नशा
नशा
"नशा" बहुत प्रकार का होता है जैसे शराब, जुआ, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा आदि। लेकिन बदलते समय के साथ नशों ने अपने रूप बदले हैं। जिनमें मोबाइल का नशा आज सिर चढ़ कर बोल रहा है। जैसा कि नीता के साथ हुआ, आइए जानते हैं उसकी कहानी ।
नीता तुमने अभी तक दूध नहीं पिया? कब से लाकर रखा है। दिन भर बस इस फोन में लगी रहती हो। इसके चक्कर में तुम्हें अपने खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रहता। पता नहीं क्या करती रहती हो इसमें?
" मां, अभी पी लूंगी, इतना मत उखड़ो। बस थोड़ी देर और रुक जाओ। " नीता ने फोन में अपनी आँखें गड़ाए हुए कहा।
"अभी पी लेना। बाद में ठंडा हो जाएगा तो फिर तुम्हें खुद ही रसोई में जाकर गर्म करना पड़ेगा।" उसकी मां ने कहा।
नीता फोन में इतनी व्यस्त थी जैसे उसकी मां ने कुछ कहा ही ना हो। आखिर नीता की मां उसे फोन में लगी हुई एक नजर देख दुःखी होकर कमरे से बाहर चली गई।
नीता की मां जब सुबह उसके कमरे में आई तो नीता फोन में ही लगी हुई थी। मां ने झुंझलाकर कहा -"अभी तक तुम इस फोन में ही लगी हुई हो ? सोई नहीं रात भर ?"
नीता ने फोन में ही आँखें गड़ाए हुए कहा-" नहीं मां बस अभी पांच मिनट पहले ही जगी हूं।"
"और उठते ही फोन में लग गई ? फोन न हुआ जैसे कोई आफ़त हो गई है। " टेबल से गिलास उठा कर बाहर निकलते हुए मां ने कहा।
नीता दिन रात फोन में लगी रहती कभी गेम खेलती, कभी टिक टॉक पर वीडियो बनाती, कभी फेसबुक, कभी व्हाट्सएप कभी, अपने कुत्ते, बिल्लियों के साथ फोटो खींचकर शेयर करती। सोशियल मीडिया पर उसने अपने जितने दोस्त बना रखे थे वो उनसे हर चीज शेयर करती। उनसे दिन भर बातें करती और उनकी शेयर की हुई फोटोज को लाइक्स ये सोच कर करती की जब वो फोटो या वीडियो डालेगी तो उसके ये दोस्त भी उसके लिए लाइक्स का बटन दबाएंगे।
नीता फोन पर बने दोस्तों के चक्कर में अपनी मां से चौबीस घंटों में एक बार भी सीधे मुंह बात तक नहीं करती और फोन में बने जाने अनजाने दोस्तों से दिन रातें बातें करती। कभी-कभी तो फेसबुक या व्हाट्सएप पर बनी सहेलियों के जैसे कपड़े खरीदने की ज़िद पर अड़ जाती।
फोन के तमाम एप एक जादू की पिटारी थे। जिनकी जादुई दुनिया से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
नीता के कब दो से चार घंटे बीत जाते, उसे पता भी ना चलता ।
कभी इस कोने में, तो कभी उस कोने में खींचें फोटोज ,विडियोज फोन के दोस्तों को भेजती। और उनपर कितने लाइक्स आए या किसने कितने लाइक्स भेजे उनको देखने के लिए रात में कई कई बार जगती। और जब सुबह जगती तो फोन पर टूट पड़ती।
धीरे धीरे उसे फोन में वीडियो ,फोटो शेयर करने की इतनी आदत पड़ गई ,वह हर छोटी छोटी चीजों की वीडियो ,फोटो दोस्तों को डाल देती और इससे ज्यादा उसे किस पर कितने लाइक्स मिले इसके देखने की चिंता होती। उसका फोन दिन भर उसके हाथ में होता और रात को उसके सिर के पास। उसके लिए एक मुट्ठी में आने वाला फोन ही सब कुछ हो गया।
वक्त के साथ बढ़ती इस आदत ने कब एक नशे
