असल शेर ओ शायरी क्या है
असल शेर ओ शायरी क्या है
अज़ अज़ीज़ ए दिल ए मा नाज़रीन ए गिरामी व अज़ीज़ ए ख्वातीन ओ हजरात
आज की इस जेर ए नज़र सुखन में हम ने एक बे तहासा दिलकश ओ रूह रवाँ मोझु को अपना मोझू ए सुखन बना ने का फैसला किया है ता हम इस खास मोझू में कई खास चीज़ों को जेर ए बहस लाया जाएगा नीज़ आप सब से दस्तबस्ता गुजारिश है की सुखन ए काफिए को पूरा पढ़ कर अपना मशवरा जेर ए नज़र करे.... तो आइए अज़ीज़ बा कायदा मोजू का आगाज़ करते है
नाज़रीन ए गिरामी दिल ए अज़ीज़ आज के इस दौर ए तरक्की में हमने हर चीज़ को अपनी पुरानी शक्ल ओ सूरत ए हाल से तब्दील कर कुचक ( छोटा , शॉर्टकट ) बना दिया है जो की एक हैसियत से ठीक भी है और नहीं भी
लेकिन कई चीज़ ऐसी है जो की अपनी पुरानी शक्ल व सनख्त में ही बे हद खुशबख्त व दिलकश लगती है जैसे की आज के दौर की सुखनवरी जिसमे न तो मुकम्मल उर्दू है न तो मुकम्मल फ़ारसी जिसके मन में जो बे हुदा लफ्ज़ या चीज़ हा आती है उसे मिशरो में तब्दील कर शेर ओ शायरी बना देते है बे हद हद हा ( बेकार ) चीज़ों को लिख कर नज़र ए खास व माह दर अंजुमन ए हुजूम ( सितारों में चांद ) बनना चाहते हैं।जो कि ठीक नहीं सुखनवरी की अहमियत व मकाम से ना शनाश लोगों ने आज इस चीज़ को महज एक खेल समझ कर मन मि अंदर आन आरज़ू ( खुद की मर्जी ) समझ लिया है की जो अंदर आन ए मना ( मेरे मन में जो आया ) उसे लिख दिया
लेकिन सुखनवरी में अक्ल का कुछ काम नहीं सुखनवरी करने के लिए एक साफ दिल पाक इश्क़ और अखलाक भरी नज़र और गहरा दिल चाहिए तो ही सुखनवरी अपने अंजाम तक पहुंचती है जिसके बिना वोह मुकम्मल नहीं
सद बार हा बार बा हा बात यह है की सुखनवरी ऐसी की जाए की वोह दिल में उतर जाए ना की अक्ल में अक्ल दीगर है और कल्ब दीगर जहां कल्ब होता है वहां अक्ल सिकस्त हो जाती है जेसे की एक मशहुर शेर है
ये इश्क़ नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए
एक आग का दरिया है और पैर के जाना है
इस शेर में दिल कहता है की आग में कूद जा कुछ नहीं होगा पैर जा पैरने ओर तैरने का फर्क आज के सुखनवरो को नहीं पता की दोनो दीगर है
तैरना यानी सर पानी के उपर हो
पैरना यानी सर तन बदन संग पानी में हो और दरिया पार हो जाए
कल्ब कहता है पैर जा कुछ नहीं होगा लेकिन
गर चे अक्ल कहेगी की न कूद जल जायेगा
डूब जायेगा तो ।
अगर चे हम इसी तरह से बे हुदा मोजु पर सुखनवरी करते रहे तो यह चीज़ एक दिन एक अजूबे के सिवाय कुछ न रहेगी।
तो अज़ीज़ ए दिल इस बात को समझ कर बे हुदा शायरी न करे और एक अहमियत ए दिल पर आजमा ए सुखन कर खुद को उसमे ढालिए ओर ढलिए।