Priyanka Gupta

Abstract

4  

Priyanka Gupta

Abstract

एक रिश्ता ऐसा भी

एक रिश्ता ऐसा भी

13 mins
440


"अरे चाचा-चाची हों तो, कुमुद के जैसे कितना बढ़िया घर और वर देखा है, अपनी भतीजी के लिए । चौधरी साहब की गिनती शहर के रईसों में होती है" कुमुद की शादी में शिरकत करने आये किसी मेहमान ने कहा ।

"हाँ, शादी के प्रबंध भी कितने बढ़िया हैं?" किसी दूसरे ने कहा ।

"खाना, डेकोरेशन, कपड़े-लत्ते, लेन-देन कहीं कोई कमी नहीं है । सब बहुत बढ़िया है" किसी ने शादी की रौनक में तारीफ़ के कसीदे काढ़ते हुए कहा ।

"अरे भई, कुमुद के मम्मी-पापा अपने पीछे लाखों की संपत्ति छोड़कर गए थे । चाचा का अपनी जेब से क्या गया? ", अच्छी से अच्छी बातों और तैयारियों में भी कमी ढूंढ लेने वाले किसी आलोचक प्रवृत्ति के व्यक्ति ने कहा । 

"लेकिन कोई और होता तो अपने भाई-भाभी की संपत्ति खुद ही हड़प लेता, लोग ऐसा करते भी हैं । कुमुद के चाचा के ह्रदय में कम से कम इतना राम तो बचा है । बस बिन माँ-बाप की बेटी ख़ुश रहे । ", हमेशा दूसरों में अच्छाई देखने वाले किसी भलेमानस ने कहा । 

अब आइये आपका थोड़ा परिचय इस कहानी की नायिका कुमुद से भी करा दें । अब कुमुद नायिका है या महज पात्र, इस बात का फ़ैसला मैं आप पाठकगण पर छोड़ती हूँ ।

कुमुद 10 वर्ष की थी, जब एक कार दुर्घटना में उसके मम्मी-पापा की मृत्यु हो गयी । चाचा-चाची के अलावा उसका अपना कोई नहीं था । वैसे उसके मम्मी-पापा की संपत्ति के कारण बहुत से दूरदराज़ के रिश्तेदार उसकी देखभाल करने में रूचि दिखा रहे थे । लेकिन कानून और बच्ची की इच्छा भी तो कोई चीज़ होती है, तब कुमुद में इतनी समझ तो थी ही कि और लोगों से उसके सगे चाचा-चाची बेहतर ही होंगे । 

अपने मम्मी-पापा को खो चुकी कुमुद अपनी उम्र से पहले ही बड़ी हो गयी थी । उसकी चाची के दो जुड़वाँ बच्चे थे । कुमुद अपने छोटे भाइयों का बहुत ख़्याल रखती और उनसे बहुत प्यार भी करती थी । चाचा-चाची का कुमुद के प्रति व्यवहार उदासीन था । वे उसे प्रताड़ित तो नहीं करते थे, लेकिन उससे खास प्यार भी नहीं जताते थे । कुमुद पढ़ने-लिखने में एक साधारण सी विद्यार्थी थी, लेकिन उसे पेंटिंग करने का शौक था । उसे अपने इस शौक को निखारने का कोई अवसर नहीं दिया गया । 

ज़िन्दगी कब किसी के लिए रूकती, कुमुद की ज़िन्दगी भी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती रही । कुमुद ने स्नातक कर लिया था, अब नाते-रिश्तेदार कुमुद के चाचा-चाची पर उसकी शादी के लिए दबाव बनाने लगे । चाचा-चाची को अब यह डर सताने लगा कि शादी के बाद कुमुद का पति तो उसकी सम्पत्ति माँग सकता है और कुमुद को भड़का भी सकता है । 

ऐसे में शहर के जानेमाने रईस चौधरी जी के बेटे शिवम् का कुमुद के लिए रिश्ता आया । पहले न नुकुर के बाद पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि कुमुद के चाचा-चाची इस रिश्ते के लिए मान गए । मान ही नहीं गए, एक महीने बाद कुमुद की शादी की तारीख़ भी तय कर दी, चट मंगनी, पट ब्याह की कहावत यहाँ सटीक बैठती है । 

