इतनी सी परवाह
इतनी सी परवाह
दर्द से बेहाल मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैं बार-बार बिस्तर पर करवटें बदल रही थी। मुझे लग रहा था कि ,आज तो मैं इस दर्द से मर ही जाऊँगी । मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई थी और दादी -नानी के बताये पुराने नुस्खों को आजमाने पर विचार करने लगी थी ।मैं अपनी बची -खुची हिम्मत बटोर करके किचेन में घुसी और नल खोलकर भगोनी में पानी भरने लगी ।इस दर्द से बचने का एक यही उपाय नज़र आ रहा था कि गरम पानी का सेक कर लूँ । पानी गरम करने चढ़ाने के साथ ही ,ऊपर अलमारी में रखी बोटल भी उतारनी थी ।
पीरियड्स सही में ,हम कुछ महिलाओं के लिए बहुत ही मुश्किल होते हैं । जिन्हें आवश्यकता हो ,उन महिलाओं को तो पीरियड्स में ऑफिस से छुट्टी मिल ही जानी चाहिए । जब मैं घर में रहते हुए ,इतनी बेहाल हूँ तो उन पर तो क्या ही गुजरती होगी ?
भगोनी गैस पर चढ़ा दी थी और अभी बस छोटी स्टूल पर चढ़कर बोटल उतारने ही वाली थी कि एक आवाज़ कानों से टकराई ।
"अरे -अरे ,क्या कर रही हो ?गिर जाओगी । "
"अरे पीयूष तुम । "
"हाँ मैं ,तुम हटो ,मैं बोटल उतार देता हूँ और तुम जाओ आराम करो । मैं पानी गरम करके लाता हूँ । "
"अरे तुम अभी तक सोये नहीं ??", मैंने धीरे से कहा।
"हमेशा चहकने वाली बीवी की जब आवाज़ भी नहीं निकल रही ,तब यह नामुराद शौहर कैसे सो जाता ?",पीयूष ने मुस्कुराते हुए कहा।
पीयूष की बात सुनकर दर्द में भी मेरे चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी थी। "वो सेक करने वाली बोतल ,उस लास्ट वाली अलमारी में है। ",मैंने इशारा करते हुए बताया और किचेन से बाहर चली आयी।
थोड़ी देर में पीयूष बोतल में पानी डालकर ले आया था। उसने बोतल मुझे पकड़ाते हुए कहा, "कल सुबह तुम तैयार रहना ,हम डॉक्टर को दिखाने चलेंगे। "
"अरे ,यह तो एक सामान्य समस्या है। पीरियड्स में पेट में दर्द होना नार्मल है। इसमें डॉक्टर के पास क्या जाना ?",हर आम महिला की तरह मैं सौम्या भी अपनी शारीरिक तकलीफ सहने का माद्दा दिखाते हुए कह रही थी।
"नहीं सौम्या ,इस बार मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा। तुम्हारे तीन दिन कैसे कटते हैं ?मैं अच्छे से जानता हूँ। हर बार तुम टाल देती हो। तुम्हारे लिए नहीं ,अपने लिए डॉक्टर को दिखाकर ला रहा हूँ ,नहीं तो ऐसे वक़्त में ,तुम्हें पानी गरम करके मुझे ही तो देना पड़ेगा। ",पीयूष ने कहा।
"और मैंने कल ऑफिस में छुट्टी के लिए भी अप्लाई कर दिया है। ",पीयूष ने कहा।
"तो इस बार ज़नाब मानेंगे नहीं। ",मैंने मन ही मन ख़ुश होते हुए कहा।
"नहीं ,बिल्कुल नहीं। ",पीयूष ने कहा।
"चलो ,अब तुम सो जाओ। मुझे काफ़ी आराम है। ",पीयूष द्वारा अपनी परवाह किये जाने से पुलकित होते हुए मैंने कहा।
हम महिलाएं बस इतना सा ही तो चाहती हैं कि हमारे घरवाले हमारी परवाह करें। हम जैसे सभी की छोटी से छोटी बात का ध्यान रखते हैं वैसे ही हमारा भी कोई ध्यान रखें। केवल एक बार हमसे पूछ ले कि तुम ठीक तो हो न। इतना सा पूछना ,इतनी सी परवाह हमें बेपनाह ख़ुशी दे देता है।