रास्ता मिल गया
रास्ता मिल गया
"सोनाली ,पूजा के लिए दो दिन की छुट्टी डाल दी न। "
"नहीं ,विक्रांत ,मैं आपसे उसी बारे में बात करना चाह रही थी। "
"सोनाली मम्मी नाराज़ होंगी। उन्होंने मुझे कहा था कि मैं तुम्हें बता दूँ। "
"विक्रांत ,पूजा वाले दिन की ले रही हूँ न। तैयारी सब कर दूँगी और कुछ रह जाए तो देवी है न। "
"मुझे नहीं पता सोनाली। इस सास -बहू के झंझट से मुझे दूर ही रखो। ",विक्रांत कंधे उचकाते हुए निकल गया था।
"हमेशा की तरह आज भी विक्रांत ने कोई स्टैंड नहीं लिया। आज भी खुद निकल गया। ऐसे तुम सास -बहू का मामला है कहता है ;लेकिन अगर मैं मम्मी जी को कोई सही बात भी बोल दूँ तो जनाब का मुँह फूल जाता है। ",सोनाली सोच में पड़ गयी थी।
सोनाली घर की बड़ी बहू थी। उसकी और विक्रांत की शायद को दो साल हो गए थे। वह घर और ऑफिस दोनों ही पुरजोर तरीके से सम्हाल रही थी। उसके ससुराल वालों ने भी अपनी शर्तों पर उसे नौकरी करने क इज़ाज़त दे रखी थी ;यह अलग बात है कि वह अपना वेतन घर की जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च करती थी।
देवी ,उसकी देवरानी ,को भी घर में आये 6 महीने हो चुके थे ,लेकिन उसकी सास अभी भी सारा काम सोनाली को ही देती थी। अगर सोनाली कभी कहे कि देवी कर लेगी तो मम्मी जी का टका सा जवाब देती कि देवी अभी नयी है ;उसे घर के तौर-तरीकों के बारे में क्या समझ है ?
जैसे सोनाली तो शादी होते ही ,ससुराल के तौर -तरीके सीख गयी थी ;तब ही तो उसकी सासू माँ ने उसे घर में पैर रखने के साथ ही घर की सारी जिम्मेदारी दे दी थी। वह तो कभी नयी थी ही नहीं।
"आज मुझे ही बात करनी पड़ेगी। रोज़-रोज़ छुट्टी नहीं ली जा सकती। ",ऐसा सोचते हुए सोनाली ने अपन कदम सीढ़ियों की तरफ बढ़ा दिए थे।
"अरे सोनाली ,मैं और देवी पूजा के लिए पीले रंग की गोटापत्ती की साड़ी पहनेंगे। तुम भी अपनी साड़ी तैयार करवा लेना
। ",कमरे के दरवाज़े पर सोनाली को देखकर शुभ्रा जी ने कहा ।
"जी ,मम्मी जी।"
"और हाँ ,पूजा के लिए दो दिन की छुट्टी ले लेना । "
"मम्मीजी,आपको वही बताने के लिए आयी थी।मैं केवल एक दिन की छुट्टी ही ले सकती हूँ।पूजा की पूरी तैयारी मैंने पूरी कर दी है।"
"विक्रांत,तुमने सोनाली को बताया नहीं।"
"सोनाली,अभी तो हमारी बात हुई थी।"
"मम्मीजी ,इन्होने मुझे बताया था।मुझे ऑफिस से इतनी छुट्टियाँ नहीं मिल सकती हैं।आप कहेंगी तो मैं भी देवी की तरह घर पर रह सकती हूँ । अपने परिवार और नौकरी में मुझे परिवार ही प्यारा है। मैं यह नौकरी कोई अपनी पहचान या आत्मसम्मान के लिए नहीं कर रही हूँ । लेकिन बार -बार छुट्टियों के लिए अपने बॉस के सामने हाथ फैलाना,गिड़गिड़ाना मेरे आत्मसम्मान की धज्जियाँ उड़ा देता है,मेरे परिवार को कटघरे में खड़ा कर देता है।"
"कहना क्या चाहती हो बहू ?",इस बार नरेंद्रजी ने पूछा।
"पापा जी, मेरे ऑफिस वालों को लगता है कि या तो मेरा परिवार मेरी नौकरी से नाखुश है ,इसलिए मुझे सहयोग नहीं करते हैं। या फिर मैं अपने परिवार का बहाना बनाकर छुट्टी ले लेती हूँ ।"
"सोनाली,एक दिन की अतिरिक्त छुट्टी लेने के लिए क्या कह दिया कि तुम्हारे मन में जो आ रहा है ,बोले जा रही हो।",शुभ्राजी ने कहा ।
"बहू को कहने दो।मैं तो अपनी बहू को सुपरवुमेन समझ रहा था;जो कि घर और ऑफिस अच्छे से सम्हाल रही है।"
"पापा जी,मैं क्या कोई भी महिला सुपरवुमेन नहीं होती।हम सब महिलाओं की एक सीमा होती है,मैं आज अपनी वही सीमा बताने की कोशिश कर रही हूँ। "
"ठीक है बहू।आज के बाद कोई भी तुम्हारे ऑफिस के मामले में किसी प्रकार हस्तक्षेप नहीं करेगा।",नरेंद्रजी ने कहा।