मेरी केदारनाथ यात्रा:यात्रावृत
मेरी केदारनाथ यात्रा:यात्रावृत
जब कभी कही राजनीति की बात होती है। तो अनायास ही मुझे अपने सबसे सुखद अनुभव केदारनाथ यात्रा का स्मरण हो आता है। संख्या में हम चार थे। जब हमनें यात्रा प्रारंभ की मैं स्वयं तथा तीन और क्रमशः राजीव जी ,अंकुर जी,और मनोज जी हम संबंधों के हिसाब से
मित्र थे भले ही यात्रा से पहले इतने घनिष्ठ नही थे जितना यात्रा के बाद हुए। हमें सुबहा पाँच बजे केदारनाथ के लिए बस लेनी थी। क्योंकि अंकुर जी हरिद्वार के ही रहने वाले थे तो टिकट कि कोई दिक्कत नही हुई, बस में चार सीटें पहले से ही बुक की जा चुकी थी। हरिद्वार से केदारनाथ के लिए पूरे दिन में बस एक ही बस जाती है। इस लिए ही हरिद्वार बस स्टैंड पर सुबह पांच बजे से ही काफी कोलाहल शुरू हो जाता है। एक आम कहावत है कि "जब बुलावा आता है तो व्यक्ति तीर्थ पहुँच ही जाता है" इस यात्रा में राजीव जी और मैं इस इस कहावत के मुताबिक ही है। क्या है कि राजीव जी बरेली में और मैं दिल्ली में सरकारी नौकरी की जद्दोजहद में है। और सभी जानते या सार्वभौमिक सत्य है कि बेरोजगार से बस एक ही बार कहीं घुमने के लिए कह दो, तुमसे पहले ही तैयार मिलेंगे और ऐसा तब ही होता है जब कोई उनका खर्च उठाने का भरोसेमंद आश्वासन दे अंकुर जी के साथ हमारी कुछ इस प्रकार की संधि पहले ही हो चुकी थी। खाने-पीने की तथा सभी अवश्य चीजें जैसे कंघा,तेल,क्रीम, ठंड से बचने के कपड़े, मोबाईल चार्जर,पावर बैंक, गंगा जल,आदि सभी रख ली गई थी कुल मिलाकर हमारे पास छह बैग थे जिसमें दो ब्रिफकैस चार ट्रैवलर थे। यदि गांव देहांत में हमें कोई देख लेता तो कहता की शायद गांव छोड़ कर जानें की योजना हैं। पर भारतीय पुरुष की एक सामान्य विचारधारा है कहीं भी जायें दो बैग तो भर ही जाते हैं। और इसका कारण होता है हमारा परिवार,ना-नुकर करते-करते भी दो बैग तो भर ही जाते हैं। एक कपड़े-लत्तों का और एक उदरपूर्ति के सामान का। गाड़ी के होर्न के साथ ही राजीव जी ने सभी बैगों और समान की स्थिति का सर्वेक्षणात्मक जायजा लिया और सभी अपनी-अपनी सीट पर सुबह की नींद की पूर्ति में लग गये। बस राजा जी टाईगर रिजर्व के रूट से होते हुए ऋषिकेश वाले रास्ते पर आ गई थी सुबह की शांति को चीरती हुई बस अपने गंतव्य की और तेजी से पलायन कर रही थी। रात में सामान इकठ्ठा करने और बैग लगाने की थकान हमने बस की उस नरम सीट के सुपुर्द कर दी और लगभग हम तीन घंटे तक कुम्भकरणावस्था में थे।सुई का छोटा काटा दस पर और बड़ा काटा छह पर था।
जब बस वाले ने आवाज लगाई कि होटल पर पहुंच गये हैं। हम भी कुछ खाने पीने के लिए उतरे।अंकुर जी दिशा-मैदान के लिए शौचालय की और बड़ गये और मनोज जी लघुशंका के लिए। मैं और राजीव जी होटल के स्ट्रक्चर और पहाड़ों की बनावट पर सवाल-जबाब करते रहे जैसे ही सब आ गये हमने एक-एक गिलास सोडा शिकंजी पी और जा कर बस में बैठ गये। मैनें अपने मोबाइल से कुछ तस्वीरें भी ली थी और मैं बस में जा कर पंजाबी गानों की प्लेलिस्ट लगाकर फिर से सोने की अनावश्यक कोशिश करने लगा। लेकिन राजीव जी कहाँ मानने वाले थे
