विकल्प
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ट्रिंग.....ट्रिंग....ट्रिंग......ट्रिंग..........
आरोही के फ़ोन की आवाज़ पूरे घर में गूँज उठी थी। मोबाइल फ़ोन ने जहाँ आपसी संवाद को सहज और सरल बना दिया है ;वहाँ गाहे -बेगाहे बज जाने वाला फ़ोन कभी -कभी परेशानी का सबब भी बन जाता है। आरोही का फ़ोन तो सुबह -सुबह बज उठा था ;जबकि उसे मरने की भी फुर्सत नहीं होती। पति का ऑफिस, बच्चों का स्कूल और घरेलू सहायिका का आगमन ;इनमें से किसी को भी टालना संभव नहीं है।
लेकिन फ़ोन उठाना भी जरूरी था। उसने फ़ोन उठाया। दूसरी तरफ उसकी सहेली विशाखा थी। आरोही और विशाखा कॉलेज के समय के दोस्त हैं और अब एक ही शहर में शादी होने से, उनकी दोस्ती और मजबूत हो गयी थी या फिर यह कहना सही होगा कि नौकरीपेशा विशाखा के लिए होममेकर दोस्त आरोही, डूबते को तिनके का सहारा थी।
"आरोही,मेरी डोमेस्टिक हेल्प ने छुट्टी ले ली है। मेरा और सत्यम का ऑफिस है तो, मैं श्रेया और रिंकू को तेरे पास छोड़ने आ रही हूँ। वहीँ से ऑफिस निकल जाऊँगी। ",आरोही के कुछ कहने से पहले ही विशाखा ने फ़ोन काट दिया था।
"विशाखा, आज फिर तुम आरोही को परेशान कर रही हो।दोस्ती की भी एक मर्यादा होती है।वह बेचारी शर्माशर्मी में कुछ कह भी नहीं पाती ;लेकिन तुम्हें तो समझना चाहिए। किसी की अच्छाई का इतना फायदा उठाना भी सही नहीं। "
"सत्यम, आरोही को अच्छे से जानती हूँ मैं।उसे कोई परेशानी होती तो मुझे कह ही देती।श्रेया और रिंकू उसके पास अच्छे से रहते हैं। ",विशाखा ने पति सत्यम की बात को सुना-अनसुना कर दिया। वैसे भी हम इंसान सभी घटनाओं, बातों, उसूलों आदि की व्याख्या अपनी सहूलियत और लाभ के अनुसार करने के आदी हैं। अभी सत्यम की कही सही और उचित बात को टाल देना विशाखा के हित में था।
"आज फिर तुम्हारी दोस्त विशाखा अपने बच्चों को छोड़ने आ रही है। ",राजीव ने आरोही के चेहरे पर खिंची चिंता की लकीरें देखकर पूछा।
"हाँ।",अनमनी सी आरोही ने कहा।आरोही वैसे ही आजकल घर के खर्चों को लेकर थोड़ा परेशां थी। उसके स्वयं के बच्चे बड़े हो रहे थे ;उनके खर्चे बढ़ रहे थे। सास -ससुर की भी उम्र हो चली थी ;उनकी हारी =बीमारी चलती रहती थी। राजीव को उनकी भी आर्थिक मदद करनी पड़ती थी। विशाखा अपने बच्चों को ही छोड़कर जाती थी। आरोही को उनके खाने -पीने क सब व्यवस्था देखनी पड़ती थी। वैसे भी बच्चे खाते कम हैं और बर्बाद ज्यादा करते हैं। उनके लिए उसे दूध -फल आदि सब खरीदने पड़ते थे। कोरोना के बाद राजीव के रेगुला इन्क्रीमेंट भी नहीं लग रहे थे।
"तुम उसे अपनी स्थिति बता क्यों नहीं देती?"
"क्या बता दूँ?अपनी समस्या को खुद ही सुलझाना होता है।",आरोही ने झल्लाते हुए कहा।
"तो सुलझाओ अपनी समस्या।",बजती हुई डोरबैल की तरफ इशारा करते हुए राजीव ने कहा।
"अरे विशाखा, मैं तुझे अभी कॉल करने ही वाली थी।"
"क्यों?"
"तू फ़ोन पर मुझे बोलने का मौका कहाँ देती है?"
"तो आरोही, अब बता दे।",विशाखा ने लापरवाही से कहा।
"आज मुझे कहीं बाहर जाना था। "
"तेरे बच्चे तो साथ जाएँगे ही ;श्रेया और रिंकू को भी ले जाना। "
"ऋतु, बच्चे और राजीव घर पर ही रहेंगे।श्रेया और रिंकू को अकेले राजीव सम्हाल नहीं पाएँगे। फिर श्रेया और विशु की फरमाइशें, मैं ही पूरी कर सकती हूँ। ",आरोही ने कहा ।
"आरोही, आज-आज कैसे भी रख ले, आगे से तुझे परेशान नहीं करूँगी । ",विशाखा ने चिरौरी करते हुए कहा।
"आज के बाद तू क्या करेगी ?बच्चों को कहाँ छोड़ेगी ?",आरोही, विशाखा का विकल्प जानने को बड़ी ही उत्सुक थी।
"मेरे घर के पास एक डे केयर है,बच्चों को वहाँ डाल दूँगी। थोड़े ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे।",विशाखा के मुँह से न चाहते हुए भी निकल ही गया था।
विशाखा की बात से आरोही सकते में आ गयी थी।आरोही के चेहरे को देखकर,विशाखा ने अपनी गलती सुधारते हुए कहा,"मेरा कहने का मतलब है कि डे केयर में घर जैसा प्यार और देखभाल नहीं मिल पाती।"
"अब तुम्हारे पास और कोई विकल्प भी तो नहीं है।आज-आज और बच्चों को मेरे पास छोड़ दो।"आरोही ने बात समाप्त करते हुए कहा। आखिर उसने अपनी समस्या सुलझा ही ली थी।