Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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minni mishra

Abstract

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प्रकृति-नटी

प्रकृति-नटी

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" तुम यहाँ अकेले चबूतरे पर? घर में किसी ने कुछ कहा क्या ? बताओ माँ ? मैं अभी बाजार से तुम्हारे लिए सिल्क की साड़ी और वाकर लेकर आया हूँ। यह पुरानी सफ़ेद साड़ी और लाठी, तुम्हें शोभा नहीं देता। आज तुम्हारा जन्मदिन है,इसलिए घर में एक पार्टी रखी है। अपने फैक्ट्री के मित्रों को भी मैंने आमंत्रित किया है। केक, कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम,पिज्जा,चाउमीन आदि सारा कुछ का इंतजाम है। अब जल्दी से चलो।”

“ चल हट, मुझे पार्टी में नहीं जाना । तुम्हें लोगों को यही दिखाना है न कि मैं अपनी माँ से बहुत प्यार करता हूँ ?” 

" ओह! तुम बहुत जल्दी गुस्सा हो जाती हो ! अधिक गुस्सा ठीक नहीं होता । माँ, घर की छोटी-छोटी बातों का नजरअंदाज कर दिया करो । " इतना कहकर विज्ञान मुझे जबरदस्ती उठाने लगा।

"अरे रुको। मैं तभी चलूंगी जब तुम मेरी बातों को ध्यान से सुनोगे।”

“ अच्छा, बताओ जल्दी।” कहते हुए वह मेरे नजदीक चबूतरे पर बैठ गया।

“सुन ध्यान सेजब तेरा जन्म हुआ था, तो नामकरण के दिन, तुम्हारे नाना जी मुझसे बोले, ‘बेटी प्रकृति, मैं तुम्हारे बेटे का नाम 'विज्ञान' रखता हूँ । इसकी जन्मकुंडली मैंने पंडित जी से बनवायी है। उनका कहना है कि यह बहुत ही होनहार बालक है, भविष्य में बहुत नाम करेगा।’ 

इतना सुनते ही मैं ख़ुशी से झूम उठी । बहुत कष्ट से मैंने तूझे पाला, इस लायक बनाया । तेरे वास्ते कितनी रातें जागकर बितायी ! सब व्यर्थ! जवान होते ही तूने मेरा सुध लेना छोड़ दिया ! रेअभागा, जिस पत्तल में खाया, उसी में छेद कर दिया ! मुझे रंगीन वस्त्र बेहद पसंद था। लेकिन, सिर्फ तुम्हारे चलते मैं धूसर, रंगविहीन लिबास में लिपट गई !

 मेरे संगी-साथी उलाहना देते हैं। “तेरे बेटे ने सत्यानाश कर डाला ! उसकी महात्वाकांक्षा की भूख ने सारे जंगल कटवा कर अट्टालिकाएं खड़ी कर दीं। हरी-भरी बगिया को उसने देखते-देखते श्मशान बना डाला। पोलीथिन और प्लास्टिक की बोतलों के चलते सभी नदियों को मृत्यु के कगार पर धकेल दिया!”

जरा ऊपर देख, प्रदुषण के कारण नीला आसमान अब स्याह दिखने लगा है । सांस लेने में मुझे बेहद तकलीफ हो रही है| दम घुटता है मेरा, रात भर खांसते रहती हूँ । लेकिन, तू बेखबर अपने में मग्न रहता है !

 अपने को बड़ा ज्ञानी समझता है ना ? तो जान ले मैं भी कभी ‘प्रकृति-नटी’ के नाम से विख्यात थी ।रंगीन वस्त्र, हरी चूड़ियाँ और गजरा मुझे बेहद पसंद था। खुश रखने के लिए लोग समय-समय पर मेरी पूजा-अर्चना करते थे। प्रसन्नचित्त मैं उनलोगों के लिए नर्तकी बन थिरकती थी। पर आज, मेरी दुर्गति हो गई है ! मेरे आंगन में न कोयल की कूक सुनाई पड़ती, न मोर का नाचना और न ही चाँद-तारों की आँख मिचौली!

अरे किसका जन्मदिन मनाएगा तू ? इसी जिंदा लाश का !” मन की भड़ास निकालकर, लाठी के सहारे मैं उठने का प्रयत्न करने लगी । 

 तभी अकस्मात बिजली की कौंध से भूमंडल थर्रा उठा। सामने खड़े गगनचुम्बी इमारतों में जैसे भूचाल आ गया। दसों दिशाएँ गर्जनाएं करने लगी।

 विज्ञान, मुझसे लिपटकर बुदबुदाया, "माँप्रलय से मेरी रक्षा करो ! " 

मेरी आँखों के सामने उसका नन्हा बाल-स्वरूप तैर गया। मैंने कसकर उसे छाती से लगा लिया। वह शिशु की भांति चिपटकर फफकने लगा, “ तू जीवनदायनी है माँ तेरे बिना मर जाऊँगा !“


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