उन्होंने रास्तों में चल रहे वर्तमान सरकार के ऋषिकेश टू चारधाम प्रोजेक्ट को ये कह कर नकार दिया की ये हमारी हिमालयन रेंज के लिए काफी नुकसानदायक है। तथा ग्रेनेड का इस्तेमाल करने से भूस्खलन का काफी खतरा बड़ जाता है। असल में राजीव जी और अंकुर जी भाजपा सरकार के घोर विरोध में हैं। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे इस सरकार के कट्टरहिन्दूवादी विचारों तथा चालाकी से झूठ बोलने और विपक्ष की बात का जबाब न देने और आधे से ज्यादा सांसद व मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार व हत्या के केश व बिना पढ़ा लिखा होना था और ये सच्चाई भी है और इसे झुपाना मुश्किल भी है लेकिन ये बात भाजपा भक्त को पचने योग्य नही है चलिए राजनीति बहुत हुई अब यात्रा का मजा लिया जाये बस अब पहाड़ो के बीच में चल रही थी और मंदाकिनी नदी के विपरीत दिशा में बड़ती जा रही थी उस शांत वातावरण में पंछियों का कलरव व मंदाकिनी की मधुर तान कानों में मिठास घोल रही थी। उपर सूरज,दोनों तरफ पहाड़ साथ में मंदाकिनी नदी और सड़क किनारे स्कूल से आते भविष्य के अनमोल मोती उस यात्रा को और मनोरम बना रहे थे बस बीच-बीच में रूकती और बच्चों को बैठाती और उतारती ये उस बस चालक का उदार दृष्टिकोण था। और एक हमारा उत्तर प्रदेश है जहाँ बच्चों को देख कर बस चालक बस के दरवाजे तक बंद कर देता है बैठाना तो दूर की बात है। बस अब सोनप्रयाग पहुँच चुकी थी हम ने अपने अपने बैग कंधे पर लिए और
क्योंकि ब्रिफकैस पहियों वाला था तो उसे हाथ से ही खिंचा क्योंकि उस में काफी वजन भी था। हमें सोनप्रयाग से गौरीकुंड जाना था जो लगभग चार किलोमीटर था और उस के लिए वहाँ चौपहिया वाहन की उत्तम व्यवस्था थी।
हम पांच बजे तक वहाँ पहुँच चुके थे। भूख भी काफी लग रही थी लेकिन इस समय सबसे ज्यादा जरूरत हमें होटल की थी क्योंकि शाम हो चली थी और गौरीकुण्ड का तापमान निरंतर मोबाईल में गिरावट प्रदर्शित कर रहा था और शरद् हवाएं भी सूर्य की ढलान के साथ तेज होती जाती थी। तब ही राजीव जी ने पास ही एक होटल तलाश लिया जहाँ हमें शरद् हवाओं और ठंड से बचने के लिए सुबह तीन बजे तक शरण लेनी थी क्योंकि हमें सुबहा ही केदारनाथ की चढाई करनी थी जो लगभग पच्चीस किलोमीटर का सफर था
अब हम होटल में थे जहाँ से उन सुनहरे पहाड़ों और उन पहाड़ों के बीच दुपकते सूरज के मनोहारी रूप को निहारा जा सकता था मेरी नजर बार बार नदी,पहाड़ी,ऊंची चोटियों पर जाती और मेरा मन मेरे मस्तिष्क को संदेश देता कि आखिर ये सब कैसे बना होगा,और कितना पानी सदियों से यू ही लगातार क्यों बह रहा है मैं इस विचारमग्न अवस्था के पथ पर था कि राजीव जी दो कप चाय हाथ में लिए और उनहोंने मेरी उस शुन्यवस्था को "यार चाय पीयो गर्म-गर्म" इस संबोधन के साथ चकनाचूर कर दिया और आप भी जानते हैं जब पांच डिग्री सेल्सियस तापमान में यदि चाय वो भी बिस्कुट के साथ मिल जाये तो तेल लेने गई वो शुन्यवस्था। हम चारों चाय की चुस्कियों के साथ होटल की बालकनी से सनसेट का भरपूर आनंद ले रहे थे कि एक बीस-बाईस