हम दिल ए जां
हम दिल ए जां
हम दिल ए जां जान ए मन दिल बर
एक रोज़ कहीं ख्याल के आबाद करदाह शहर में
हम और तुम मिले, हम एक साथ हो, हम तुम्हे देखे और
तुम शर्म से अपनी आस्तीन ए पर्दे से अपना चेहरा छुपा लो,
इस आरज़ू ए दिल में, हम हावास्ता हो गए है,
मानो कोई जिन्न या आसेब, हम से लिपट गया हो, और
हमे दीवाना बना दिया हो
दीवानों के वश दीवानगी में हम,
अपना सर ओ साज सर ओ सामां छोड़ कर सर
ओ मुंह परेशां हो गए है
हमारी तमाम आरज़ू किसी जर्द
पत्ते की तरह सबा ए वीराँ में परवाज़ करती है
निगाह ए शौक़, मिशल ए तिश्न ए परिंदगान ए सेहरा
(सेहरा के प्यासे परिंदों) की तरह, जुस्तजू में मुबतला है
सौज़ ए दिल के शोले इश्क़ ए आब ए बारां
(इश्क़ की बारिश) की तलब में आवारा हुए फिरते है
हाय यह आवारा दिल,
तुम्हारी यादों की वुशअतों में गुमशुदा करार हो चुका हैं
हाय यह इश्क़ की वुशअते, जिसमे न मंज़िल है न मक़ाम है
कारवां ए इश्क़ ए कैफियत मंज़िल ए इश्क़ की ओर रवाँ है
राह ए इश्क़ में मेरा दिल न तवाँ हो गया है
न तवाँनी से दर्द के नाले बुलंद होते है
आह यह दर्द के नाले, किसी गजाल के वश हावास्ता है
जो की अपनी मशक बु की जुस्तजू में कोह दर कोह रवाँ धवाँ है
यह खामोश सर्द गूं वीराने (डरावनी ठंडी हवाओं से भरे वीराने)
मेरी आरज़ू ए पेच ओ ताब ( मेरे भ्रमित दिल की आरज़ू) का मशकन हो चुके है
जिस्में फकत खामोशी, दर्द की आहटें,
न सुकुन से भरी करवटों के सिवाय कुछ नहीं
अगर तुम पलट आओ, तो यह दिल फिर से उठ खड़ा हो
यह सर्द गूं वीराने लाला ओ
गुल ए गुलज़ार की तरह फिर से महक उठे
यह गर्म सेहरा तुम्हारी जुल्फ ओ शबनम की बू में
दोबारा जरखैज़ ( उपजाऊ मिट्टी ) हो जाए।