन में समेट लेती हैं और सेहती तौर से दो चार कर देती हैं लेकिन इंसान बड़ा कम अक्ल हैं जो इन चीज़ी से न आशनाई और गैर मालूमात रखता हैं और यक बयक ऐसी चाहतों मैं गुमशुदा रहता हैं
इक तल्ख़ हकीकत ये भी हैं कि पस ए बर्बादी के बाद इंसान खुदा की नैमतों से रू गर्दानी भी करता है और बार ए गुनाह का अहसास तो दूर, उसका इक नक्श भी अपने पर गुज़र औकात होने नहीं देता, खुमार ए दौलत इज़्ज़ ओ ज़ाह जुब्बा ओ दस्तार की चाहत में गामज़न रहता हैं, हर सू अपने आप को अलग शान महसूस करता हैं फ़ारसी का एक मशहूर शेर हैं
ज़िंदगी आमद बराए बंदगी
ज़िंदगी बे बंदगी शर्मिंदगी
( ज़िंदगी फकत बंदगी करने के लिया अता हुई है यानी कि खुदा का ज़िक्र और इबादत करने के लिए
बगैर बंदगी के ज़िंदगी शर्मिंदगी के सिवाय कुछ नहीं )
चुनाँचे बद गुमानी से बचना बेहतर अमल हैं
और याद ए खुदा में अपने आप को फना करने से बहुत कुछ हासिल हैं
हत्ता कि ला हासिल चीज़ भी हासिल हैं
दुनियाई ज़िंदगी चंद दिनों की या चंद सालों के लिए इनायत हैं जबकि फना होने के बाद की ज़िंदगी का कोई पैमाना नहीं हैं
तय शुदा चीज़ें यकीनन अपने वक्त ए मुअय्यन तक होती हैं न चाह कर भी वोह चीज़ होनी ही हैं जिनका वक्त तय हैं
अलबत्ता, इंसान को चाहिए के वोह उन चीज़ों को खुशी से इत्तिख़ाज़ करे और खुदा का शुक्र करता रहे कि ऐ परवरदिगार मेरे हाल पर रहम फरमा और मेरे हाल को दुरुस्त फरमा
ना की यूं के मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई में लूट गया बर्बाद हो गया ऐसा मेरे साथ ही क्यों होना था ये बातें बनी हुई बातों को बिगाड़ देती हैं
चुनाँचे
इंसान को चाहिए कि वो बद तर चीज़ों से कनारा कश रहें और अमल ए नेक करता रहे