अपाहिज कौन
अपाहिज कौन
एक हाथ और एक पैर से अपाहिज भिखारन ठेले पर बैठी राहगीर से कह रही थी, “इस अपाहिज को कुछ पैसे दे दो...भगवान तेरा भला करेगा।” ठेला उसकी बेटी चला रही थी।
भीख मांगते-मांगते वो एक अमीर के घर के दरवाजे के पास रूक कर चिल्लायी ,
"अपाहिज को कुछ दे दो ,भगवान तेरा भला करेगा।” इस आलीशान हवेली को देखकर वह विचारने लगी , ”कितनी सुखी होगी इस घर की मालकिन" और मन ही मन अपने भाग्य को कोसने लगी।
”तभी अंदर से आवाज आयी, “रुको, आ रही हूँ।” परंतु बहुत समय बीत गया और अंदर से कोई नहीं आया। अपाहिज भिखारन ने फिर से आवाज लगाई ,”दुखिया को कुछ दे दो...।”
घर की मालकिन बैसाखी के सहारे चलते हुए आयी। उसके कटे पैरों को देखकर भिखारन दंग रह गई। मालकिन ने उसे खाने कपड़े और पैसे देते हुए कहा ,”इस तरह बेटी से ठेला खिंचवा कर तुम इसका जीवन क्यों बर्बाद कर रही हो ? भीख मांगना बंद करो।बेटी को काम पर भेजो। झाड़ू-पोंछा और बर्तन साफ करेगी ... खाना भी बनाएगी तो इज्जत से उसे रोटी मिलेगी और चार-पाँच हजार रुपए भी।”
लड़की ने तपाक से कहा ,”आप ठीक कहती हैं आँटी, मुझे ठेला खींचना अच्छा नहीं लगता ,थक जाती हूँ ठेला खींचते -खींचते और लोग हिकारत भरी नजरों से हमें देखते हैं। लेकिन माँ मुझसे ठेला ही खिंचवाती है।”
"ठीक है , कल से तुम मेरे घर काम करने आ जाना। मैं तुम्हारा आधार कार्ड भी बनवा दूँगी और सरकार से गरीब के लिए जो सब सहायताएं मिलती है, वो भी दिलवा दूँगी। मेरे घर का सारा काम करना, बदले में मैं तुम्हें खाना ,कपड़ा और पाँच हजार रुपये दूँगी। "
किशोर लड़की की शुष्क आँखें चमक उठीं , उसने हँसते हुए कहा , "आंटी ,मैं आपके घर काम करूँगी।”
तभी ठेले पर बैठी भिखारन बुदबुदाई ,”अपाहिज कौन ?”