की उम्र का लड़का हमारे पास आया राजीव जी ने उस से हमारा परिचय कराया और बताया कि इनका नाम है रमन शर्मा, शायद राजीव जी की मुलाकात उन से बस यात्रा के दौरान ही हो गई थी। शर्मा जी के साथ दो लड़कियाँ भी थी इसलिए राजीव जी ने उन्हें कमरा दिलाने में मदद की थी तो हम से शर्मा जी का व्यवहार मित्रवत हो गया था शर्मा जी भी चाय का आनंद ले रहे थे तब ही राजीव जी ने सवाल दागा रमन क्या आप पढ़ाई करते हैं तो शर्मा जी ने बताया की वे पहले ऋषिकेश मे पड़ते थे आचार्यकुलम् में,पर वर्तमान में वे तमिलनाडु की किसी संस्था से वेद पुराण में डिग्री कर रहे थे राजीव जी ने अगला तीर फिर कमान से छोड़ा कि आपके साथ जो लड़कियाँ है क्या वे आपकी रिलेटिव है तो शर्मा जी ने बताया की वे उनके पिताजी की दोस्त की लड़कियाँ है जो दिल्ली की रहने वाली है अब आप सब जानते ही हैं भारतीय पुरूष की मानसिकता, उसके ज़हन में भाई बहन के अलावा हर रिश्ते का विशलेषण करने की अदभुत क्षमता होती है और ऊपर से जब बेरोजगार और सिंगल हो इस बार मैंने अपनी चाय की चुस्की लेते हुए
राजीव जी से कहा, मुझे लगता है लड़कियों का कुछ और ही चक्कर हैं
जब तक रमन शर्मा जा चुका था राजीव जी समझ तो गये पर इस पर कुछ ख़ास चर्चा न करके अपने आप को पूर्णपश्चिमी सभ्यता में ढ़ालते हुए बोले क्या फर्क पड़ता हैं भारतीय पुरूष का इस बात को हलके में लेना ये सिद्ध करता हैं की या तो सामने वाला उम्र में बड़ा है या छोटा हैं
मेरे ऊपर दूसरा वाला सटीक बैठता हैं मैं राजीव जी से उम्र में काफी छोटा था इस लिए उन्होंने इस बात को काटना ही उचित माना
गौरीकुण्ड की ठिठुरती ठण्ड के बीचों बीच एक गरम पानी का कुण्ड था उसी के नाम पर इस जगह का नाम गौरीकुण्ड पड़ा था हम वहा नहाने चले गये मुझे लगा था कि पानी हलका ही गर्म होगा पर क्या पता था पानी जला भी सकता हैं पानी में जैसे ही कूदा एक ही झटके मैं बाहर पानी खोल रहा था फिर हम सब एक स्थानीय चाचा की बाल्टी से बैठ कर वहीं नहायें नहाने के बाद वहाँ दैवी गौरी के मंदिर में दर्शन किये मंदिर की परिक्रमा भी की पर, क्योंकि मैं परिक्रमा के विज्ञान से अनभिज्ञ था तो मैंने अंकुर जी क्योंकि वे हम सब में उम्र से बड़े थे और
हरी की नगरी हरिद्वार से भी थे तो मैने उनसे ही पूछना उचित समझा
तब अंकुरजी ने बताया की भारतीय हिंदू धर्मशास्त्रों में एक है ऋग्वेद
उसमें एक शब्द आता है "प्रायः दक्षिणा" जिसमें प्रायः का अर्थ है आगे बढ़ना और दक्षिणा का अर्थ है दक्षिण की और बढ़ते हुए उपासना करना, कहते है हिंदू धर्म में परिक्रमा का आरंभ कार्तिकेय और गणेश की पृथ्वी परिक्रमा से हुआ। माना जाता है जब हम किसी देवता की पूजा करते हैं तो उस स्थान के आस पास सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण हो जाता है और जब हम उस स्थान की परिक्रमा करते है तो हमारे भीतर भी सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार हो जाता है इतनी जानकारी हमें परिक्रमा कराने के लिए पर्याप्त थी