कुमुद भी इस शादी के फैसले से खुश थी । उसे पहली नज़र में ही शिवम् भा जो गया था । कुमुद ने उसे सगाई वाले दिन ही पहली बार देखा था । शिवम् किसी बॉलीवुड हीरो जैसा लगा था, वैसे कुमुद भी देखने में बुरी नहीं थी, लेकिन शिवम् की तो बात ही कुछ और थी । उसके हवा में लहराते बाल, चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी-मूंछ, चेहरे से कभी अलग न होने वाली मुस्कान, कुमुद को अपनी किस्मत पर नाज़ हुआ था । थोड़ा डर भी लगा था कि कहीं शिवम् को ही वह पसंद न आये । सगाई में हुई थोड़ी सी बातचीत से कुमुद को शिवम् दिल का भी काफ़ी अच्छा लगा था । 

सगाई के लिए जब कुमुद तैयार हो रही थी तो काँच की एक चूड़ी के झड़ जाने से उसकी कलाई पर थोड़ी सी चोट लग गयी थी । अँगूठी पहनाते हुए, न जाने शिवम् का ध्यान वहाँ कैसे चला गया? शिवम् ने हौले से कुमुद से पूछा, "आपको यह चोट कैसे लगी? इस पर कुछ लगाया क्यों नहीं? ध्यान न देने से कई बार छोटे-छोटे घाव भी नासूर बन जाते हैं । " कुमुद का ज़वाब सुनने से पहले ही उसने अपनी जेब से एक बैंड-ऐड निकालकर कुमुद को पकड़ा दी थी । 

कुमुद उसे एकटक देखे जा रही थी, तब शिवम् ने आँखों ही आँखों में कुमुद से वह बैंड-ऐड अपनी चोट पर लगाने के लिए कहा था । कुमुद का दिल उसी दिन उन आँखों में खो गया था । कुमुद को बैंड-ऐड लगाते देख आसपास घूम रही छोटी बहिनें, सहेलियां आदि उसे और शिवम् को छेड़ने भी लग गयी थी । 

सगाई के दिन की एक छोटी मगर ख़ूबसूरत याद दिल में लिए कुमुद आज शिवम् के साथ सात फेरे ले रही है । जब चाचा-चाची ने कुमुद का हाथ शिवम् के हाथ में रखा तो कुमुद के पूरे शरीर में बिजली से दौड़ गयी थी । सिन्दूर-दान के साथ ही कुमुद ने मन ही मन सोच लिया था कि केवल इसी जनम में नहीं, वह यह प्यारा बंधन सातों जनम निभाएगी । 

शिवम् की दुल्हन बन, कुमुद अपने नए घर चौधरी निवास में आ गयी थी । नयी दुल्हन के स्वागत में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी गयी थी । समझ नहीं आ रहा था कि दुल्हन कुमुद है या चौधरी निवास । दिन-भर विभिन्न नेगचार निपटाते, हँसी-ठिठोली करते बीत गया । 

रात होते ही कुमुद अपने कक्ष में पहुँच गयी थी । अपनी किस्मत पर इतराती, कभी अपनी चूड़ियों से खेलती, कभी अपना घूँघट ठीक करती कुमुद शिवम् का इंतज़ार करने लगी । शिवम् के इंतज़ार में एक-एक पल सदियों सा गुजर रहा था । तब ही दरवाज़े पर आहट हुई, कुमुद ने तिरछी नज़र से देखा तो शिवम् थे । 

कुमुद ने अपने घूँघट को ठीक कर लिया और शिवम् के कुछ कहने का इंतज़ार करने लगी । शिवम् ने कहा, " अरे, आप अभी तक इतने भारी कपड़े और ज़ेवर पहनकर बैठी हुई हैं । दिनभर की भागादौड़ी में थक गयी होंगी आप, कपड़े बदलकर आराम से बैठिये । और आपको कभी भी किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो मुझे बताइयेगा । कभी कोई परेशानी हो तो भी मुझे बताइयेगा । आप लड़कियों में ही इतना बड़ा जिगरा होता है, जो अपना घर छोड़कर किसी अजनबी के साथ ख़ुशी-ख़ुशी रह लेती हो । "

कुमुद शिवम को कहना चाहती थी कि आप अज़नबी कहाँ हो? मुझे बड़े जाने-पहचाने से, अपने से लगते हो । लेकिन केवल 'जी, ठीक है । ' कहकर कपड़े बदलने चली गयी । 

जब कुमुद कपड़े बदलकर लौटी, तब तक शिवम नींद के आगोश में जा चुके थे । सोते हुए शिवम् उसे बहुत ही प्यारे लगे । कुमुद भी शिवम् के बगल में लेट गयी । लेकिन मारे ख़ुशी के उसे नींद ही नहीं आ रही थी । शिवम् की बातें और व्यवहार उसका दिल जीतते जा रहे थे ।

