Alok Singh

Inspirational

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Alok Singh

Inspirational

कमियाँ

कमियाँ

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इस दुनिया में ऐसा एक भी शख़्स नहीं होगा जिसमें कोई भी कमी न हो, मुक़म्मल इंसान मिलना नामुमकिन है।

कमी किसी के उच्चारण, रंग, शारिरिक, ज्ञान, मानसिक या चलने का उठने बैठने, बात करने का ढंग, कुछ भी हो सकती है, और कालांतर से घर के सदस्य हों या यार दोस्त, एक दूसरे की इन्ही कमियों को लेकर एक दूसरे का उपहास उड़ाते रहते हैं, बिना ये सोचे कि उस शख्स पे क्या बीत रही है या उसके आत्मविश्वास पे क्या असर पड़ रहा है।

मुझे याद है, बचपन से मैं "र" अक्षर का उच्चारण सही से नहीं कर पाता हूँ, मेरी इसी कमी को लेकर मेरे रिश्तेदारों ने नामालूम कितनी दफा मुझे घेरकर सार्वजनिक रूप से ऐसे गीत या शब्द बोलने को कहा जाता था जिसमें "र" अक्षर पे ज़ोर देने होता था और वो मेरे मुँह से "व" निकलता था, बस यही सबके लिए एक तफरीह की वजह और मैं उपहास का पात्र। इस उपहास ने मेरे आत्मविश्वास को इतना आहत किया कि अच्छा गाने के बावजूद मैंने कभी गायन को अपना लक्ष्य नहीं चुना, कभी कभी क्या हमेशा से ही जब भी कभी यार दोस्त किसी महफ़िल में गीत की सिफारिश करते थे तो मैं असमंजस में पड़ जाता था और फिर वो गीत चुनता था जिसमें "र" कम से कम आये।

फिर जब नौकरी में आया तो व्यस्तता और लापरवाही के कारण मेरा वज़न बढ़ गया और मैं अत्यधिक मोटा और बेडौल हो गया, अब मेरे उपहास की एक वजह मिल गयी मेरे आसपास के लोगों को।

चूँकि मैं ज़िंदगी को लेकर हमेशा सकारात्मक रहा हूँ तो मैंने वक़्त के साथ इसे नजरअंदाज करना सीख लिया।

मैंने लिखना शुरू किया, नतीजा ये हुआ कि देखते ही देखते 3 सालों में मेरी कविताओं की चार पुस्तकें प्रकाशित हो गई।

फिर मैंने डरते डरते अपनी कविताओं को अपने स्वर में पढ़ना शुरू किया और उसे अपनी पत्नी सहित कुछ नज़दीकी दोस्तों को भेजा, उन्होंने मेरा हौंसला बढ़ाया।

फिर दादा (आशीष विद्यार्थी) से मुलाक़ात हुई और उन्होंने और प्रोत्साहित किया कि मुझे ये जारी रखना चाहिए, जो अब भी जारी है, इसने न सिर्फ़ मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया अपितु मेरे "र" के उच्चारण को भी सुधारा।

लेकिन, एक बात बताऊँ उपहास का कारण बनते बनते कब मैं उन जैसा हो गया पता नहीं चला, मैं भी अपने नज़दीकी लोगों का मज़ाक बनाने लगा, कभी अपने को उनसे गोरा बताके, कभी अंग्रेज़ी के उच्चारण या फिर किसी और चीज़ को लेकर।

कल मुझे मेरे अभिन्न मित्र ने इसका एहसास करवाया की मेरे इस कृत्य वो कितना आहत हुआ, मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उन जैसा हो गया, शायद ये मेरी ही सालों की कुंठा थी जिसने मुझे ये बना दिया।

मैं सार्वजनिक रूप से अपने उस अभिन्न मित्र से माफ़ी माँगता हूँ और ये वादा करता हूँ कि अपनी इस बुराई पे पूर्णविराम लगाता हूँ, और भरसक प्रयास करूंगा कि भविष्य में ये दोबारा न हो।

ये एक कमी और थी मुझमें और में वही सब कर रहा था जिसका मैं शिकार हुआ और आहत हुआ, एक बार फिर से तहे दिल से माफ़ी उन सबसे भी जिनका कभी मैंने जाने-अनजाने में उपहास बनाया हो।

अब आप मुझमें पहले और बेहतर इंसान पाएंगे।

लेकिन अंत में एक बात कहना चाहूंगा कि कभी कभी हम अपनो की त्रुटियों को को सुधारने के लिए अगर कुछ कहते हैं तो सिर्फ इसलिए कि वो सार्वजनिक रूप से किसी उपहास का कारण न बनें, ये कोशिश सिर्फ उनकी बेहतरी के लिए होती है, हाँ ये आवश्यक है कि ये त्रुटि सुधार की कोशिश सार्वजनिक रूप से न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखें।

आशा करता हूँ कि आप अपने इस मित्र, भाई, पति, पिता, पुत्र, सहयोगी को ख़ुद को सुधारने का एक अवसर अवश्य देंगे।

ख़ुश रहिये आबाद रहिये !


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