उसके बाद हम होटल में चले गये सब एक एक कर हाथों को आपस में रगड़ते हुए कमरे में प्रवेश कर गये। कमरा काफ़ी बड़ा था उसमें चार विस्तर लगे थे जो हमारे लिए काफ़ी थे अब हमें सुबह तीन बजे उठ कर केदारनाथ के लिए पैदल यात्रा करनी थी इसलिए राजीव जी ने अपने फोन में अलार्म लगा लिया था और फिर हमने अपनी आंखो को छह घंटे का आराम दिया
सुबह के तीन बजे फोन में मेंढक के आवाज वाला अलार्म निद्रा में बिघ्न डाल रहा था एक तो तीन बजे का समय और उपर से ये कड़कती ठंड फोन को फेंक कर मारने का संदेश दे रही थी पर वक्त और मंजिल इस के लिए सहमत नही थे हम सब चलने के लिए तैयार हो गये और राजीव जी ने रमन शर्मा को भी फोन कर दिया था चलने के लिए और कौन-कौन सा सामान साथ लेकर चलना है ये रात को ही तय कर लिया गया था और अगले बीस मिनट मे हम केदारनाथ ट्रेक पर थे ट्रेक पर कही लाईट तो कहीं अंधेरा था ट्रेक बड़े पत्थरों का बना था और सीढ़ीदार था जो चिकना बिलकुल भी नही था उसमे कहीं कहीं खड्डे थे पर खच्चरों की लीध ने उन खड्डों को बखूबी चिकना कर दिया था जिस पर फिसल कर गिरने का डर बरकरार बना हुआ था हम सब उस अंधकार को चिरते हुए अपने गंतव्य की और समागत गति से बड़ रहे थे मेरी और राजीव जी की पीठ पर एक एक पिठ्ठू बैग था और हाथ में जैकेट जो बहुत चलने के कारण हमने उतार के हाथ में ले थी क्योकि बदन ज्यादा चलने के कारण उस कड़कती ठंड में राजस्थान की गर्मी का अहसास करा रहा था लगभग हम दो किलोमीटर चल चुके थे और सूर्यदेव ने भी पर्वत श्रृंखलाओं को नीचा दिखाना शुरू कर दिया था और ट्रेक पर भी आवाज़ाही शुरू हो गई थी खच्चर वाले अपने खच्चरों को भांग खिला रहे थे जिससे वे बिना थके काम करते रहें और स्वयं भी चरस,गाजा का सेवन कर रहे थे और वहाँ इसे भांग, चरस न कह कर एक शब्द "बूटी" का इस्तेमाल कर रहे थे। गौरीकुण्ड से केदारनाथ, लगभग सोलह किलोमीटर का फासला हैं दो किलोमीटर के बाद अंकुर जी ने खच्चर से जाना तय किया क्योकि चढ़ाई करना काफ़ी कष्टप्रद हो रहा था सांसे फूल रही थी और निम्न रक्तचाप से ग्रसित लोगों के लिए ये यात्रा और ज्यादा कठिन थी जबकि मनोज जी का उच्च रक्तचाप था तो वे हमे छोड़ कर तेजी से आगे निकल गये थे हमनें अंकुर जी को खच्चर सभी भारी सामान लादते हुए रवाना कर दिया और "हर हर महादेव" जयकारा लगाते हुए अंकुर जी कुछ दूर तक हमें दिखें फिर ओझल हो गये और अब राजीव जी और हम रह गये उस पैदल यात्रा के अनुभव को आप तक पहुँचाने के लिए
थोड़ा दूर चलने के बाद मेरे पाँव भी जबाब देने लगे फिर हम दोनों थोड़ी थकान दूर करने के लिए एक चाय की दुकान पर बैठे गये और हमनें कुछ चाय के साथ बिस्कुट,नमकीन का संतुलित सेवन किया या यूँ कह लीजिये की पेट को हलका समझा दिया कि "ऐ पेट महाराज आप एक लंबी और कष्टदायी यात्रा पर है कृपया कर भोजन पर हलका हाथ रखे"
और थकान की वज़ह से अपना सारा सामान राजीव जी के कंधों पर डाल दिया और खुद खाली हाथ उस यात्रा का आनंद लेने लगा
