कहानी _शक्ति
कहानी _शक्ति


सपने में अपने पति को मौत के मुंह में जाते देख लता हड़बड़ाकर उठ गई और पसीने से तर- बतर होकर रोने लगी। लता की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे।
थोड़ी देर पहले वह सपने में बर्फीली वादियों की ठंडी हवाओं में अपने पति के साथ हाथों में हाथ डाले घूम रही थी। मानो एक हंस का जोड़ा बर्फीली वादियों में अपने अमर प्रेम की कहानी लिख रहा हो।।दोनों एक दूसरे में खोए थे। चारों तरफ चीड़ के पेड़ों पर चढ़ी बर्फ की चादर उनके प्रेम की गवाही दे रही थी। और लता रोजा फिल्म का एक गाना गुनगुना रही थी।
" ये हंसी वादियां ये खुला आंसमा ,आ गए हम कहां ए मेरे जाने जां"
चमकीले बर्फीले पहाड़ों पर दोनों प्रेम रूपी सागर में डूबे हुए आगे बढ़ रहे थे । कि अचानक लता के पति का पैर फिसला गया। लता ने अपने पति को फिसलता देख उसका हाथ पकड़ लिया और दोनों फिसलते हुए खाई में गिरने लगे। तभी लता ने एक पेड़ को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने पति का हाथ भी पकड़े रखा।
लता अपने पति को नीचे खाई में लटकता देख जोर -जोर से बचाओ!!! बचाओ !!! कहकर रोने और चिल्लाने लगी। अपने पति को ऊपर खींचने और बचाने का पूरा प्रयास करने लगी। इतनी ठंडी जगह पर भी उसके पसीने आ रहे थे।वह अपने पति से बार बार कह रही थी।आप मेरा हाथ मत छोड़ना।
जो बर्फ के पहाड़ थोड़ी देर पहले इनके प्रेम की अमर गाथा लिख रहे थे। वह अब उनकी मृत्यु के भी साक्षी बनने वाले थे।
आखिर लता की अपने पति को ऊपर खींचने की तमाम कोशिशों और मशक्कतों के बाद भी वह नाकामयाब रही और उसके पति का हाथ उसके हाथ से छूट गया और उसके देखते देखते उसका पति उस गहरी खाई में गिर गया।
जैसे समय की गहरी खाई में गिरता चला जाता है। हमारा बचपन ,जवानी,कुछ किस्से, कहानी, पुरानी यादें ,बातें वो आंगन , वो रास्ते, वो खेल, वो दोस्त सब।समय की खाई इन पहाड़ों के बीच की खाई से कहीं गुना अधिक बड़ी होती है। जिसमें जीवन का हर पल, हर क्षण समाता चला जाता है। और न जाने कब जन्म से लेकर मृत्यु तक के जीवन सफर की ये लंबी यात्रा करके आ जाते हैं। हमें महसूस भी नहीं होता। बस हम चलते चले जाते हैं,इस समय की गहरी खाई में। जैसे लता का पति समा गया था। उस गहरी बर्फीली खाई में; वैसे ही हम सबको समाना होता है।फिर से आने के लिए। समय की इस गहरी खाई में मृत्यु के रूप में।
इस भयावह सपने को देख लता का मन घबराने लगा। विधुत्व का डर उसके ऊपर हावी होने लगा। लगा जैसे उसका सब कुछ उस गहरी खाई ने लील लिया हो ।लता अपने सपनों के बारे में जानती थी। उसके बुरे सपने अक्सर सच हो जाते थे। उसके पिता की मृत्यु से कुछ दिन पहले ऐसे ही उसने सपने में अपने पिता की मृत्यु होते देखा था।
पिता की मृत्यु के बाद उसके और उसकी मां के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लता और उसकी मां का सम्पूर्ण जीवन चरमरा गया। पिता के जाते ही समय का पहिया ऐसा घूमा की उनके एक वक्त का खाना खाने के लाले पड़ गए। उसकी मां दूसरों के यहां मजदूरी करने लगी।कई रात वो भूखी भी सोई।
विधवा होने के कारण समाज के लोगो ने लता की मां को अपने शुभ कार्यों में निमंत्रण देना तक बंद कर दिया । और
लता की ताई ने उसकी मां को अपशगुनी रांड कहकर घर से बाहर निकाल दिया। जिसके बाद वो एक टूटे_ फूटे कमरे में जाकर रहने लगीं। लता और उसकी मां का जीवन अब दुखों और समस्याओं की रेखाओं में उलझकर रह गया।लता के ऊपर बरगद समान पिता के प्रेम की ठंडी शीतल छाया न होने से उसकी जिंदगी अब रेगिस्तान में चिलचिलाती तेज धूप के समान दुखों में बदल गई ।उसके पिता की जीवन यात्रा समय की गहरी खाई में कहीं विलीन हो गई थी ।
