पहली रात का थप्पड़-प्रेम कहानी
पहली रात का थप्पड़-प्रेम कहानी


सवरे सवेरे नूरी को दरवाजे पर खड़ा देख रमीला हैरान रह गई।जाड़े की एक भयंकर शीत लहर उसके ह्रदय से पार हो गई।उसका मन एकाएक हजारों डरावने ,रहस्यमई सवालों से जल उठा।
नूरी को कल जिस लाल जोड़े में ससुराल के लिए विदा किया था।वह उसी लाल जोड़े में दरवाजे पर खड़ी थी।
रमीला ने जल्दी से दरवाजे के बाहर इधर उधर देखा और नूरी का हाथ पकड़ भीतर बाखर में लेे आई। हजारों पहेलियों में उलझी रमीला ने नूरी से पूछा_" का बात है गई ,नूरी जल्दी बता ? मेरो हियो बैठो जा रहयो है। तू ससुराल से ऐसे कैसे चली आई।"
सूखे पपड़ी पड़े होंठों और दुखों के भावों से भरी नूरी मां से लिपटकर फूट फूट कर रोने लगी। नूरी के आंसुओं कि धार से रमीला का बिलौज कंधों से भीग गया। रमीला नूरी के आंसुओं से भीगे बिलौज़ के गीलेपन से उसके दुख का अंदाजा लगा रही थी।
उसका मन और गहन चिंताओं की लपटों से घिरने लगा। उसके हृदय सागर में नूरी के जीवन में आने वाले दुखों के बुदबुदे बनने और फूटने लगे।उसने कंधे से लिपटी नूरी को पकड़ झंझोर कर पूछा_" अरी तू बताती क्यों नहीं, का बात है गई?"
आंसुओं कि धार से भीगी नूरी ने कहा_" मां उसने मुझे थप्पड़ मारा"
" थप्पड़ मारा ! किसने थप्पड़ मारा ? रमीला ने जल्दी जानने की कोशिश कर पूछा"
"निहाल ने" नूरी ने हिलकी लेते कहा"
निहाल ने पर क्यों ? रमीला ने भोहें तानकर पूछा।"
नूरी थोडी झेंपी और बोली:_" मुझे नहीं पता"
"तुझे नहीं पता तो किसको पता ?" रमीला ने कहा
"माँ जो आदमी पहली रात को ही अपनी पत्नी पर हाथ उठा सकता है। थप्पड़ मार सकता है। वह जीवन भर मेरा क्या हाल करेगा ? मुझे ऐसे आदमी के साथ नहीं रहना ।"
रमीला ने नूरी की बात सुन अपना हाथ माथे पर मारकर कहा:_"हाय राम इतेक सी बात पर आदमी को छोड़कर भाग आई।
हे भगवान अब का होवेगो ? ये दुनियां का कहेगी। जात ,बिरादरी के लोग का कहेंगें।
रमीला का दिल नूरी के जीवन में आने वाली विपत्ति से सहमने लगा। सूरज के ताप से सूखे तालाब की तरह रमीला के शरीर का रक्त नूरी के लिए फैसले के ताप से सूखने लगा।
रमीला ने सूखे हलक से कहा:_"नूरी तेने ई का करो। तेरे बापू के बारे में तो सोचती। उनकी इज्जत का क्या होवेगा।
तेरे बापू ने कैसे कैसे लाठी _पटींगों से मेरे हाड़ तोड़े थे। महीने महीने भर तक शरीर से निशान नहीं मिटते थे।रात दिन दर्द से कराहते हुए निकल जाते । तूने देखा था न। पर मैं का तेरे बापू को छोड़कर भाग गई। नहीं न।
माँ की बातें छुम्म होकर सुन रही नूरी ने कहा:_ मुझे नहीं पता। मैं उस आदमी के संग नहीं रहूंगी।
रमीला गुस्से से बोली :_तूने तो सहज ही कह दियो की उसके साथ ना रहूंगी।पर जब ये बात मोहल्ला पड़ोस में पतो लगेगी, तो हम नौ हाथ जमीन में घढ जाएंगे। इस बात का पता है न तुझे।
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रमीला नूरी की पीड़ा और फैसले से भली भांति परिचित थी। पर वह दुनिया के लांछनों से डर रही थी। वह चिंतित थी कि अब नूरी का क्या होगा?