का रूप ले लिया था, नीता समझ ही नहीं पाई । उसकी मां उससे एक बात कहती और वह मां को सौ उल्टी पुल्टी बातें सुनाती।
और जब किसी फोटो पर लाइक्स न मिलते या उम्मीद से कम लाइक्स मिलते तो वह बहुत अधिक झुंझला जाती और खुद पर नियंत्रण खो देती।
चूंकि हर चीज का एक मापदंड होता है और हम उसकी सीमा से बाहर जाकर उसका प्रयोग करते है,तो वह नुकसान ही करता है। यह हम सबके जीवन पर लागू होता है।
सब्जी में मिर्च मसाले का प्रयोग मात्रा के अनुसार ही किया जाता है। सब्जी में पड़े किसी भी मसाले का अधिक प्रयोग सब्जी के स्वाद को बिगाड़ देता है।
ऐसा ही कुछ नीता के साथ हो रहा था। नीता फोन और उसमे बने दोस्तों के चक्कर में उसकी असली शुभ चिंतक अपनी मां के महत्व को समझ नहीं पा रही थी। वह उन इमोजी की दुनिया के अहसास में जी रही थी जिनके पास अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए शब्द भी नहीं थे। वह दिनों दिन अपने असली जीवन से दूर जा रही थी ।
नीता फोन की दुनिया में रहते रहते असली दुनिया से कट गई थी। उसे घर ,बाहर ,सामाजिक जीवन से कोई मतलब ही नहीं रहा। उसका परिणाम हुआ वह चिड़चिडी होने के साथ उसकी याददाश्त कमजोर होने लगी। वह अपना कोई भी जरूरी काम भूल जाती या फिर कोई जरूरी सामान किसी जगह रखकर भूल जाती और घंटों उसे किसी और दूसरी ही जगह पर खोजती रहती।
उसका दिमाग हर समय छोटी छोटी बात पर वीडियो बनाने लगता या फोटो खींचने लगता। और धीरे धीरे उसके होंठ दो ही शब्द बड़बड़ाते लाइक्स और शेयर। उसके दिमाग का संतुलन बिगड़ने लगा। वह अपने जीवन, अपनी प्रतिभा को मिले लाइक्स से तौलने लगी। वह यह भूल गई उसकी असली प्रतिभा के सामने ये लाइक्स शून्य है। उसको किसी भी वीडियो या फोटो पर लाइक्स न मिलते तो अपने बाल नोचने लगती। चीजें फेंकती बुरी तरीके से झल्लाती गुस्सा करती। नीता की मां को कुछ समझ नहीं आ रहा था। नीता का जीवन एक अजीबो गरीब स्थिति में चला गया।
नीता के इस प्रकार के व्यवहार को देखकर नीता की मां उसे डॉक्टर के पास लेकर गई और नीता के बारे में सब बताया। नीता की सब मेडिकल जांच पड़ताल के बाद डॉक्टर ने उसे मानसिक रोगी बताया क्योंकि उसका दिमाग फोन की दुनिया के लाइक्स कमेंट के चक्कर में इतना चला गया था कि असल जिंदगी में लोग उसे कितना लाइक्स करते है वो भूल चुकी थी। वह फोन के लाइक्स से अपने जीवन को तोल रही थी। जब उसे अपनी वीडियो और फोटो पर लाइक्स न मिलने का डर सताता वह चिल्लाती। फोन को फेंक देती। फोन से डरती ये सोचकर कहीं मुझे लाइक्स नहीं मिले तो....?
वह घबराने लगती और हीन भावना से उसका अंतरमन आहत हो उठता और उसका शरीर कांपने लगता। आखिर डॉक्टर्स की कड़ी निगरानी में उसका इलाज हुआ और करीबन डेढ़ साल तक चले इलाज का नतीजा यह हुआ कि नीता आज पूरी तरह ठीक है और अपनी मां के साथ एक सुखमयी जीवन व्यतीत कर रही है। हालांकि वो मोबाइल का इस्तेमाल करती है लेकिन अपनी जरूरत के हिसाब से। अब वह इस नशे की लत और असल जिंदगी के फर्क और महत्व को समझ गई थी।