Alok Singh

Abstract

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Alok Singh

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बातें

बातें

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बातें भी कमाल होती हैं, कभी यादें ओढ़े आती हैं तो कभी किस्सों की दुशाला ओढ़े गुलाबी सी ठंड में मखमली गर्माहट दे जाती हैं।

बातें, क्या हैं ये बातें, वो जो यूँ ही बैठे बैठे बस कह दी जाती हैं या फिर वो खास लम्हें जो हौले से गुदगुदाने आ जाते हैं जब तन्हाई घेरने चली आती है,

या फिर बस बारहां यूँ ही कुछ नहीं ।

बस ख़ामोश बातें वो बातें जिसमें थोड़े से तुम हो और कहीं चुपचाप सा मैं, 

बीते लम्हों की पोटली से रफ़्ता रफ़्ता गिरती बातें और फिर उन्हीं बातों के ताने बाने, फिर उसी ताने बाने में बुनती एक कहानी मोहब्बत की, एहसासों की और बस एक रूहानी सा रिश्ता जो वजूद को कुरेदता है बार बार कि किसी रोज़ तो फिर से कोई बात निकलेगी और उस बात से वो सब बातें जिनसे मरासिम है तेरा और मेरा।

बातें सिर्फ बातें होती है किसी अल्हड़ सी लड़की की तरह जो सिर्फ जीना जानती हैं, या फिर महकते ख़ामोश लमहे को तब तक, जब तक बातों के अंदर बातें नहीं तलाशी जातीं, वजहों को नहीं ढूंढा जाता।

बातें, टूट जाती हैं कहीं छूट जाती हैं जब “मैं” किसी घुसपैठिये की तरह अपना घर नहीं बना लेता है और हम कहीं न कहीं फासलों के दरमियाँ उसे बैठ जाने देते हैं, और तब बातें सिर्फ बातें रह जाती हैं और बातों से रूह चुपचाप कब शिक़वे शिकायतों में गुम हो जाती है अहसास नहीं होता।

बातें, बातों में न उलझाई जाएं और सिर्फ बहने दीं जाएं पहाड़ से उतरती उस नदी की तरह जिसका अपना किरदार अपना अंदाज़ है वो निश्छल और बेपरवाह है, जो सिर्फ बहना जानती है अपनी मंज़िल से अनजान किसी खुशनुमा लम्हें की मानिंद।

क्योंकि बातें तो सिर्फ बातें होती हैं…

                                              


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