जब वह पहली बार इस घर की बहू बनकर आई थी। तो उसके घर में क़दम रखते ही नूरी के बापू हीराराम को ये हिदायत दी गई थी।अपनी लुगाई को आते आते ही अपने पैरों के तलुओं के नीचे नहीं, एडी तले कुचल कर रखना। पैरों के तले तो उसे थोड़ी बहुत सांस लेने की जगह या आजादी मिल जाएगी । लेकिन एडी तले तो उसकी एक एक सांस घुट जाएगी। और जवान हमेशा के लिए बंद।
" सुन ले छोरा अपनी इज्जत करवाना अपने हाथ में होता है"।
हीराराम को जैसी हितायत दी गई ।उसने वैसे से ही किया।
पहली रात को ही हीराराम ने रमीला की चोटी खींच दो लात मारी थीं।बाहर बैठी रमीला की सास कमलो के जिगर को सुआत पड़ रही थी। आखिर हीराराम वहीं कर रहा था। जो वह चाहती थी।
लुगाई को पहली ही रात में दवा लिया।
उस दिन के बाद रमीला को बात बात पर दवाया जाता।जीवन में वह कभी खुद कोई फैसला न ले सकी। जरा सा बोलने की हिमाकत करती तो हीराराम उसके हाड़ तोड़ने भागता।रमीला मन ही मन खूब छटपटाती लेकिन आखिर दव जाती।धीरे_ धीरे अपने अरमानों को कुचलने की उसे आदत पड़ गई । वह पुरुष समाज में औरत की पदवी को जान गई थी। उसे ज्ञात हो गया, पुरुषों से सुशोभित इस समाज में औरत का क्या मौल है।
रमीला पूरे दिन धूप ताप में घर ,खेत ,भेंस ,ढोरों के काम में कोलुहू का बैल बन पिसती।
सास को तनिक भी चाय या किसी भी काम के लिए देरी हो जाती तो वह रो रोकर सारे बखाने हीराराम को सुनाती और वह उसे रूई की तरियां धुन देता।
एक बार वह गुस्से में आकर अपने पीहर चली गई थी। उसे समाज का डर था। पर बेचारी क्या करती ? कब तक सहन करती।
वहां उसे परिवार और अड़ोस पड़ोस की औरतों ने समझाया ।
कहती:_ चल बावरी, मार पिटाई करने पर ही तू अपने खसम को छोड़ कर आ गई। अब क्या दूसरा ब्याह, दूसरा खसम् करेगी ? वह क्या तुझे सोंठ का सीधा मिलेगा? वह इससे भी बड़ा जानवर मिला तो.............................. फिर क्या तीसरे कसम करेगी ?
