Alok Singh

Inspirational

4.0  

Alok Singh

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डोर

डोर

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बंगलोर में तक़रीबन 40 साल रहने के बाद हम बड़े भारी मन से अपने पैतृक घर लखनऊ लौट आये थे, ये निर्णय हमारे लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था, वो शहर जहाँ हमने अपने परिवार को बनाया संवारा नौकरी की जहाँ हमारा एकलौता बेटा सारांश हुआ, बिट्टू ओह हाँ सारांश, उसे प्यार से हम बिट्टू बुलाते थे वही पढ़ा लिखा और फिर नौकरी भी वहीं मिल गयी उसे, सबकुछ जैसे किसी शानदार कहानी की तरह अच्छा चल रहा था।

ख़ैर, अब हक़ीक़त ये थी हम अब लखनऊ में थे और बैंगलोर को किसी बुरे सपने की तरह बस भूल जाना चाहते थे।

उम्र के साठ सावन पार करने के बाद जब आप सेवा निवृत्त हो जाते हैं तो वक़्त जैसे काटने को दौड़ता है और उसकी सुइयों को मानो कोई पकड़े हो और आगे बढ़ने से रोक रहा हो, वो बीतता ही नहीं।

हमारे घर के पास ही लोहिया पार्क है वहाँ सुबह सुबह आस पास के इलाक़ों से काफी लोग अकेले, दोस्तों और परिवार के सदस्यों के घूमने आते हैं, हमने भी तय किया कि हम भी जाएंगे, इस तरह समय भी कट जायेगा और मन भी थोड़ा उदासी से दूर रहेगा।

तो फिर मैंने और मीरा(मेरी पत्नी) ने तय किया कि सुबह 6 बजे लोहिया पार्क में घूमने जायेंगे,

और अगले दिन हम घूमने गए और वहां की सदस्यता ले ली, अब हम रोज़ सुबह 6 बजे से 9 बजे तक पार्क जाने लगे, बड़ा अच्छा लगता था नये बच्चों को सेहत के प्रति इतना सजग देखकर।

वो भी रोज़ की तरह एक दिन था, मैं और मीरा दोनों पार्क में एक बेंच पर बैठे बात कर रहे थे कि तभी एक करीब 6 साल का एक प्यारा सा बच्चा दौड़कर आया और मीरा के गले लग गया, मीरा भी यूँ अचानक से उस बच्चे के इस बर्ताव से सकपका गई लेकिन फिर संभलते हुए उसने भी बच्चे को दुलारा, तभी उस बच्चे के माँ बाप दौड़ते हुए आये और बच्चे के बर्ताव के लिए माफी मांगने लगे, ख़ैर वो अपने बच्चे को लेकर आगे बढ़ गये और हम भी अपनी बातचीत में व्यस्त हो गये।

जब वापस घर आये तो मीरा ने मुझसे कहा कि "आलोक तुमने देखा न वो बच्चा कैसे आ कर मुझसे लिपट गया था, एक बार को तो ऐसा लगा कि जैसे अपना छोटा सा बिट्टू हो"।

ख़ैर हम रोज़ की ही तरह लोहिया  पार्क गए घूमने वही अपने टाइम पर, कुछ देर के बाद देखा कि वही बच्चा दौड़ता हुआ आया और हम दोनों के बीच में बेंच पर बैठ गया, और फिर जैसे ही उसके माँ बाप आये वो एक प्यारी सी मुस्कान देकर उनके साथ आगे बढ़ गया।

अब ये सिलसिला रोज़ सुबह का हो गया वो आता हम लोगों से लड़ियाता और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाता, हमें भी अब उसका इंतज़ार रहता।

एक बार लगभग दो तीन दिन न वो बच्चा दिख न उसके माँ बाप, हमें भी चिंता हुई लेकिन पूछते भी तो किससे और कैसे क्योंकि न तो हमें बच्चे का न ही उसके माँ बाप का नाम मालूम था।

