दलदल
दलदल
"ऐ! सखि! क्या करती हो?"
"कुछ नहीं, कमर को सहला रही हूं।"
"क्या हुआ तेरी कमर को? पता नहीं तुम कैसी हो, अपना ध्यान बिल्कुल नहीं रखती ?" मोहिनी तवायफ ने सखि कामिनी तवायफ से हँसकर कहा।
"सच्ची! बहुत दर्द हो रहा है।" कामिनी ने आह! भरते हुए कहा।
"मोहिनी ने पूछा," अरे! क्या हुआ? बता तो सही।"
"क्या कहूँ ?जो बड़का- बड़का लोग दर्द नहीं दे सका, सो ई कमर ने दे दिया। "
"तू पहेलियाँ मत बुझा, सच्ची बात बता।" मोहिनी बेहद चिंता भरे लहजे में बोली।
"सुन, किसी से मत कहियो। आज सबेरे मैं अपने पुराने कस्टमर के साथ बाइक पर बैठ कर घूमने गईं थी। उबड़ -खाबड़ रोड थी, सो बाइक से गिर गई। कमर में चोट लग गयी। फ्रैक्चर हुआ या नहीं ,यह जानने के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ा। संयोग से फ्रैक्चर नहीं हुआ था।
"चोट है, दवा खाना पड़ेगा ! " डॉक्टर ने ऐसा कहा। आज बेकार में, बेचारे कस्टमर को मेरे लिए सात सौ रुपये खर्च करने पड़े। डॉक्टर की फीस, दवा का सारा पैसा उसी को लगा।
"अब यह धंधा बंद भी करो।" कस्टमर ने जोर देकर मुझसे कहा।
मैंने हाथ जोड़कर उससे विनती की ," मेरा छोटा बच्चा है, उसको क्या खिलाऊंगी? लालन- पालन कैसे होगा? तब कस्टमर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, " मैं तुम्हें कलकत्ता ले चलूँगा। वहाँ मेरा अपना कपड़े का बहुत बड़ा व्यापार है, उसी में तुम काम करना। सच कहता हूँ, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, तुमसे शादी करके तुम्हें अपने साथ रखूँगा। और तुम्हारा जो बच्चा है, वो हमारा बच्चा कहलाएगा।"
"सच कहती हूँ मोहिनी, आज मुझे वह कस्टमर नहीं बल्कि, देवता -सा लग रहा था।"
"अरे वाह! कमर में चोट लगने से तो तेरे भाग्य ही खुल गये। इस नरकीय जीवन से तुम्हारा अब उद्धार हो जाएगा। इस देह व्यापार से लाख गुना बढ़िया है, कपड़े का व्यापा । जहाँ तुझे दो जून की रोटी और रहने के लिए घर और इज्जत मिलेगी। यहाँ दिन-रात देह धुनो, न कोई मान, न सम्मान! बस सूअर की तरह दलदल में पड़े रहो ! तभी बी ऽऽऽ.प... ज़ोरदार हार्न बजा। कामिनी ने हार्न को पहचान लिया ,वही कस्टमर आया था।
कुछ देर बाद वह बच्चा सहित उसकी बाइक पर बैठ कर चली गई। उस दिन के बाद ,कामिनी दुबारा कभी अपने पुराने दलदल में लौट कर नहीं आयी।