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Nisha Singh

Abstract

4.7  

Nisha Singh

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पंछी

पंछी

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चेप्टर -10 भाग-3

जितनी देर में समीर ने आफ़रीन से बात की उतनी देर में मैंने डायरी वापस बैग में छिपा दी ।

"हाय…’ आफ़रीन चंद मिनटों में आ पहुंची ।

आफ़रीन मेरे पास बैठ गई । पर ध्यान तो कहीं और था, आफ़रीन और समीर एक दूसरे को देख-देख के मुस्कुराये जा रहे थे ।

"शायद… हम यहाँ कुछ बातें करने के लिए आये हैं। "मैंने टोक दिया तो उनका मुस्कुराने का दौर खत्म हो गया । आफ़रीन के मुस्कुराते हुए चेहरे पर संजीदगी नज़र आने लगी ।

"क्या हुआ… अचानक इतनी सीरियस...?’ समीर ने आफ़रीन को टोकते हुए उसके हाथ पे अपना हाथ रख दिया । और दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगे ।

"तुम लोगों ने मुझे ये सीन दिखाने के लिए बुलाया है?"

"सॉरी यार…’ आफ़रीन ने अपना हाथ पीछे खींच लिया, "यार… थोड़ी प्रॉब्लम हो गई है…’ मेरी तरफ़ मुड़ते हुए उसने कहा ।

"हाँ… बता ना, क्या बात है? " "अरे यार क्या बताऊूँ… पापा ने मुझे परेशान कर रखा है ।

"क्यों क्या कह रहे थे?’ कहते हुए मैंने आफ़रीन और समीर दोनों की तरफ़ देखा, मुझे लगा कि शायद समीर को लेकर कोई प्रॉब्लम हुई है ।

"अरे नहीं… ऐसा कुछ नहीं है…’ आफ़रीन ने शायद मेरे मन की बात समझ ली थी ।

"तो फिर? " "प्रॉब्लम तो पापा ने क्रिएट कर रखी है । " "पापा ने? मतलब? " "अरे यार मेरे पीछे पड़ गए है कि लॉ करो… मुझे भी अपनी तरह वकील बनाना चाहते है । " "हम्म्… तो ये बात है… और तुम क्या चाहती हो? " "मुझे तो अभी और लिटरेचर पढ़ना है यार मुझे लिटरेचर में ही आगे बढ़ना है पर पापा माने तब न… " "तो पापा को इससे क्या प्रॉब्लम है… ये तो और अच्छी बात है… " "उन्हें अच्छा नहीं लगता है, उन

्हें तो लिटरेचर टाइम पास करने वाला सब्जेक्ट लगता है । "

आफ़रीन के चेहरे पर परेशानी साफ़ दिखाई दे रही थी । बार-बार सर पकड़ लेती थी कभी दोनों हाथों को रब करती थी साफ़ पता चल रहा था कि "शी इस इन डाइलेमा’ ।

"तो बता… इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? मुझे तो कुछ समझ आ नहीं रहा जिससे मैं तेरी हेल्प कर सकूं । " "मुझे समझ नहीं आ रहा यार कि मैं क्या करूं …लॉ पढूं या लिटरेचर… बहुत परेशान हूँ । " "फिर तो तू पागल है " "क्यों? " "इसमें इतना सोचने वाली बात कौनसी है… " "मेरे फ्यूचर की बात है यार, सोचना तो बनता है… " "हाँ-हाँ ठीक है… चल ये बता कि तुझे इन दोनों में से किस सब्जेक्ट में इंटरेस्ट है? " "अभी तो बताया तुझे… लिटरेचर में, लॉ तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं… " "बस हो गया क्लियर... पढ़ो लिटरेचर इतना परेशान होने की तो कोई बात ही नहीं है । " "बात तो तेरी ठीक है यार पर मुझे थोड़ा डर लगता है... "

"डर… कैसा डर? " "अरे यार… तुझे नहीं पता… अगर मैं लिटरेचर पढ़ के सक्सेसफुल नहीं हुई तो पापा क्या कहेंगे…क्या कहेंगे, क्या, कहना चाहिए कि क्या-क्या कहेंगे… " "कुछ नहीं कहेंगे… हमें जो काम अच्छा लगता है हमें वही करना चाहिए क्यों की जिस काम में हमें इंटरेस्ट होता है हम उस काम को अच्छे से कर पाते है और जब काम अच्छे से करेंगे तो सक्सेस तो मिलेगी ही…’ कहते हुए मेरे दिमाग में पिया का चेहरा घूम गया । एक साल पहले उसने भी तो मुझे ऐसे ही समझाया था । उसकी समझाइश आज काम आ गई ।

"आर यू श्योर? " "हाँ बिलकुल "मेरी बात शायद आफ़रीन की समझ में आ गई थी । उसने एक गहरी सांस ली और मेरी तरफ़ देखा ।

"तू ठीक कह रही है… मैं अब लिटरेचर ही पढूंगी । "


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