लेकिन शुक्र है कि शनिवार अचानक से वो बच्चा पीछे से आया और मीरा की आँखें अपने छोटे से हाथों से बंद कर के पूछने लगा कि बताओ कौन है, साथ ही अपनी बदमाश आँखों से मुझे विंक कर दिया। मीरा ने उसे पहचान लिया और अपनी गोद में बैठाकर बातें करने लगी और उसका नाम पूछा ही था कि उसके पिता ने कहा ईशु नाम है इस बदमाश का।

मैंने दोनों को बैठने का इशारा किया और नाम पूछा तो उन्होंने बताया कि पिता का का नाम अमित और माँ का नाम ईशा है।

आज जब घर लौट रहा था तो मैं सोच रहा था कि एक बात तो अच्छी हुई कि आज तीनों के नाम पता चल गये, लेकिन एक बात मुझे लगातार विस्मित कर रही थी, 

मैंने मीरा से पूछा:

"मीरा पार्क में हमारे जैसे और भी तो बुज़ुर्ग दंपति बैठे थे तो फिर ईशु सिर्फ तुमसे या हमसे ही क्यों इतना दुलार दिखाता है, क्या वजह हो सकती है?

मीरा ने कहा:

तुम तो रहने ही दो हर बात को इतना क्यों सोचते हो अरे बाबा हम ईशु को अच्छे लगते होंगे, बस अब ज़्यादा मत सोचो, ठीक है!


लेकिन मेरे मन में अभी भी सवाल घुमड़ रहे थे और मुझे इस बात का जवाब चाहिए था, मैंने एक फिर मीरा की तरफ देखा और पूछा

"मीरा मैं सोच रहा था कि क्यों न अमित और ईशा को ईशु के साथ संडे को डिनर पे बुलाया जाये!"

मीरा की तो जैसे मन की बात कह दी हो मैंने उसने फ़ौरन कहा 

"हाँ हाँ क्यों नहीं, मैं भी सोच रही थी कि तुमसे कहूँ"

बस फिर क्या था जब अगले दिन हम टहलने गए तो हमने उन्हें घर आने का न्योता दे दिया, पहले तो उन्होंने व्यस्तता के बहाना देकर टालना चाहा लेकिन फिर ईशु की ज़िद के आगे घुटने टेक दिए।

आज संडे था और मीरा ने सुबह ही एक लिस्ट थमा दी और कहा कि ये सब लेकर आ जाओ आज सबकुछ खास बनेगा, ईशु को क्या पसंद है ये मीरा ने फ़ोन पर ईशा से रात में ही पूछ लिया था।

मीरा के अपने प्लान थे, मैं उसे इतना खुश पहली बार देख रहा था लखनऊ शिफ्ट होने बाद वरना तो वो अपने में ही रहती थी।

मैं इस उधेड़बुन में था कि आज कारण कैसे जानू।


शाम लगभग साढ़े सात बजे अमित ईशा और ईशु घर आ गये, आते ही ईशा मीरा के साथ किचन में हाथ बंटाने लगी और  मैंने अपने और अमित के लिए एक ड्रिंक बना लिया, और बालकनी में बैठकर बात करने लगे।

मैंने पूछा 

"Amit if you don't mind can you share more about you, I mean your job, family background, about ishu n all

I hope you if  its ok with you!!"

Amit:

Arey no no uncle why should I mind after all you like my parents!

Uncle I work with TCS as data analyst and Isha also works with TCS in their HR department as assistant manager.

We are from Bangalore but recently shifted to lucknow for a project.