अपने नए घर में कुमुद सभी की लाडली थी । जो प्यार उसे अपने चाचा-चाची से नहीं मिला, वह अपने ससुराल में मिल रहा था । दिन भर हँसते-मुस्कुराते बीत जाता था, उसके पेंटिंग के शौक को जानकर शिवम् ने उसे फाइन आर्ट्स कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए कहा और खुद ही फॉर्म भी लाकर दे दिया । सब कुछ सही था, लेकिन अभी भी शिवम् और कुमुद दो जान, एक दिल नहीं हो पाये थे । शिवम् के व्यवहार में हमेशा ही एक शालीनता रहती थी । वह कुमुद के निकट नहीं जाता था, एक ही बिस्तर पर दोनों अजनबियों की तरह सोते थे । कुमुद की शादी को एक महीना हो चला था । उसे किसी से कोई शिकायत नही थी, सब ठीक था ।

कुमुद और शिवम् के मध्य दोस्ती का एक प्यारा सा रिश्ता तो बन गया था, लेकिन अभी तक पति-पत्नी का रिश्ता नहीं बन पाया था । कुमुद को दोस्ती के साथ-साथ शिवम् का प्यार भी चाहिए था । अब यह दूरी कुमुद को सहन नहीं हो रही थी ।हम मानव भी कितने अज़ीब हैं ,जब हमारी इच्छाएं पूरी होनी लगती हैं ;तब और नयी ख़्वाहिशें बढ़ने लगती हैं। ऐसा ही कुछ कुमुद के साथ भी हो रहा था। हर लड़की अपने पति में दोस्त और प्रेमी दोनों ही चाहती है ,कुमुद की चाहत भी कोई गलत नहीं थी। 

आज कुमुद ने शिवम् से बात करने की ठान ही ली थी। डिनर करने के बाद कुमुद अपने कमरे में चली गयी थी और थोड़ी देर बाद शिवम् भी आ गया था। 

कुमुद बिस्तर पर तकिये का सहारा लगाए कोई पत्रिका पढ़ रही थी। शिवम् को देखते ही उसने पत्रिका एक तरफ रख दी। "अरे ,पढ़ लो ,पढ़ लो। पढ़ना अच्छी बात है। पढ़ने से शायद तुम्हें अपनी पेंटिंग्स के लिए कोई नया आईडिया ही मिल जाए। ",शिवम् ने बिस्तर पर बैठते हुए मुस्कुराकर कहा। 

"अरे हाँ ,पेंटिंग से याद आया ;तुमने अपना फॉर्म भर दिया। कल लास्ट डेट है जमा करवाने की। अपने शहर का सबसे अच्छा कॉलेज है ;देखना तुम और भी बढ़िया पेंटिंग्स करने लग जाओगी। ",कुमुद के ज़वाब की प्रतीक्षा किये बिना शिवम् ने कहा। 

"क्या आप सही में इतने अच्छे हैं या सिर्फ नाटक करते हैं ?वैसे फॉर्म भर दिया मैंने और पापाजी ने जमा भी करवा दिया। ",कुमुद ने दुःख और नाराज़गी से कहा। 

"नाटक ??? नहीं ,कुमुद यह तो मेरा स्वभाव है। मैं तो सभी का ध्यान रखता हूँ ;कोशिश करता हूँ कि किसी को मेरी वजह से कोई तकलीफ नहीं हो। तुम इस घर में नयी -नयी आयी हो ;इसलिए अभी तुम्हारा थोड़ा ज़्यादा ध्यान रखता हूँ। अच्छा है ;पापा ने तुम्हारा फॉर्म जमा करवा दिया। ",शिवम् ने कुमुद की तरफ देखते हुए प्यार से कहा। 

कुमुद ने अपना हाथ शिवम् के हाथ पर रखते हुए कहा ,"जानती हूँ शिवम् ;तब ही तो इतने दिन कुछ नहीं कहा। आप और आपका परिवार सब बहुत अच्छा है। मुझे यहाँ कोई दिक्कत नहीं है। बस अब मैं आपका प्यार चाहती हूँ ;वैसा प्यार जो हर पत्नी को अपने पति से मिलता है। "

शिवम् ने चौंकते हुए अपना हाथ कुमुद के हाथ से छुड़ा लिया। "क्या हुआ ,शिवम् ?क्या मैं आपको पसन्द नहीं ? अगर पसंद नहीं थी तो आपने शादी ही क्यों की ?ऐसी किसी लड़की से शादी करते जो आपकी दोस्त ,प्रेयसी ,पत्नी सब कुछ बनने के लायक होती। ",कुमुद के दिल में जमा दर्द आँसुओं और शब्दों के रूप में बह निकला। 