लेकिन इस जीवन की यात्रा को अधूरी छोड़कर जाना भी तो सही नहीं था। इस यात्रा में भी तो उनके अपने ही थे। जो उनके लिए यूं ही रोते रह गए।
लता की मां ने हजारों दुखों की आंच को अपने सिर माथे से लगाकर लता को वो हर खुशी दी जो उसके वश में थी। उसे मेहनत, मजदूरी कर पढ़ाया- लिखाया और एक अच्छे पढ़े लिखे नौकरी वाले लड़के से शादी की। शादी के बाद लता ने अपनी मां को अपने साथ ही रहने के लिए बुला लिया था।
लता ने इस भयानक बुरे सपने को तुरंत अपनी मां को जाकर बताया। लता का सपना सुन, लता की मां उसके जीवन में आने वाले दुखों के बारे में सोचकर चिंता की लपटों से घिर गई।
एक विधवा का जीवन कैसा होता है। ये बात उससे बेहतर कौन जान सकता था। एक विधवा औरत किन कठिनाइयों से जीवन काटती है। यह वह जानती थी। और वो ये कतई नहीं चाहती थी। जिन दुखों कि तपती आग से उसका जीवन झुलसा है। उसकी बेटी का भी झुलसे ।दूसरी तरफ लता अपने पति की मृत्यु के बारे में सोच सोचकर बहुत दुखी थी। जैसे गेहूं में लगा घुन धीरे धीरे उसे खत्म कर देता है। वैसे ही ये सपना लता को धीरे धीरे भीतर ही भीतर खत्म करने लगा। उसने खाना पीना छोड़ दिया।वह बहुत कृशिकाय हो गई।उसकी ऐसी हालत देख उसके पति ने उससे कई बार पूछा और डॉक्टर के पास चलने को कहा।लेकिन लता सिर का छोटा -मोटा दर्द बताकर बात को टाल देती।
लता अपने जीवन में छाने वाले विधवा के रंगहीन संसार को देख रही थी। वह अकेले में रात -दिन रोती और बार -बार मां से कहती,:_"मां मैं उनकी जान कैसे बचाऊं ? "वह किसी भी कीमत पर अपने पति को बचाना चाहती थी। पर कैसे ? ये सोच -सोचकर वो टूटने लगी।
लता ही नहीं कोई भी इंसान अपने प्रिय को खोने के गम से टूट जाता है। और जिसको अपने किसी प्रिय की मृत्यु के बारे में पहले ही पता लग जाए, तो वह गहरी चिंता में लिपट मरणासन्न अवस्था में आ जाएगा।लता ही नहीं हम में से कोई भी अपने प्रिय को खोना नहीं चाहता। चाहे वो उम्र के किसी भी मोड़ पर खड़ा हो। सब जानते हुए भी ।जो फूल इस संसार रूपी बगियां में खिला है। वह एक दिन मुरझाकर टूटना ही है ।
जो भी आया है ,वो जाएगा और जैसा आया था, वैसे ही जाएगा।
एक मंच पर एक व्यक्ति कितने समय तक अपना एक ही किरदार निभाएगा। पेड़ में नए पत्ते आने के लिए पुराने पत्तों का झड़ना आवश्यक है। वैसे ही मनुष्य का संसार में आना जाना लगा ही रहता है। और गीता में कहा भी गया है:_ "परिवर्तन ही संसार का नियम है"।
लता को भी इन बातों का ज्ञान था। लेकिन उसके पति का दुनियां के इस मंच को छोड़ने का अभी कोई वक्त नहीं हुआ था। उसके पिता की तरह। अभी तो वो दोनों एक दूसरे को सही ढंग से समझ भी नहीं पाए थे। और लता ने अपने पति का इस दुनियां के रंगमंच से जाने का सपना भी देख लिया ।
मनुष्य जाति का लालच तो असीम है।वह तो चिता पर लेटे अपने प्रिय को जिंदा करने की कोशिश करता है। लता भी चिता की अग्नि में समाते अपने पति को किसी भी सूरत में जीवित रखना चाहती थी।
वक्त बीत रहा था और लता की चिंता लगातार उसके हृदय में गहरा गड्ढा खोद रही थी। एक दिन लता को रोता देख उसकी मां ने उसे सीने से लगा लिया और खुद भी रोते हुए बोली :_"बेटी, चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा। भगवान पर भरोसा रख ।
लता मां के कलेजे से लिपटे रोते हुए बोली:_"मां तुमने बिना पापा के ये जीवन कैसे निकला था? मैं तो इस जीवन की कल्पना से ही सहम जाती हूं। मेरी आंखों में अंधेरा कौंध जाता है। मैं पल-पल, तिल- तिल मरने लगी हूं।
लता की मां ने कहा :_"बेटी, उम्मीद रख, सब ठीक हो जाएगा"।