2013 में आयी प्राकृतिक आपदा के कारण नये ट्रेक को भविष्य संभावित आपदा के अनुकूल के कारण बिलकुल खड़ बनाया गया है जिस पर चलना काफ़ी मुश्किल है इस लिए सारा सामान राजीव जी के कंधों पर लादने के बाद भी हर पंद्रह मिनट पर रूक जाता था और राजीव जी मेरा साथ छोड़ने को तैयार नहीं थे क्यों आप सब जानते ही भारतीय संस्कृति को इसमें किसी को छोड़ कर आगे बड़ना केवल प्रतियोगी परीक्षाओं में ही मान्य है नहीं तो किसी को बीच सफ़र में छोड़ना अच्छा नहीं माना जाता
अब हमें मंदिर की पताका नज़र आने लगी थी और अब हम उंचे पर्वतों को छोड़ नीचे घाटी में आ चुके थे हल्की-हल्की बर्फ भी पड़ने लगी थी और भूख भी जोर पकड़ रही थी और ठंड से दाँत अपने आप कटकटा
रहे थे हमारे दोनों तरफ बुग्याल घास के मैदान शुरू हो गये थे ऊपर पर्वतों को देखने पर मंदाकिनी दुग्ध की भांति सदियों से बह कर अपनी अमृता का परिणाम दे रहीं थी लगा जैसे समस्त मानव जाति से कह रही हो कि --
बह चल निश्छल, संसार का कल्याण कर
ना रूक ना थक बस बह चल , निष्काम कर्म कर
अब हम मंदिर के पथ पर आ गये थे जहाँ लंबी और बहुत चौड़ी सीढ़ी थी जिसे देखकर मेरा मस्तिष्क भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की भांति व्यवहार करता हुआ प्राचीन काल के राजाओं के छायाचित्र मन ही मन बना रहा था और जिज्ञासा थी की शांत होने का नाम ही नहीं ले रहीं थी उन सीढिय़ों के दोनों और केदारनाथ की मार्केट थी जहाँ प्रसाद, होटल,गढ़वाल मंडल के हट ,और खाने-पीने की उचित व्यवस्था थी अब हम सीढ़ी चढ़ कर मंदिर के प्रांगण में आ चुके थे हम दोनों ने एक बार अपनी समस्त शक्ति बल का प्रयोग करते हुए "हर हर महादेव" का जयकारा लगाया
हमे वहाँ अंकुर जी मिल गये थे उन्होंने रूम बुक कर दिया था हमनें समान रूम पर रख दिया और शाम की आरती के लिए मंदिर को चले गये
क्योंकि मैंने धार्मिक यात्राएं बहुत कम की थी तो मैं पूजा के विधान से कम परिचित था इसलिए मैं अंकुर जी के पदचिन्हों पर चल रहा था सबसे पहले वे एक योगी जी के चरण स्पर्श के लिए बड़े उनके पीछे मै था मैंने देखा भगवन्(योगी जी) के मुख पर परम् ब्रहमचारी होने का तेज था और उनहोंने पीत-चिवर धारण कर रखा था समस्त शरीर भस्म व रूद्रराक्ष से शोभायमान था और आगे बने कुण्ड में समिधा अग्निदेव को नैवेद्य स्वरूप अर्पित थी
मैंने भी चरणस्पर्श कर भगवन् के कमण्डल में बीस रूपये डाल दिये ऐसा नहीं था कि वह कोई शर्त हो अपनी-अपनी श्रद्धा से भक्तगण ऐसा कर रहे थे एक योगी को पैसों का भला क्या काम ये सब ना सोचते हुए मैंने भी वैसा ही किया जैसे सब कर रहे थे और अपने तर्कों को अपने दिमाग के ठंण्डे बस्ते में डाल दिया शायद इसलिए कि कहीं कोई मुझे वहाँ हिन्दूविरोधी-देशविरोधी ना ठहरा दे भईय्या!!!! क्योंकि आज कल
भारतीय समाज में फिर से घोर ब्राह्मणवादी विचारधारा का वर्चस्व बड़ रहा है बड़ी जातियाँ यथा: ठाकुर, राजपूत, गुर्जर प्रबल होने लगी हैं इसके कई कारण हो सकते हैं या है भी पर वामपंथीयों और इतिहासकार के अनुसार सरकार का वोटबैंक इसका मुख्य कारण है और मेरा अपना व्यक्तिगत मानना है कि इस सब के लिए भारत की शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार हैं खैर छोड़िये यात्रा पर आते हैं फिर मैंने मंदिर के अग्र भाग में बने नंदी को नमन किया और लंबी लाईन में लग कर मंदिर में प्रवेश किया भगवान् शिव की आरती के साथ-साथ रूद्री पाठ का लगातार स्पीकर के माध्यम से वाचन हो रहा था। शाम की आरती करने के बाद हम खाना खाने के लिए एक ढाँबे पर पहुँचे नाम था गढ़वाली भोजनालय हमनें वहाँ गढ़वाल भोजन का आनंद लिया खाने में गहत की दाल और मंण्डूऐ की रोटी और साथ में गढ़वाली रायता भी था।