Uncle ishu is our only child, but पता है अंकल जबसे ईशु पैदा हुआ है तबसे हेल्थ वाइज कुछ न कुछ लगा ही रहा,

एक ही सिप में ड्रिंक खत्म करते हुए अमित भावुक हो गया और बोला

"ख़ैर छोड़िए अंकल मैं भी कहाँ पहली ही मुलाक़ात में आपको बोर करने लग गया" 


मैंने एक और ड्रिंक बनाते हुए कहा

"अरे नहीं अमित ऐसा नहीं है बेटा, तुम बेझिझक बोलो और वैसे भी अभी तो तुमने कहा था कि हम तुम्हारे माता पिता समान हैं, बोलो बेटे बोलो

हाँ तो तुम कुछ कह रहे थे ईशु के बारे में!!!"


अमित ने एक सिप लिया और आगे बोलना शुरू किया और बताया

अंकल पता है ever since ishu was born he was not in the best of his health

 उसकी सांस फूल जाती थी, वो ज़्यादा देर तक पैदल नहीं चल पाता था, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था, फिर मेरे एक दोस्त जो कि डॉक्टर है उसने कहा कि ईशु की  complete body check up karwa lete hain, we got every possible test done of ishu.

It was during one cardiac test it was diagnosed that ishu's  heart has a hole in it and it's weak also and with this heart he can live for more than another 5 years.

अंकल हमारी तो जैसे दुनिया वही रुक गयी और धड़कने जैसे थम गयीं हो।

अभी सोच ही रहे थे कि क्या करें कि रिपोर्ट के तीसरे दिन खेलते खेलते ईशु अचानक गिर पड़ा, ईशा ने मुझे फोन किया और ईशु को लेकर हॉस्पिटल भागी, हॉस्पिटल में जांच में पता चला कि ईशु को massive हार्ट अटैक आया है और उसका बचना मुश्किल है।

अंकल हमारी दुनिया हमारे आँखों के सामने बिखर रही थी और हम बस देख सकते थे कर कुछ नहीं सकते थे।

मैंने डॉक्टर को पूछा कोई तो रास्ता होगा तो डॉक्टर ने कहा एक रास्ता है और वो है हार्ट ट्रांसप्लांट, लेकिन इतनी जल्दी डोनर मिलना लगभग असंभव है, क्योंकि डोनर ढूंढना एक बात है और ऐसा डोनर ढूँढना जो ब्रेन डेड हो लेकिन उसका हार्ट काम कर रहा हो और उसके घरवाले हार्ट डोनेट करने के लिए तैयार हों ये बिलकुल किसी चमत्कार की उम्मीद करने जैसा हुआ,

लेकिन बाबा नीब करौली के आशीर्वाद से चमत्कार हुआ, अंकल पता है डॉक्टर ने आकर हमको बताया कल रात ही हॉस्पिटल में एक नौजवान का एक्सीडेंटल केस आया है और तमाम कोशिशों के बावजूद उसे होश में लाना नामुमकिन है डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड डिक्लेयर कर दिया है।

उस नौजवान के माँ बाप ने डॉक्टर को बताया कि their son has pledged to donate his body parts and to keep their son's pledge they want to donate whatever parts can be donated to the needy and can give recipient a new lease of life, that will be the true tribute to their son's soul.

Doctor again said but unfortunately we will not be able to disclose you the name of the donor and neither your details to them.

और इस तरह अंकल वो नौजवान जाते जाते हमारे ईशु को एक नई ज़िंदगी दे गया और हमें हमारी खुशियाँ,

अंकल काश उस नौजवान के माँ बाप मुझे मिल जाएं तो हम दोनों उनके इस जज़्बे के लिए ताउम्र उनके चरण धोकर पियें।

इस बार आलोक अपना पेग लेकर खड़े हुए आसमान निहारने लगे , उन्होंने अपने पेग को आसमान की तरफ उठाया और फिर एक सांस में पी गये, उनकी आँखों में आँसू थे, क्योंकि वो ईशु का उन दोनों के प्रति लगाव का कारण जान चुके थे।

अमित के कंधे पर हाथ रखकर उसे उठाया और गले लगा लिया।

ईशु अब उनके जीवन का हिस्सा था भले रोज़ थोड़ी देर के लिए ही सही।



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