लता ने अपने पति कि लंबी उमर के लिए व्रत किए। अपने पति को बचाने के लिए हर मंदिर में माथा टेकने गई। वहां उसे एक महात्मा मिले और उनको लता ने अपनी पूरी बात बताई। और कहा :_महात्मन! कोई रास्ता निकालो । मेरे पति को बचाओ।मुझे विधवा की सफेद छाप से बचाओ। आपको तो पता है महात्मन!! एक स्त्री के जीवन में रंगों का कितना महत्व होता है ? वह इन्हीं के सहारे जिंदगी के अलग अलग रंगों में रंगकर अपना जीवन बिताना चाहती है।
महात्मा ने लता की बातें सुन उससे कहा _"चिंता मत करो बेटी सब ठीक हो जाएगा। "
तुम मुझे एक बात बताओ। क्या तुम्हें कभी ऐसा सपना आया था? जिसमें कोई अनहोनी तो हुई हो, लेकिन तुमने उसे सपने में ही रोक लिया हो। और बाद में वो ही सपना जब हकीकत में हुआ तो हो, लेकिन उस व्यक्ति को उतनी क्षति न पहुंची हो।
लता ने कहा:_"हां महात्मा जी, ऐसा कई बार हुआ है।"
"तो तुम भी ऐसा कर सकती हो _महात्मा ने कहा।"
लता बोली_"महात्मन, मैं कुछ समझी नहीं ,वो सपना तो मुझे आ चुका है। और मैं उस सपने में मेरे पति को बचा नहीं पाई थी।अब ये कैसे सम्भव होगा?
महात्मा ने कहा:_"सब कुछ सम्भव है बेटा। अगर इंसान में इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास है तो, उसके लिए हर असम्भव सम्भव हो जाता है। वह अपने जीवन में आने वाले किसी भी तूफान से लड़ सकता है। जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों को पार कर सकता है। यहां तक कि वह आने वाली मृत्यु को भी हरा सकता है। बेटा कहीं जाने की जरूरत नहीं है ।सब अपने अंदर ही समाहित है । अपने ह्रदय में इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास रखो।सब कुछ संभव है।" महात्मा कहकर वहां से चले जाते हैैं ।
लता घर लौटने पर पूरी बात अपनी मां को बताती है।और मन ही मन ठान लेती है। चाहे जो हो जाए वह अपने पति को बचाकर ही रहेगी। इस दृढ़ निश्चय और इच्छाशक्ति , आत्मविश्वास के साथ रात में वह सोती है। और वह उसी सपने में वापस जाती है। और होता भी ऐसा ही है।वह अपने दृढ़ निश्चय से सपने में वापस उसी जगह पहुंच जाती है । और अपने पति को इधर उधर, खाई के आसपास ढूंढती है। और अपनी इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पर अडिग रहती है। कि उसका पति इस खाई में गिरा जरूर है, लेकिन वह जिंदा है।
दरअसल हम अपने जीवन में यही तो गलती करते हैं । हमारे जीवन की कोई भी समस्या उतनी बड़ी या मुश्किल नहीं होती जितना हम उसे मान कर, उससे हार मान लेते हैं। हार और जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हार के बाद दोबारा जीतने की आशा ही उम्मीद का दूसरा पहलू है। इसलिए जीवन में आशावान होना बहुत जरूरी है। यही आशा,उम्मीद, इच्छाशक्ति ,आत्मविश्वास की शक्ति को लता ने अपने भीतर जगाए रखा। आखिर अथाह प्रयासों के बाद उसे अपना पति एक पेड़ की डाल पर लटका दिखा। और अंत में अपनी तमाम कोशिशों के बाद लता अपने पति को बचा कर ले आती है।
सुबह होते ही उसकी नींद खुलती है। तो उसे पता चलता है।बीस दिन के बाद दिल्ली से घर वापिस लौटते वक्त उसके पति की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है। ज्यादा चोट नहीं आई । समझो बच ही गया। अगर ट्रक वाले से जल्दी से ब्रेक ना लगता तो उसकी गाड़ी कुचल जाती। लता ने अपने सपने को लगभग सुबह चार बजे देखा था। और उसके पति का एक्सीडेंट लगभग पांच बजे हुआ। आखिर लता ने अपने आत्मविश्वास की शक्ति के बल पर अपने पति को बचा ही लिया।
इंसान के भीतर अगर इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास की शक्ति है तो उस व्यक्ति के लिए जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं है ।