हम थोड़ी देर तक मंदिर के आसपास घूमते रहे अब लगभग रात के आठ बज चुके थे और मोबाईल स्क्रीन ने -3 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया था हाथ पाँव लगातार कांप रहे थे दिमाग बार बार कह रहा था एक बिस्तर कम से कम दो रज़ाई।
अब हम कमरे पर आ चुके थे किसी ने कोई आवाज़ किये बग़ैर अपनी-अपनी रज़ाई तानी और एक चिर निंद्रा का संकेत दिया क्योकिं ट्रेकिंग कर सब थक चुके थे और इसी के साथ मैंने भी उस अवस्था का भरपूर फायदा लेते हुए सपनों में डूबने का अहसास प्राप्त किया
सुबह के चार बजे के अलार्म से सभी ने निद्रा में बिघ्न महसूस किया और एक-एक करवट बदली लेकिन अंकुर जी ने हिम्मत साधी और उठ कर बैठने का भरपूर जोश के साथ आगाज़ किया और उठ कर मोबाईल में समय,तापमान, WhatsApp status पर आये रिप्लायी जो शाम की आरती के दौरान लगाये गये थे ,और कुछ अन्य जानकारी की सूचनाएं देखी सब बारी-बारी से नहाये और सब ने कोरे(जो एक भी बार ना पहनें गयें हो) कपड़े पहने। हिंदू मान्यताओं के अनुसार किसी धाम की यात्रा के दौरान एक जोड़ी कोरे कपड़े होना बहुत अवश्यक हैं।
अब में फिर अपने दिमाग के तर्कों को थाम रहा था ऐसा होने की वज़ह पूछना मैंने अवश्य नहीं समझा ये मेरे लिए थोड़ा घातक हो सकता था या इससे वाक् युद्ध होने की संभावनाएं ज्यादा थी तो मैंने इसका कारण ना पूछना ही सही समझा, तो क्या जिसके पास कोरे कपड़े नहीं वह क्या केदारनाथ नहीं जा सकता था ?
इस का उत्तर तो मेरे पास भी नहीं है यादि मैं किसी और धार्मिक यात्रा पर गया तो इस का उत्तर खोजने की कोशिश अवश्य करूंगा पर जब तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार हैं भईय्या!!!! जब तक अपनी इस प्रकार की टिप्पणियों पर अंकुश लगाऊंगा क्या पता ऐसे प्रश्नों पर कब कोई राजद्रोह का मुकदमा लगा दे या मुझे हिंदू होने से नकार दे।
और सब समय सुबह के सात का हो चला था। हमने पहले प्रसाद लिया
जो एक थाली में हमें दिया गया था जिसमें मिसरी,धूप,चंदन,इलायची दाना,मेवे आदि था पर अंकुर जी की थाली में कुछ अधिक सामान था उसमें गंगा जल जो वे हरिद्वार से ही साथ लाये थे कुछ मिष्ठान्न जो देशी घी में बना था जिसकी सुगंध उनके चारों तरफ थी एक धोती और कुछ अन्य वस्तुएं भी थी।
अब हम मंदिर की लाईन में लगे थे मंदिर के पीछे पर्वत की चोटियाँ जो हिमाच्छादित थी उन से सर्द व हाथ पाँव को सुन्न करने वाली हवाएं चल रही थी एक पल को लग रहा था जैसे महादेव हमारी परीक्षा ले रहे हो और अगले ही पल हम ठण्ड से अकड़ जायेंगे हर क्षण ऐसा था कि हाथ से प्रसाद की थाली छूट रही हो पर जल्द ही हम मंदिर तक पहुंच गये और शरीर की संपूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए घंटे पर प्रहार किया और "हर हर महादेव " के नांद से मंदिर का प्रांगण गूंजायमान हो गया
