विदेश
विदेश
पंखुड़ी के बड़े भैया पहले से ही विदेश में बसे हुए थे।पंखुड़ी के विवाह के बाद से ही पंखुड़ी के मम्मी-पापा समर को विदेश जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। जब कभी भी समर अपने ससुरजी से मिलता;एक न एक बार वे अपने विदेश में रह रहे बेटे की बात करते और समर को भी विदेश में नौकरी ढूँढने के लिए कहते।
"समर,भारत में कितनी ही मेहनत कर लो;हमेशा रुपयों में ही कमाओगे। रुपया कभी भी डॉलर की बराबरी नहीं कर सकता।तुम एक बार अपना बायोडाटा ,नहीं -नहीं वो तुम लोग क्या कहते हो ?"
"पापा ,रिज्यूमे । "
"हाँ -हाँ ,वही ;सुधांशु कह रहा तह कि एक बार समर अपना रिज्यूमे भेज दे ,फिर नौकरी तो लग ही जायेगी । "
"जी पापा । "
रोज़-रोज़ अपने ससुरजी की बात सुनकर ,समर के दिल में भी विदेश में बस जाने का सपना हिलोरें मारने लगा था और उसने अपना रिज्यूमे सुधांशु भैया के पास भेज ही दिया था ।
समर के पास अच्छे कॉलेज की डिग्री थी और कार्य का भी अच्छा अनुभव था तो ,पंखुड़ी के सुधांशु भैया के जरिये अच्छी नौकरी मिल गयी;नौकरी के साथ ही वर्क परमिट और वीजा भी मिल गया। स्पाउस ग्राउंड पर पंखुड़ी का वीजा भी मिल गया था ।
"समर,भैया कह रहे थे कि हमें सिटीजनशिप भी आसानी से मिल जायेगी।अपने और अपने आने वाले बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए हम वहीँ बस जायेंगे।",पंखुड़ी की आँखें आने वाले कल की सुनहरी तस्वीर से चमक रही थी।
लेकिन समर अपने भविष्य की योजनायें अपने मम्मी-पापा को नहीं बता पा रहा था।समर कामेश जी क एकलौता बेटा था। कामेश जी की पेंशन आ ही रही थी ;घर का मकान था और उन्होंने एक दुकान भी खरीद रखी थी। दुकान का किराया आता था।अच्छा खाता -पीता परिवार था ;कोई कमी नहीं थी। बाकी मनुष्य की महत्त्वाकांक्षाएँ तो कभी समाप्त ही नहीं होती। इसलिए संतोष को सबसे बड़ा धन बताया भी गया है।
इसीलिए समर अपने मम्मी -पापा को अपने विदेश जाने के फैसले से अवगत नहीं करवा पा रहा था। उसके और पंखुड़ी के जाने के बाद मम्मी -पापा दोनों एकदम अकेले पड़ जाने वाले थे। पापा तो फिर भी कैसे न कैसे खुद को समझा बुझा लेते ,लेकिन मम्मी तो एकदम ही टूट जाती।
पंखुड़ी ने एक -दो बार समर से कहा भी कि ,"समर ,अगर आप बात नहीं कर पा रहे तो मैं मम्मी-पापा से बात करूँ। "
"नहीं पंखुड़ी ,मम्मी -पापा को मुझे ही बताना होगा और साथ ही इसके लिए तैयार भी करना होगा। "
वक़्त निकलता जा रहा था ;धीरे -धीरे समर और पंखुड़ी के विदेश जाने का दिन नज़दीक आ रहा था।
इसी बीच एक दिन पंखुड़ी की मम्मी को दिल का दौरा पड़ा। पंखुड़ी तो यह खबर सुनकर बौखला ही गयी थी। समर की मम्मी उसे दिलासा दे रही थी कि ,"बेटा ,सब ठीक हो जाएगा। समर को खबर दे दी है और वह ऑफिस से निकल गया है। उसके आते ही तुम दोनों हॉस्पिटल चले जाना। "
समर और पंखुड़ी हॉस्पिटल पहुँचे।
हॉस्पिटल पहुँचकर पंखुड़ी रोते-रोते अपने पापा के गले लग गयी थी।
समर हॉस्पिटल की सभी औपचारिकतायें पूरी करने में लगा हुआ था।पंखुड़ी की मम्मी का ऑपरेशन होना था।
"एक बार अपने बेटे को देखना चाहती हूँ।",ऑपरेशन से पहले पंखुड़ी की मम्मी ने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा।
विदेश गया बेटा डॉलर तो भेज सकता था,लेकिन स्वयं आने में असमर्थ था।
पंखुड़ी की मम्मी बेटे को देखने की ख्वाहिश दिल में ही लिए ही उस दुनिया में पहुँच गयी थी ;जहाँ से सब कुछ देखा जा सकता था। विदेश जाने की सुनहरी तस्वीर टूट चुकी थी ,टूटे हुए काँच पंखुड़ी की आँखों को लहूलुहान कर रहे थे।
"हम कहीं नहीं जा रहे। टिकट कैंसिल करवा लो। ", पंखुड़ी ने अपने परिवर्तित निर्णय से समर को अवगत करवा दिया था।