रेलगाड़ी और भरोसा
रेलगाड़ी और भरोसा


यूँ तो आप लोगों को अमूमन ही कहते सुनेंगे कि भारतीय रेल का कोई भरोसा नहीं है, आप बैठ जाईये ये पहुंचेगी कब, वो ऊपर वाला ही जाने।
लेकिन आपने कभी सोचा है कि जिस पर आप रत्ती भर भी भरोसा नही करते वो आपको भरोसा करना सिखाती है,
अब आप पूछेंगे वो कैसे ?
तो जनाब आप जैसे ही रेलगाड़ी में सवार होते हैं आपके साथ भरोसा भी सवार हो जाता है।
छूटती रेलगाड़ी के डिब्बे में सवार होने के लिए मदद को हाथ बढ़ाता और उसे थामता एक अजनबी हाथ सिर्फ इसी भरोसे से वो उसे सुरक्षित खींचने के लिए है, एक पल भी उस वक़्त ये ख्याल नही आता कि वो छोड़ भी सकता है,
लीजिये अब आप चढ़ गए और बैठ भी गए, लेकिन रुकिए आपको याद आया कि पानी तो लिया ही नहीं !!!
भाईसाहब, ज़रा सामान देखेंगे मैं बस पानी लेकर आया,
किस भरोसे पर साहब, आप उसे जानते भी नही, अभी तो मिले हैं आप, उस अजनबी से, लेकिन नही,
आपने उसपर भरोसा कर अपना कीमती सामान निगरानी में छोड़ दिया, और उस अजनबी ने भी उतनी ही मुस्तैदी से रखवाली भी की, ये परसपर भरोसा आया कहाँ से, जी ये वही है, जो आपके साथ चढ़ा था जब आप चढ़े।
सफर थोड़ा और आगे बढ़ा और परिचय हुआ, एक दूसरे के साथ ही सिलसिला शुरू हुआ एक दूसरे के गन्तव्य से जान पहचान निकालने का,
और अगर वो नही तो,
फिर साहब नौकरी या बिज़नेस तो है ही कहीं न कहीं से तार जोड़ने के लिए और एक बार कहीं बारीक़ सा भी तार जुड़ गया तो फिर क्या नम्बरों का आदान प्रदान तो लाज़िमी है।
लेकिन किस्सा यही खत्म होता तो क्या बात थी,
आपकी आपसी गुफ़्तुगू में एक तीसरा या चौथा भी दिलचस्पी ले रहा होता है और धीमें से, वो कोई एक सिरा पकड़कर आपकी बातचीत का हिस्सा बन जाता है, और फिर शुरू होता है किस्से कहानियों , हंसी ठहाको का दौर और उनमें शरीक होने की होड़, थोड़ी ही देर में जो भी नया चढ़ता है उसे आप लोगों को देखकर लगता है कि यहां तो बरसों का याराना है, और फिर वो भी वही सब करता है जो आपने किया था, पलभर में वो भी मजलिस का हिस्सा हो जाता है और भरोसे की नींव में एक ईंट उसकी भी लग जाती है।
सफर में कितने ही रिश्ते बन जाते हैं , शादियों के लिए मुलाक़ातें तय होती हैं, एक बर्थ से दूसरी बर्थ पर नज़रें चार होती हैं और सफर खत्म होते होते फिर मिलने के इरादे और सात जन्मों के वादे।
कितना कुछ हो जाता है, एक रेलगाड़ी जिस पर समय को लेकर कोई भरोसा नहीं करता वो रेलगाड़ी भरोसे का एक पूरा दरख़्त खड़ा कर जाती है महज़ कुछ घंटों के सफर में।
वो कहते हैं कि
“कौन कहता है कि दुनिया में भरोसा अब कहीं नही है
किसी रोज़ रेल से सफर कीजिये, भरोसा घड़ी भर में हर कहीं है।