पहला कदम मंदिर में रखते ही संम्पूर्ण शरीर में गर्माहट का अहसास हुआ इस अनुभव को तो मैं भी लिख नहीं सकता इसे अपनी उपस्थिति से केवल महसूस ही किया जा सकता है मंदिर के अंदर कण-कण में सकारात्मक ऊर्जा का बास था अंदर गर्भगृह में पाँचों पांडवों और पांचाली को भगवान् शिव की संस्तुति करते हुए दिखाया गया है मंदिर के अंदर से मंदिर के सदियों से वहाँ होने व प्राचीनता का पता चलता हैं
और जैसा की हमें केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा से पता चलता हैं कि
महाभारत के युद्ध के पश्चात् पांडवो पर अपनों की हत्या का पाप था इस से भगवान् शिव रुष्ट थे भगवान् शिव को मनाने के लिए पांडव पहले काशी गये पर वहाँ भगवान् शिव उन्हें नहीं मिले उसके पश्चात वे केदारनाथ आयें वहाँ शिव बैल के रूप में थे और भीम ने उन्हें पहचान लिया तो भगवन शिव पृथ्वी में समाने लगे भीम ने उन्हें पकड़ लिया जब तक वे आधे समा चुके थे तब से ही भगवान् शिव को पिण्ड रूप में केदारनाथ में पूजा जाता है
मंदिर तीन दिशाओं से पर्वतों से घिरा है एक तरफ केदार पर्वत दूसरी तरफ खर्च कुण्ड तथा तीसरी तरफ भरत कुण्ड हैं यहाँ पाँच नदियों का भी संगम होता है जिसमें मंदाकिनी,मधुगंगा,क्षीरगंगा,सरस्वती व स्वर्ण गौरी हैं इनमें से कुछ नदियों को काल्पनिक माना जाता है केवल मंदाकिनी ही दिखाई देती है मंदिर का निर्माण पांडवो के वंशज जन्मज्ये
द्वारा कराया गया था बाद में जिसका जीर्णोद्धार अदिगुरू शंकराचार्य ने किया था
अंकुर जी की भारी भरकम थाली को देख पुजारी जी की आखों में चमक को देखा जा सकता था हमे पूजारी जी की वजह ने विशेष पूजा अर्चना का सौभाग्य मिला भगवान् केदारनाथ पर चंदन का लेप कर वही चंदन हमनें भी मस्तिष्क पर धारण किया।
मंदिर के बाहर निकलते ही पुजारी जी अपनी दक्षिणा को लेकर कुछ कह पाते अंकुर जी ने उससे पहले ही एक लिफ़ाफ़ा पुजारी जी को अर्पित किया। पुजारी जी के मुख की मुस्कान से लिफ़ाफ़े के भारीपन को महसूस किया जा सकता था
इसी के साथ वक्त हो चला था कुछ खाने का हमने खाना खाया और कमरे पर सब सामान पैक किया और वापिस चलने के लिए तैयार हो गये
अगले कुछ मिनटों में ही हम ट्रेक पर थे अब हम निचे उतरने के लिए
शोर्टकट का सहारा ले रहे थे हाथ में एक दण्डी लेकर जो आमतौर पर सभी के पास होती हैं के सहारे उतर रहे थे वे रास्ते काफ़ी संकरे थे और बारिश के कारण पत्थर फिसलन भरे हो गये थे जिससे यात्रा कष्टदायक हो रही थी पर मन में श्रद्धा और हर हर महादेव के जयकारे शीतलक का कार्य कर रहे थे साथ-साथ कल-कल करती मंदाकिनी मन को दुनिया का मोह त्याग कर संन्यास जीवन की और संकेत दे रही थी मानों कहना चाह रही हो कि संसारिक बंधनों की नौका बनाकर मुझमें छोड़ दो और इस स्वर्ग को अपना लो।
"कुण्डलिनी को जगाता जो,वहीं यहाँ रह पाता है
यूँ ही नही ये भारत विश्व गुरू कहलाता है "
