Nisha Singh

Drama

4.3  

Nisha Singh

Drama

पंछी

पंछी

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292


 चेप्टर -10 भाग-2

‘थोड़ा रुक जा यार, आफ़रीन को कुछ काम होगा तू ऐसे चली जाएगी तो उसे अच्छा नहीं लगेगा।’ मैंने अंशिका को समझाते हुए कहा पर वो कब समझने वाली थी।

‘नहीं यार तू समझ, मैं नहीं रुक सकती मेरी मैडम बड़ी खड़ूस है, कभी फुर्सत में बताऊंगी उसके बारे में, अभी जाने दे प्लीज़’

‘ठीक है, चली जा… उससे मैं मिल लूंगी।’

‘तो ठीक है मैं चलती हूँ… बाय’ कहते हुए अंशिका ने अपना बैग उठाया, इस चक्कर में मेरा बैग पलट के गिर गया और कुछ बुक्स बाहर आ गईं। इससे पहले कि मैं अपनी सारी बुक्स उठा पाती…

‘अरे ये क्या है…’ समीर ने मेरी बुक्स के बीच में रखी डायरी देख ली और उठा ली।

‘कुछ नहीं है …’ अपनी बुक्स को बैग में रखते हुए मैंने कहा और अपनी डायरी वापस लेने के लिए हाथ बढ़ाया पर समीर तो समीर है डायरी को हाथों में नचाने लगा। कभी इस हाथ में कभी उस हाथ में, मैं जब-जब डायरी लेने के लिए हाथ बढ़ाऊँ वो डायरी को एक हाथ से दूसरे हाथ में ले ले। मैंने डायरी छीनने की कोशिश आगे बढ़ाई तो उसने अब डायरी को मेरी पहुंच से ऊंचा कर दिया, मैं पहुंच नहीं पा रही थी, उसकी लम्बाई ज़्यादा है ना… थक कर कुरसी पर बैठ गई। मुझे पता था समीर ऐसे मानने वालों में से नहीं था।

‘यार प्लीज़ वापस दे दे… मेरी पर्सनल डायरी है…’

‘पर्सनल डायरी… ये क्या होता है?’

‘तू पागल है? पर्सनल डायरी नहीं जानता?’

‘जानता हूँ पर तुझे क्या ज़रूरत पर्सनल डायरी की? क्या लिखती है तू इसमें…’ कहते हुए समीर ने डायरी को नीचे किया और खोलने की कोशिश करने लगा। मैं भी मौके की तलाश में थी जैसे ही उसने डायरी खोलने की कोशिश की मैंने झट से छीन ली। जैसे ही मैंने डायरी उसके हाथ से छीनी, घूरने लगा वो मुझे…

‘बिल्ली कहीं की… झपट्टा मारती है।’

इससे पहले की मैं उसे जवाब दे पाती मेरा फ़ोन बजा। रोहित का फ़ोन था।

‘हेलो…’

‘घर नहीं जाना आज? बस खड़ी है, तुम आईं नहीं अभी तक…’


अब रोहित का बाहर के गेट पर खड़े होना बंद हो गया है। अब मुझे बस तक वाक करते हुए छोड़ देता है पर आज तो घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी मुझे।

‘नहीं आज मैं दूसरी वाली बस से जाऊंगी… आफ़रीन से मिलना है, कुछ काम है उसे…’

‘ठीक है… एक बात और बतानी थी मुझे…’

‘हाँ… बोलो…’

‘मुझे तीन दिन के लिए बाहर जाना है तो अब मैं कॉलेज तीन बाद आऊंगा…’

‘तीन दिन बाद... असाइनमेंट बना नहीं है, चार दिन बाद लास्ट डेट है और तुम्हें घूमने जाना है, पागल तो नहीं हो गए हो…’

‘अरे… वो तो तुम बना दोगी ना…’

‘कभी नहीं… तुम्हें जहाँ जाना है वहां जाओ मुझसे कोई उम्मीद मत करना, और बात करने की भी ज़रूरत नहीं है…’

‘अरे सुनो तो…’

पर मैंने कुछ नहीं सुना, फ़ोन काट कर अपनी डायरी को सीने से लगा कर ख्यालों में कब हो गई पता ही नहीं चला। ऐसा लग रहा था कि जैसे कल की ही बात हो। ये डायरी कोई मामूली डायरी नहीं है मेरे लिए, जब 10th क्लास में ए+ मिला था तब गिफ्ट में मिली थी। पापा ने दी थी। बहुत खुश थी मैं डायरी देखकर, इतनी सुंदर डायरी जो थी। नीले रंग की डायरी जिसपर फूलों की खूबसूरत डिज़ाइन भी ऐसे थी जैसे आसमान में सितारे चमक बिखेरते है। तब काम कुछ नहीं था डायरी पर जब ये समझ आया कि डायरी में हम अपनी यादों को कैद कर के रख सकते है तब से लिखना शुरू कर दिया। अपनी ज़िन्दगी के हसीन और ग़मगीन हर लम्हे को कैद करने लगी। हमेशा छिपा के रखती हूँ ये आज तक किसी ने नहीं पढ़ी। जहां जाती हूँ साथ लेकर जाती हूँ।

‘कहाँ खो गई…’ समीर ने कहते हुए चुटकी बजाकर मुझे जैसे नींद से उठाया।

‘कहीं नहीं… आफ़रीन नहीं आई अभी तक…’

‘आ रही होगी... फ़ोन करता हूँ, क्लास खत्म होने का तो टाइम हो गया है।’


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