कुमुद की आँखों में आँसू देखकर शिवम् हक्का -बक्का रह गया ,उसके आँसू पोंछते हुए कहा ,"कमी तो मुझमें है ,कुमुद ;आप में नहीं और आपको तो शादी के पहले से ही सब पता था। अब आप मुझे मेरी ही नज़रों में क्यों शर्मिंदा कर रही हैं। "

अब चौंकने की बारी कुमुद की थी। "कैसी कमी ? मुझे शादी से पहले कुछ नहीं बताया गया था। आप कैसी बातें कर रहे हो ?",कुमुद ने कहा। 

शिवम् गुस्से से काँपने लगा और जोर से चिल्लाया ," मम्मी -पापा ,जल्दी से इधर आइये। "

शिवम् को देखकर कुमुद डर से थर -थर काँपने लगी। इतनी देर में शिवम् के मम्मी -पापा आ गए थे। 

"क्या हुआ ,बेटा ? क्या हुआ ,बेटा ?", शिवम् के पापा ने घबराते हुए पूछा। 

"आपने तो कहा था कि लड़की को सब पता है और सब कुछ जानने के बाद भी वह शादी के लिए तैयार है। आपने एक मासूम लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। शर्म आनी चाहिए आपको। ",शिवम् ने गुस्से में काँपते हुए कहा। 

"नहीं बेटा ,कुमुद के चाचा जी को सब पता था। बल्कि इतना ही नहीं हमने तो शादी का पूरा खर्च भी उठाया और उन्हें 20 लाख रूपये देने का वादा भी किया था। जिसमें से 15 लाख तो दे चुके और 5 लाख कल देने हैं। ",शिवम् के पापा ने कहा। 

"हां बेटा ,तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं। मैंने खुद ने उनसे पूछा था कि कुमुद को इस शादी से कोई ऐतराज़ तो नहीं है। उसकी सहमति तो है न। ",शिवम् की मम्मी ने कहा। 

"ऐसी क्या बात है ?जो आप सबको पता है ;लेकिन मुझे ही नहीं पता। ",कुमुद ने रोते हुए पूछा। 

"कुमुद ,शिवम् नपुंसक है। इसने तो शादी के लिए लाख मना किया था ;लेकिन हमने इसकी नहीं सुनी। लेकिन जब हमने बताया कि बिन माँ -बाप है ;उसे एक परिवार मिल जाएगा। ",शिवम् की माँ ने कहा। 

"तब इस शर्त पर माना था कि लड़की को पहले से ही सब बता देना। ",शिवम् के पापा ने कहा। 

कुमुद एकदम से सुन्न हो गयी थी ,वह बस इतना ही कह पायी कि ,"मुझे शादी से पहले किसी ने कुछ नहीं बताया था। "

शिवम् ने अपने मम्मी -पापा की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा ,"आप क्यों झूठ बोल रहे थे ?"

"नहीं बेटा ,हम अभी कुमुद के चाचा को फ़ोन करते हैं। तुम दोनों ही सुन लेना। ",शिवम् के पापा ने कहा। 

शिवम् के पापा ने कुमुद के चाचा का फ़ोन नंबर डायल किया और फ़ोन स्पीकर पर लगा दिया। चाचा का फ़ोन कनेक्ट हो गया था ;फ़ोन की घंटी बजी। ...ट्रिंग...ट्रिंग...ट्रिंग...ट्रिंग...ट्रिंग...ट्रिंग...ट्रिंग...कुछ घंटियों के बाद चाचा ने फ़ोन उठा लिया था। फ़ोन उठाते ही उन्होंने कुमुद की कुशलक्षेम कुछ नहीं पूछी ,सीधा ही यह पूछा ,"कल ५ लाख रूपये आप नगद देंगे या कुछ और विचार है ??"

