टाॅफी
टाॅफी
“माँ..उठो..न...।” सुमी ने चिल्लाते हुए कहा।
“अरे...धीरे से बोल, सब सोये हैं, जग जायेंगे ।”
“ मेरे दाँत में बहुत दर्द हो रहा है... हूं हूं !” सुमी जोर से रोने लगी।
“सुमी..तुम हल्ला करोगी तो मैं उस कमरे में चला जाऊँगा।” बेड पर लेटे पिता ने तमतमाकर कहा ।
“माँ..देखो, मुझे दर्द हो रहा है और पापा डांट रहें हैं!“
“उनकी यह आदत पुरानी है, जब कोई मुसीबत आती है तो तब गुस्साने लगते हैं।”
“ विमला, भाषण मत दो, पहले दराज खोलकर देखो, कोई दर्द की दवा है, तो सुमी को तुरंत खिलाओ ।” पति का सख़्त निर्देश था ।
“जी, अभी देखती हूँ, थोड़ा आप भी मदद कीजिये । टोर्च लेकर सुमी के दाँत को देखिये, मसूड़े में जख्म है ,या सूजा हुआ है। मैं दवा और पानी लाती हूँ ।”
"सुमी, मैं बोल रही थी न, चिल्लाओ मत । देखो, दादी...भी उठ कर आ गई।” विमला ने तमताते हुए कहा ।
“दादी ,दाँत में बहुत दर्द हो रहा है ।” सुमी दादी से लिपट गई।
“मैंने सब सुन लिया है। जल्दी से आ करो ... मसूड़े के पास थोड़ी देर इसे हाथ से दबा कर रखो, जरुर आराम मिलेगा ।” लौंग के तेल से भींगा रुई का फाहा सुमी के मसूड़े में लगाते हुए दादी ने कहा।
"आजकल के बच्चों को क्या कहूँ ! केला, नारंगी, सेब खाना ही नहीं चाहते हैं, दिन भर टॉफी चबाते रहते हैं । नाते-रिश्तेदार भी वैसे ही हैं... जब-तब टॉफी का रंग-बिरंगा पैकेट लेकर पहुँच जाते हैं ! बच्चों के लिए कोई दूसरी चीज भी ला सकते हैं न! ” दादी सुमी के सिरहाने के पास बैठते हुए भुनभुनायी । ” सुमी की आँखें झपकने लगीं थीं।