चाची ने कहा:_" शादी के बाद एक लड़की पीहर में कब तक निभेगी। यह तो तुम भी जानती हो। इसलिए ससुराल ही चली जाओ । वहीं जाने में तुम्हारी भलाई है।
इन सब बातों को सुन रमीला खुद ही ससुराल आ गई। जब महीने चढ़ गए तो उससे ज्यादा काम ना होता। दिनभर जी मिचलाता। काम में जरासी ढील होते ही उसे बताया जाता। वह अकेली या अनोखी नहीं है। जो लाला जनेगी। पूरी दुनियां की औरतें लाला जनती हैं। इसलिए ज्यादा तीन पांच करने की जरूरत नहीं है। काम तो करना ही पड़ेगा। रमीला को पूरे नौ महीने में भी बैठने नहीं दिया गया।
एक दिन कुएं से पानी लाते वक्त रमीला को घर के दरवाजे पर चक्कर आ गया और वहीं गिर गई। सिर पर रखी दो छोटी बड़ी मटकी भड़ाम से फूट गई। एक हाथ में स्टील की छोटी कलसी और रस्सी थी। स्टील की कलसी दूर लुढ़क गई ।और पेंदे की जगह से दुचक गई।
आवाज सुन कमलो बाहर आई और बोली_" देखो कितेक ढोंग कर रही है। मेरा कितना नुकसान कर दिया।" मटकी फोड़ दी। इतना कहकर अंदर चली गई ।रमीला दरवाजे पर पड़ी रही। शाम को हीराराम आया तो कमलो ने रोना शुरू कर दिया। देख तेरी लुगाई कैसे ढोंग विद्या रच कर सापन की तरह पड़ी है। कितना नुकसान कर दिया। बड़ी मुश्किल से मेले से मटके लेकर आई थी। हमने भी नौ, नौ महीने बच्चे अपनी कोख में पाले हैं। घर से लेकर बाहर का सारा काम भी संभाला। पर ऐसे ढोंग तो हमने न रचे।
(बेचारी रमीला को चक्कर तो आने ही थे। ऐसे नाजुक समय पर भी कमलो दूध, घी पर ताला लगाकर चाबी अपने ब्लाउज में रख लेती। उसे कई बार तो सूखी रोटियां भी नसीब ना होती।)
मां की बातें सुन हीरालाल ने पड़ी रमीला को कस कर दो लात मारी।वह दर्द से कराह उठी ।और उसके मुंह से चीख निकल पड़ी। उसकी आंखों के आगे बिजली कौंध गई। वह बेसुध होते हुए भी थोड़ा होश में आई। और लड़खड़ाते पैरों और कांपते हाथों से उठकर भीतर आंगन में आ गई। वह बेइंतहा असीम दर्द से कराह रही थी। तड़प रही थी। पर उसे किसी ने उजक कर न देखा। पूरी रात भर आंगन में तिलमिलाती रही। आखिर सुबह नूरी ने जन्म ले लिया।
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रमीला नूरी के फैसले को लेकर सोच रही थी। शायद उसने भी पहली बार में ही कुछ ऐसे कदम उठा लिए होते तो शायद उसे इतनी बदतर जिंदगी जीनी न पड़ती।
नूरी के इस फैसले से वह बहुत डरी हुई भी थी। नूरी की जिंदगी में आने वाला तूफान उसकी आंखों क
े सामने आ रहा था।लेकिन दूसरी तरफ वह नूरी को इस नर्क में जाने भी नहीं देना चाहती थी।
शाम तक नूरी के ससुराल छोड़ने की बात पूरे गांव में सुनामी की तरह घर घर पहुंच गई ।
गांव की दो चार औरतों ने नूरी को समझाया लेकिन नूरी नहीं मानी।
वह अडी बैठी थी। चाहे जो हो जाए वह अब नहीं जाएगी।
ताई ने कहा :_ऐसा मत कर नूरी वापस अपने ससुराल चली जा। ब्याह के बाद लड़की ससुराल की चौखट पर ही शोभा देवे है।
नूरी नहीं मानी पर अपने बापू के आग्रह और दुनियादारी की हजारों बातें सोच, सुन ससुराल जाने के लिए राजी हो गई।
नूरी के मां बाप नूरी को ससुराल छोड़ने गए।
लेकिन नूरी की सास पल्लू फटकार कर बोली :_"समधन यहां क्यों आई हो ,इसको लेकर ? हमारे घर को ऐसी बहू की जरूरत नहीं है। हम इज्जत दार लोग हैं।"
रमीला बोली:_"समधन जी दामाद ने भी तो सही न करो। बताओ पहली रात को ऐसे अपनी पत्नी को कौन मारता है?"