चाचा की बात सुनकर कुमुद को आश्चर्य मिश्रित दुःख हुआ। तब शिवम् के पापा ने कहा ,"भाईसाहब कल नगद भिजवा दूंगा। लेकिन कुमुद को शिवम् के बारे में सब पता तो है न। कहीं पैसा भी चला जाए और बहू भी। "

"अरे भाईसाहब ,आप कैसी बात करते हो ?कुमुद को हमने सब शादी से पहले ही बता दिया था। आप तो नगद ही दीजिये और अपना वादा याद रखियेगा कि कुमुद अब कभी भी इस घर से या अपने मम्मी-पापा की संपत्ति से कुछ उम्मीद न रखें। आप मतलब तो समझ ही गए होंगे। ",कुमुद के चाचा ने कहा और उसके बाद नमस्ते कहकर फ़ोन रख दिया। 

अपने चाचा की धूर्तता और मक्कारी भरी बातें सुनकर ,कुमुद का ह्रदय चाचा के प्रति घृणा से भर गया था। अब उसके सामने सारी चीज़ें शीशे की तरह साफ़ थी। शिवम् और उसके परिवार ने नहीं ,बल्कि उसके अपने सगे चाचा -चाची ने उसके साथ छल किया था और उसे मँझधार में डाल दिया था। 

"पापा जी ,अब आप चाचा को एक भी पैसा नहीं देंगे। ",कुमुद ने घृणा और रोष से कहा। 

"क्यों बेटा ?क्या तुम यह रिश्ता ख़त्म कर दोगी ?बेटा ,शिवम् और इस घर को छोड़कर मत जाओ। तुम हमारे लिए हमारी बेटी से भी बढ़कर हो। ",शिवम् की मम्मी ने रोते हुए कहा। 

"नहीं मम्मी ,आप इन्हें मत रोकिये। अगर आपकी बेटी के साथ भी ऐसा होता तो आप यही कहती। आप लोगों के सौदेबाज़ी की क़ीमत कुमुद क्यों चुकायेगी ,भला ?कुमुदजी मैं आपके निर्णय का सम्मान करता हूँ और आपके हर फैसले में आपके साथ हूँ। ",शिवम् ने अपनी मम्मी को चुप कराते हुए कहा। 

"पापा जी ,कल आप कोई पैसा नहीं देंगे। बाकी मुझे सोचने के लिए कुछ वक़्त दीजिये। ",कुमुद ने कहा। 

दुःखी मन से शिवम् के मम्मी -पापा वहां से चले गए थे। उनके जाने के बाद शिवम् ने कुमुद से कहा कि ,"कुमुद आप पर कोई दबाव नहीं है। आप स्वतंत्र रूप से निर्णय लें। हमारी दोस्ती का रिश्ता हमेशा ऐसा ही रहेगा ;आपका फ़ैसला चाहे कुछ भी हो। "

एक सप्ताह बाद कुमुद ने शिवम् को उसे अपने चाचा के घर छोड़ आने के लिए कहा। कुमुद की बात सुनकर शिवम् के मम्मी -पापा की आख़िरी उम्मीद भी टूट गयी थी। तब ही शिवम् के पापा ने कुमुद को एक कागज़ पकड़ाते हुए कहा ," बेटा ,तुम्हारा आर्ट कॉलेज में एडमीशन हो गया है। कन्फर्मेशन लेटर कल ही आ गया था ;लेकिन तुम्हें बताना भूल गए थे। "

"पापा जी ,यह लेटर यहीं रखिये। मैं तो चाचा से अपने पापा का घर और बाकी की संपत्ति लेने जा रही हूँ। मैं यह काम वकील के जरिये भी कर सकती थी ;लेकिन मेरे चचेरे भाइयों को भी तो अपने पापा की सच्चाई पता लगनी चाहिए। ",कुमुद ने कहा। 

"शिवम् ,आपके जैसा जीवन साथी मुझे कहाँ मिलेगा ?आपकी यह कमी ,आपकी अच्छाइयों के सामने मुझे नज़र ही नहीं आती।मैं जितना ज्यादा आपकी कमी के बारे में सोचती हूँ ,उतना ही ज्यादा खुद को आपके सामने बौना पाती हूँ। मैंने अपने आपको बहुत समझाने की कोशिश की कि मुझे आपका साथ छोड़ देना चाहिए ;लेकिन मेरा दिल और दिमाग दोनों ही मेरी बात सुनने को तैयार नहीं है। मैं आपको और इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी। ",कुमुद ने भीगी आँखों से कहा। 

अपने पापा की जायदाद से, एक सफ़ल पेंटर बन चुकी कुमुद ने कुछ सालों बाद एक अनाथालय और आर्ट कॉलेज बनवाया। दोस्ती और जज्बातों के अटूट रिश्ते से बंधे शिवम् और कुमुद दोनों की ही ज़िन्दगी को एक मक़सद मिल गया था ,"कुमुद जैसे अनाथ हुए बच्चों की ज़िन्दगी को रोशन करना। "



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract