चूल्हा
चूल्हा
जैसे ही सबेरे न्यूज़पेपर पर नजर गई, ‘फ्रेंडशिप डे’ के आलेख से पूरा पेज रंगा दिखा। मेरे मन में खलबली मच गई।
"बुढ़ापे की ओर कदम बढने के बाद भी अवसर को निभाने का उत्साह अभी मुझमें जिंदा है| मन ही मन मैं अपने ऊपर खुश होने लगी। ठीक है, अभी सबेरे-सबेरे सभी से बातें करती हूँ।" मैं बुदबुदाई।
बड़े होने पर बच्चे भी अच्छे दोस्त बन जाते हैं। यह सोच, सबसे प्रिय दोस्त बेटी को मैं फोन करने लगी, कल उसके घर बहुत मेहमान आये होंगे... याद आते ही अंगुलि खुद-बखुद लाल निशान पर चला गया। फिर, बारी आई बोर्डिंग में रह रहे बेटे की, उसको नम्बर लगाया, घंटी बज रही है...पर, फोन नहीं उठ रहा है? जरूर सोया होगा ! आजकल के बच्चे, उफफफ ! कोई रूटीन ही नहीं !
अब किसी को फोन करके अपना दिन खराब नहीं करना है , पतिदेव को जगाती हूँ।
“उठिए जी ...सुप्रभातम्।”
“गजब , मेरी सूरजमुखी आज चंद्रमुखी कैसे बन गई !” पति ने एक आँख तिरछी कर ,ऊंघते हुए मेरी तरफ देखकर कहा।
“ धत्त , इस उम्र में भी आप .. अच्छा मजाक कर लेते हैं।
"उठिए ,जल्दी से फ्रेश हो जाइए, चाय बना कर लाती हूँ।
“ वाह ! आज सूरज में शीतलता !” इतना कहते हुए पति बाथरूम की ओर बढ़ गये।
मैं चाय के साॅसपेन में चायपत्ती डाल ही रही थी..कि कहीं से आवाज आई , “बत्तीस साल से देखते-देखते तुमसे प्यार हो गया है और एक तुम... जो मेरा कुछ परवाह ही नहीं करती ! काम खत्म होते ही लाइट बंदकर, निर्मोही की तरह सीधे अपने कमरे में चली जाती हो। मैं, अकेला यहाँ ... कचड़े और झूठे बर्तन के साथ अँधेरे में तुम्हारा इन्तजार करते रहता हूँ !”
“ अरे... कौन हो तुम ? बत्तीस साल से पति भी मेरा चेहरा देख-देख कर ऊब गये ! बच्चों को भी मुझमें खामियां नजर आने लगी और तुम्हारा प्यार परवान चढ़ गया ! वाह !” मैंने तमतमाते हुए पूछा।
“सच कहता हूँ, तुम मुझे पहले से भी अधिक सुघड़ लगने लगी हो। मुझसे जितना अधिक पिरेम करोगी .. घर के बाकी लोग भी तुमसे उतना ही अधिक पियार करेंगे।”
“ अरे...आज फ्रेंडशिप-डे है.. ‘एप्रिल-फूल’ नहीं....समझे ! अभी देखती हूँ कौन पागल जैसी बातें कर रहा है ? ”मैं बड़बड़ाते हुए रेक पर रखे कप को उतार ही रही थी कि...
तभी साॉसपेन पर नजर गई,चाय में एक तेज उबाल आया.... फक्क से बर्नर बुझने के साथ एक आवाज फिर से किचन में गूँज उठी , “मैडम मुझे पहचाना नहीं ? मैं आपका ख़ास दोस्त ‘चूल्हा’।”