निहाल की मां तमक कर बोली :_"ऐसा है समधन मर्द का पूरा हक होता है, औरत के ऊपर। का तुम्हारे ऊपर हाथ ना उठाया हीराराम समधी ने, या निहाल के बापू ने मुझ पर।
हम तो अपने घर और कसम को छोड़कर न भागे थे।"
"समधन तुम सही कह रही हो ।पर ये आज कल के नए नोले बच्चे है ।अब का करें। र मीला ने कहा।"
"अब का करें। ले जाओ अपनी छोरी कुं वापस निहाल की मां ने फटाक से कहा।"
निहाल उस दिन घर पर होता तो शायद सब कुछ अंधेरी रात के बाद नए सवेरे की तरह ठीक हो जाता । निहाल को अपनी गलती का अहसास था। उसने कई बार अपनी मां को बताया। और नूरी को खुद जाकर घर लाने की बात कही। लेकिन उसकी मां का कहना था। उसने हमारी घर की इज्जत मिट्टी में मिला दी है । वह अब इस घर में नहीं आएगी और वह उसके सामने दूसरी शादी का प्रस्ताव रखती है।
निहाल मां की बात नहीं मानता है। और नूरी के गांव आकर नूरी के घर के सामने रह रही उसकी बुआ जिसने इस रिश्ते को करवाया था , उसके घर में रहने लगता है।
निहाल नूरी से माफी मांगना चाहता था।उससे अपने प्यार का इजहार करना चाहता था।
निहाल के रहने की बात नूरी को उसकी मां रमीला बता देती है।
नूरी जंहा जाती निहाल हर जगह उसका पीछा करता। एक दिन नूरी अपनी छत पर कपड़े सुखा रही थी और निहाल अपनी छत पर पतंग उड़ा रहा था । उसने अपनी पतंग जान पूछकर नूरी के पास गिरा दी। लेकिन नूरी ने निहाल की पतंग को एक नजर नहीं देखा और नीचे आ गई। निहाल और नूरी का यह सिलसिला रोज चलता। निहाल ऐसे ही अपनी पतंग नूरी के पास गिरता और नूरी उसकी तरफ देखे बिना ही नीचे आ जाती ।महीना बीत गया। अचानक दो दिन से निहाल पतंग उड़ाने नहीं आया। लेकिन नूरी रोज कपड़े सुखाने आती। दो दिन से निहाल के न दिखने पर वह घंटों छत पर खड़ी रहती। तीसरे दिन भी नूरी निहाल का इंतजार कर रही थी । कि निहाल आ गया। निहाल को देखकर नूरी का दिल जोर जोर से धड़कने लगा,उसके चेहरे पर एक खुशी फैल गई। और वह निहाल को देखकर चुपचाप नीचे आ गई। नूरी निहाल को दिल के एक कोने में चाहती थी। लेकिन उसका मन निहाल के प्रति कठोर हो रहा था।
निहाल जब अपनी पतंग उड़ाता। उसकी पतंग की छाया हवा के रुख के चलते कभी कभी नूरी के आंगन में पड़ती थी। नूरी उस पतंग की छाया को पकड़ने के लिए आंगन में इधर उधर भागती, अपने हाथों की नर्म उंगलियों से उस छाया को छूने की कोशिश करती। नूरी निहाल को एक प्रेमी के रूप में चाहने लगी थी।
एक दिन नूरी मंदिर जा रही थी। निहाल उसके पास आया और बोला :_"नूरी मुझे माफ़ कर दो मुझसे गलती हो गई।"
नूरी ने थोड़ा गुस्सा जताते हुए कहा:_" निहाल मेरा रास्ता छोड़ो। कोई देख लेगा।"
निहाल:_"देखे तो देख ले कोई ,तुम मेरी बीवी हो।"
नूरी :_"निहाल मुझे जाने दो।"
निहाल :_"नूरी मेरे साथ चलो, अपने घर ,मां को में समझा लूंगा ।"
नूरी की आंखों में आंसू आ गए और वह वहां से चली गई। निहाल की आंखें भी नम हो जाती हैं और वह नूरी को आवाज लगाता है।
नूरी.........नूरी.........नूरी.......।
नूरी को मंदिर से लौटते वक्त कुछ लड़के छेड़ते हैं। उनमें से एक लड़का कहता है:_"सुना है इसका आदमी शादी की पहली रात को कुछ कर नहीं पाया। इसलिए ये उसे उसी रात छोड़कर भाग आई।"
