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minni mishra

Classics

4  

minni mishra

Classics

रक्षक बना भक्षक

रक्षक बना भक्षक

2 mins
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‘जन-गण-मन’ राष्ट्रीय गान के साथ भारतीय तिरंगा लहरा उठा । रंग-बिरंगे फूल धरा पर बिखर गईं।भारत माता और वन्दे मातरम् के साथ कार्यालय के परिसर का वातावरण देश-भक्ति में सराबोर हो चुका था।

“ आज स्वतंत्रता दिवस है इसलिए परिसर के सभी गेट खुले रहने चाहिए।” हाकिम ने अपने अर्दली को पास बुलाकर सहजता से कहा ।

“जी हजूर।” अर्दली ने लंबा सलाम ठोकते हुए साहब को जवाब दिया ।

“ देखो, इस बात का खास ध्यान रखना ,एक भी आगंतुक जलेबी लिए बिना यहाँ से नहीं लौटे।”

“जैसा आदेश हजूर का।” इतना कहकर वह अन्य कर्मचारी के साथ तत्परता से जलेबी बांटने में व्यस्त हो गया।

इधर परिसर में रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था। छोटे बच्चे एक पोशाक में अपने नन्हें हाथों में झंडा लिए चहलकदमी कर रहे थे। रंग- बिरंगी झांकियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। पचहत्तर साल का बुजुर्ग स्वतंत्र भारत आज जवान की तरह चहक रहा था।

आगंतुकों की पंक्ति में खड़ी मैं, हर साल की तरह जमकर इस कार्यक्रम का लुत्फ उठा रही थी।

तभी दूर बरामदे पर खड़े एक वर्दीधारी पर नजरें जा कर अटक गई। शायद वह यहाँ पधारे किन्हीं साहब का अंगरक्षक हो ? उसने कार्टन में करीने से रखे नाश्ते के पैकेट्स ,जो खास अतिथियों के लिए मंगवाया गया होगा , उसमें से दो पैकेट्स जल्दी से उठाकर वह एक थैले में रख रहा था।

यह देखकर मैं स्तब्ध रह गई ! आगंतुकों के पंक्ति में बैठी... मैं यह विचारने लगी कि रक्षक यदि भक्षक बन जाए तो त्याग और बलिदान से मिले हमारे स्वतंत्र भारत का क्या होगा ?


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