केदारनाथ में हर संन्यासी,बाबा,अघोरी,महंत के मस्तिष्क पर परम् ब्रहमचारी व कुण्डलिनी जागृति के योग को महसूस किया जा सकता था।
अब हम तेज़ी से गौरीकुण्ड की और बड़ रहे थे और शाम ढलते-ढलते
मैं और मनोज जी जल्दी पहुंच गये हमनें गौरीकुण्ड होटल से सारा सामान जो जमा किया था उठाया और सोनप्रयाग पहुँच गये जबकि अंकुर जी को भारी थकावट हो चुकी थी इस कारण राजीव जी और अंकुर जी काफ़ी देर से पहुँचे हमने रूम लिया सारा सामान वहाँ रखा और खाना खाने होटल पर पहुँच गये जब तक खाना आता राजीव जी ने राजनीति पर चर्चा करना उचित समझा और दो चार बाते लगातार नोटबंदी,सर्जिकल स्ट्राइक,अर्थव्यवस्था पर विरोध मत में पेश की शायद वे चाहते थे मैं कुछ बोलूं क्योकि मैं भाजपा प्रशंसक था पर उन्हें कहाँ पता था वे तो इन बड़े बड़े मुद्दे के मद में चूर थे पास में बैठे एक युवा ने विरोध की हुंकार भरी और बिना विचारे काग्रेस की सत्ता के सत्तर सालों को निरर्थक सिद्ध करना चाहा अगले कुछ ही क्षणों में होटल राजनीति की हलचल का मैदान बन चुका था या यूँ कहूँ की संयुक्त राष्ट्र की बैठक में यदि इतनी बहस होती तो परमाणु शक्ति सदस्यता मिल जाती। राजीव जी ने कहा अगर कांग्रेस ने कुछ नही किया तो ये भारत यहाँ तक कैसें पहुंच कैसें ये पश्चिम सभ्यता के कपड़े पहन रहे हो कैसे ये मोबाईल चला रहें हो ये सब भाजपा ने नहीं कांग्रेस ने ही किया है सामने वाले युवा की बातों से अखबारी और राजीव जी की भाषा से गहन चिंतन की बू आ रही थी इस कारण युवा की बातें तर्कों पर खरी नही थी पर उस युवा की एक बात ने हमारे मस्तिष्क की नशों को झंझोर देने वाली पहल की और कहाँ भाईसाहब देख लेना मोदी जी इस देश के राजा बनेंगे ये लोकतंत्र तो एक दो साल में खत्म हो जायेगा। और उस स्थान पर हिंदू ज्यादा होने के कारण विभिन्न धर्म पर टिप्पणी का भी उस भारतीय युवा को लाईसेंस मिल चुका था कई धर्म विरोधी बातें भी हुई राजीव जी ने उस परम् अंधभक्ति की भक्ति को नमन् करते हुए शांति से वो पहला कष्टकारी निवाला उतारा और आवाज़ में भारीपन लाते हुए बोले देखा आदित्य जिस संविधान की विशेषताओं में से एक लोकतंत्र है उसे भारतीय युवा धूमिल करने की तरफ अग्रसर है। जिस पर हमें हमेशा गर्व है। क्या चौथा स्तंभ खतरे में नहीं है? क्या ये हमारी शिक्षा प्रणाली का दोष नहीं है?क्या ये समाज में घट रहे नैतिक मूल्यों का दोष नहीं है?क्या ऐसे लोगों राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं?क्या ये है देश का भविष्य? यदि ऐसा ही चलता रहा तो शायद भारत में गृहयुद्ध की स्थिति ना बन जाये या हो सकता है वैश्विक स्तर पर तृतीय विश्व युद्ध भी।।।
अब हम यूँही बाते करते हुए कमरे में चले गये राजीव जी ने राष्ट्रीय के नम एक लंबा आख्यान दिया और हम सो गये
अगली सुबह,सुबह के नाश्ते के साथ हम हरिद्वार की बस में थे काफ़ी दिनों की थकान उस बस की नरम सीट ने उतारी लगभग तीन घंटे नींद के बाद हमनें आधा सफ़र तय कर लिया
पर मेरे मन पर, जो इस यात्रा की यादें थी रह रह कर चलचित्र की भांति
उभर रही थी और मन की ऊहापोह की स्थिति वापस ना जाने की और इशारा कर रही थी।
