डे केयर
डे केयर
"चीकू -विशु का डे केयर कल ऑफ है । अभी -अभी मैसेज आया है । ",विवेक ने मोबाइल फ़ोन टेबल पर रखते हुए कहा ।
"क्या ? कल फिर ऑफ । ",कॉफ़ी के मग टेबल पर रखते हुए ऋतु ने कहा ।
"हाँ । ऋतु ,तुम कल की छुट्टी ले लो । "
"विवेक ,कल मेरी के इम्पोर्टेन्ट मीटिंग है, मैं छुट्टी नहीं ले सकती । "
"ऋतु ,तुम्हारी दोस्त है न सुरीली, उसको फ़ोन करके पूछ लो । "
"हाँ -हाँ, यह सही रहेगा । "
"सुरीली यार ,कल फिर डे केयर ऑफ है । चीकू -विशु को तेरे यहाँ छोड़ जाऊँगी और शाम को लेने आ जाऊँगी । ",ऋतु ने एक ही साँस में अपनी बात कह दी थी ।
सुरीली के हाँ या न बोलने से पहले ही ऋतु ने यह कहकर फ़ोन रख दिया था कि शायद दरवाज़े पर कोई आ गया है । ऋतु और सुरीली बचपन की सहेलियाँ थीं और शादी भी दोनों की एक ही शहर में हुई थी । ऋतु को सुरीली का हर कदम पर बहुत सहयोग मिला था । सुरीली निःस्वार्थ भाव से ऋतु की मदद करती आ रही थी । लेकिन अब सुरीली के खुद के बच्चे भी बड़े हो रहे थे ,खर्चे भी बढ़ रहे थे और फिर ऋतु के बच्चे बहुत डिमांडिंग थे । उनके खाने -पीने और खेलने के सामान जुटाना ,सुरीली के घेरलू बजट में सेंध लगा देता था । अब तक तो वह जैसे -तैसे मैनेज कर रही थी लेकिन अब उसके पति पलाश की भौंहें भी ऋतु और उसके बच्चों का नाम सुनकर टेढ़ी हो जाती थी ।
पलाश ऐसे अच्छे इंसान थे, लेकिन उनका मानना था कि रिश्ता कोई भी हो, ताली दोनों हाथों से ही बजती है । इस दोस्ती के रिश्ते में सुरीली ही निवेश करती आ रही थी, ऋतु की तरफ से कुछ मदद या सहयोग नहीं था । आज भी , सुरीली चाहकर भी ,कुछ बोल नहीं पायी थी ।
ऋतु ने अपने बच्चों को डे केयर में डाला हुआ था ,कामकाजी महिला के लिए डे केयर किसी संजीवनी से कम नहीं होते हैं। किसी दिन डे केयर की छुट्टी होती,तब उसे सुरीली का सहयोग मिल ही जाता था।
"ऋतु, दोनों बच्चों को यहाँ कोई तकलीफ तो नहीं है?",सुरीली ने ऋतु से बच्चों के बैग लेते हुए कहा।
"नहीं,बिलकुल नहीं।बच्चे तो तेरे घर आने के लिए एकदम तैयार रहते हैं।कई बार तो डे केयर भी नहीं जाना चाहते।"
"चीकू-विशु,आप दोनों के लिए पोहा बनाकर रखा हुआ है,आप दोनों खाओ।",सुरीली ने दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"ऋतु,मैं सोच रही थी कि एक डे केयर शुरू कर दूँ।दो बच्चे तो तेरे हैं ही और कुछ बच्चे तेरी जान-पहचान से मिल ही जायेंगे। ",सुरीली ने अपनी उलझन सुलझाने का रास्ता ढूँढ ही लिया था।
"लेकिन तुझे डे केयर खोलने की क्या जरूरत है?"
"बच्चे बड़े हो रहे हैं,मेरे पास खाली वक़्त भी रहता है और फिर खर्चे भी बढ़ रहे हैं।रितेश की भी मदद हो जायेगी और तेरी भी । "
"मेरी कैसे ?"
"तुझे फिर बच्चों को डे केयर में नहीं छोड़कर आना पड़ेगा। तेरे घर से दूर पड़ता है और वहाँ तो छुट्टी भी हो जाती है।", सुरीली ने अपनी उलझन घुमा-फिराकर ऋतु को बता ही दी थी ।
ऋतु एक समझदार महिला थी। उसे शर्मिंदगी हो रही थी कि आज तक वह अपनी दोस्ती का फायदा उठा रही थी और अपनी दोस्त की आर्थिक समस्या के बारे में सोचा तक नहीं।
"सुरीली,विचार तो अच्छा है।वैसे भी यहाँ आसपास कोई अच्छा डे केयर नहीं है।ये ले चीकू -विशु की आज की फीस।",ऋतु ने कहा ।
"आज तो दोस्ती के नाते बच्चे मेरे पास रहेंगे। अगली बार से फीस दे देना।"
"ठीक है;अब तो जाऊँ । "
"बिल्कुल,चल बाय।",बात करने से हर उलझन सुलझ जाती है,सुरीली मन ही मन सोच रही थी।