और फिर नूरी की ठोड़ी पकड़ता:_ "जानेमन मुझे एक मौका दे, मैं तुझे निराश नहीं करूंगा। "इतने में वहां निहाल आ जाता है। और नूरी से कहता है:_ "नूरी तुम जाओ यहां से । और नूरी वहां से आ जाती है।
अगले दिन नूरी छत पर निहाल का इंतजार कर रही थी।उसकी मां वहां आ जाती है। नूरी मां को देखकर इधर उधर टहलने लग गई।
रमीला ने नूरी से कहा:_"निहाल का इंतज़ार कर रही है।"
नूरी थोड़ी झेंप कर बोली :_ "नहीं तो मां"
रमीला:_"तो घंटों से छत पर खड़ी होकर उधर का देख रही हो ? मां हूं में तेरी ,सब समझती हूं।
बेटा मैं मानती हूं निहाल से गलती हुई है।पर वो तुझसे बहुत प्यार करता है। यहां वो तुझे अपने साथ लेने आया है।
और जो तू यहां खड़े होकर उसका इंतजार कर रही है वह नहीं आएगा। कल किसी लड़की को कुछ मवालियों से बचाने के चक्कर में उसको बहुत चोटें आई हैं। वो अस्पताल में है।
ये सुन नूरी के दिल को धक्का लगता है। और मन ही मन सोचती है वो तो मैं थी। नूरी मां से बिना कुछ बोले भागकर नीचे आ जाती है। और
शाम को नूरी सबसे छिपकर निहाल को देखने के लिए हॉस्पिटल पहुंच जाती है। निहाल को देखने के बाद जब वह वापस आती है, तो उसके सामने उसकी मां आकर खड़ी हो जाती है और नूरी से कहती है :_" नूरी जब तू निहाल से इतनो प्रेम करती है, तो उसके साथ क्यों नहीं जाती?
नूरी नजरें झुका कर बोली:_"मैं उससे कोई प्यार नहीं करती ।"
रमीला जब तू उससे प्यार ही नहीं करती तो उसे देखने हॉस्पिटल क्यों गई थी?"
नूरी चुपचाप वहां से चली गई। और रमीला उसकी तरफ देखती रही।
नूरी बहुत ज्यादा गुमसुम रहने लगी । न खाती, न पीती ,न हंसती।ये देख उसकी मां बहुत दुखी होती।
एक दिन रमीला ने कहा :_"नूरी कल करवा चौथ का व्रत है।और तुम्हारा पहला व्रत है ,निहाल की लम्बी उम्र के लिए रख लेना।"
दूसरे दिन रमीला रोते, घबराते नूरी के पास आई नूरी.......नूरी.........नूरी.......।
बिटिया निहाल को बाजार में किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी। और वो मर गयो।
यह सुन नूरी के हृदय पर गाज गिर गई और उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। और वह नगें पांव दौड़कर हॉस्पिटल आती है। और निहाल के ढके शव को देख, चीख कर रोती है और कहती है:_निहाल तुम मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ । मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। मैनें तुम्हारे लिए व्रत भी रखा है। निहाल...................... निहाल..................... मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं।"
नूरी के कानों में अचानक आवाज आती है:_"तो चलो। मैं तो कब से कह रहा हूं।"
क्यूं मां उसने नूरी की मां से कहा
नूरी निहाल को जिंदा देख बिना कुछ सोचे समझे रोते हुए उसके सीने से लिपट गई। थोड़ी देर बाद उस ढके शव की तरफ देखकर नूरी कहती है:_"इसमें कौन है?
उसमे से निहाल के बुआ का लड़का मुंह पर ढके कपड़े को हटाकर कहता है।इसमें मैं हूं।
नूरी ने आश्चर्यचकित होकर कहा:_" ये सब क्या है निहाल?"
निहाल ने कहा:_"तुम्हारी मां ने बताया नूरी तुमसे बहुत प्रेम करती है। पर पतो नहीं क्यों कठोर हुई बैठी है। कछु तो करनो पड़ेगो।
तो हमने यह सब कुछ कर दिया।
निहाल अपने साथ लाया लाल रंग की साड़ी नूरी के सिर पर उढाकर कहता है:_ चले अब अपने घर।