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Alok Singh

Children Stories

3  

Alok Singh

Children Stories

वो जो हमने जीया वो बचपन कहाँ

वो जो हमने जीया वो बचपन कहाँ

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दो दिन से हो रही मूसलाधार बारिश लेकिन फिर भी कमी सी थी,

हमारे वक़्त में ये नही थी, पर ये कमी कौनसी थी???

ये कमी थी कागज़ की कश्तियों की, दो दिन की बेइंतेहा बारिश और एक भी कश्ती नहीं क्यों?? कौन जिम्मेदार है इसका ? कभी सोचा है !!हम हैं ज़िम्मेदार इस सूनेपन के,

बच्चों को स्टेटस के नाम पर साढ़े सात इंच की तख्ती में उलझा दिया , वहां से फुरसत मिली तो कंप्यूटर में और ग़र वहां से बच गए तो टेलिविज़न तो है ही।आज हम दोस्तों के साथ बैठते हैं और कहते हैं हमारे बच्चों ने हमारा बचपन नही जिया, उनका बचपन कहीं खो गया है ,लेकिन कहाँ, सिर्फ अफसोस करने से ही सब वापस आता तो क्या बात थी…

ऐसा नही की अब ये हो नही सकता बस कुछ बचपन आज़ाद छोड़ना होगा हमें

भीगने दीजिये बारिश में बच्चों को, कुछ बीमार नही होंगे वो आप हैं न फिर, उसके बाद देखिये कश्तियाँ भी दौड़ेंगी और मस्तियां भीचढ़ने दीजिये पेड़ों पर, आप नीचे हैं ना संभालने को, लेकिन वो ऊंचाइयों छूने की चाहत जो जागेगी वो बेमिसाल होगी और साथ ही उस ऊंचाईयों पर संभलने हुनर आ ही जायेगा, जो आगे कामयाब होने पर भी पैर जमीन पर रखेगा।

खेलने दीजिये मोहल्ले के हर तबके के बच्चों के साथ तरबियत आपकी है न साथ फिर, लेकिन चीज़ें, खुशी, हार जीत सब बांटना सीख जाऐगा वो , साथ ही दोस्ती पैसा देखकर न करेगा न निभाएगा, सिर्फ दोस्त चुनेगा सच्चा दोस्त।

लोटने दीजिये उसे ज़मीन पर , क्या होगा कपड़े ही मैले होंगे न वाशिंग मशीन है धुल जाएंगे लेकिन अपनी मिट्टी से जो मोहब्बत सीखेगा वो उसे घर नही भूलने देगी, सौंधी सी महक जो ज़ेहन में है वो उसे जोड़े रखेगी दुनिया के किसी भी कोने में।

लड़ने दीजिये उसे दोस्तों से या मोहल्ले में भी कभी सब संभाल लेंगे आप , लेकिन अपने स्वाभिमान और सच के लिये जो वो लड़ना सीखेगा वो ज़िन्दगी उसे एक बेहतर इंसान बनायेगा।

मांगने दीजिये उसे खिलौने और कपड़े और साथ ही उसके लिए इंतज़ार भी , जोड़िए उसे उसकी छोटी छोटी उपलब्धियों से, मोल समझने लगेगा वो अपनी मेहनत का और इज़्ज़त करेगा अपनी कमाई चीजों की।

डाँट भी दो उसे उसकी गलतियों पर फिर वो चाहे छोटी हो या बड़ी, दुबारा करने से बचेगा वो।

निकालो बच्चों को अपने डर के साये से बहुत हिम्मत है उनके बचपन में, वही जो तुम्हारे बचपन में भी थी, फिर देखो तुम अपने ही बचपन को दुबारा जियोगे उनके साथ साथ , और बीते कल की तस्वीरें फेसबुक, व्हाट्सएप पर देख अफसोस भी न करोगे, 

तुम बस माहौल बेहतर बनाओ उसे क़ायम ये खुद रखेंगे ।एक ख़याल था , एक टीस उठती थी नित बचपन के संदेश पढ़ के और ग्लानि भी की क्या माहौल मिला था क्या बना दिया।

                               


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