Nisha Singh

Others

3.8  

Nisha Singh

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पंछी चेप्टर -11 भाग-3

पंछी चेप्टर -11 भाग-3

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"हेलो…" रूखी सी आवाज़ में मैंने कहा।

"क्या यार… क्या प्रॉब्लम है तुम्हारी ?"

रोहित का यही लापरवाही भरा रवैया मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। पर उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, मुझमे 50 कमियां दिखाई देती है पर खुद की कोई गलती कभी नज़र नहीं आती।

"क्या हुआ बोलो तो…"

"कुछ नहीं हुआ, तुम बताओ फ़ोन कैसे किया…" मैं बात को जल्दी ख़त्म करना चाहती थी।

"फ़ोन कैसे किया… कब से कब से तुम्हे मैसेज किये जा रहा हूँ तुमने एक बार भी नहीं देखा तो फ़ोन करना पड़ा।"

"क्यों क्या हुआ… मैसेज क्यों किये थे?"

"अरे यार अब बस भी करो… ठीक है, वैसे गुस्सा मुझे होना चाहिए और तुम हो बैठी हो, क्या है ये…?’

"अपना काम खुद करना सीखो रोहित तुम जानते हो मेरा भी असाइनमेंट कम्पलीट नहीं था अब मैं पहले अपना काम करती या तुम्हारा… और क्यों करती तुम किसी प्रॉब्लम में होते तो बात अलग थी तुम्हारी हेल्प करती मैं पर तुम तो घूमने गए थे, हमेशा ही कहीं ना कहीं जाते रहते हो, मैं तुम्हारा काम कब तक करूँ…"

सारी नाराज़गी मैंने एक ही सांस में निकाल ली।

"अरे तो ठीक है न, आज तो तुमने मुझसे बिल्कुल भी बात नहीं की "

"जैसे तुमने की…"

"अरे छोड़ो ना ये सब अब, मेरा फ्रेंड़ पूछ रहा था कि तुमसे कब मिलवाऊंगा ?"

"कौन फ्रेंड़?"

"जो आज नया लड़का आया था ना, वो मेरा फ्रेंड़ है, जब क्लास के बाद तुम्हे ढूंढा कि तुम लोगों का इंट्रो करा दूँ पर तुम मिली ही नहीं…"

"मैं घर आ गई थी आज जल्दी, थोड़ी तबियत ठीक नहीं थी…"

"अच्छा… चलो कोई बात नहीं, कल कॉलेज में मिलते है…"

"ठीक है, बाय"

"अरे रुको तो, तुम्हे बड़ी जल्दी रहती है फ़ोन रखने की…"

"हाँ बोलो"

"कल कहीं घूमने चले?"

"नहीं, आई एम बिज़ी"

"ओहो, तुम तो हमेशा बिज़ी ही रहती हो ठीक है बाय…"

कहते हुए उसने फ़ोन रख दिया। मेरी भी चाय ख़त्म हो चुकी थी। मन किया थोड़ी देर रेस्ट कर लेती हूँ। अपने कमरे में जाकर लेट गई। आज कई दिनों बाद मन कर रहा था की कुछ लिख लूँ। पिछले कई महीनो से नहीं लिख पा रही हूँ, लगभग एक साल से। पहले लिखा करती थी, अब टाइम नहीं मिल पाता है। रोहित के साथ पूरा टाइम वेस्ट हो जाता है। टाइम वेस्ट ही है जब हम एक दूसरे को समझ नहीं पा रहे हैं। कभी व्हाट्सप्प, कभी फेसबुक तो कभी कॉल सारा टाइम लगभग इसी में चला जाता है। उठकर बैठी अपनी डायरी उठाई और लिखने बैठ गई। मन में कई ख्याल उमड़ रहे थे। पेज खोल रखा था डायरी का, पेन हाथ में था मेरे पर फिर भी लिख नहीं पा रही थी। मन में बार-बार एक ही ख्याल उमड़ रहा था की कहीं मैंने रोहित का हाथ थाम कर कोई गलती तो नहीं की। एक के बाद एक ख्याल दिमाग में आ रहे थे। रोहित से जब से दोस्ती हुई है तब से उसे समझने की कोशिश कर रही हूँ, समझ नहीं आता कि कैसा बंदा है लापरवाह, फ्यूचर की कोई परवाह नहीं, रिश्तों की कोई कदर नहीं ऐसे इंसान के साथ रिश्ते को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।

"अवनी… आज बेटा खाना खा ले…"

मम्मी की आवाज़ किचन से आई। मेरा मन नहीं था पापा के साथ बैठने का तो सोचा की अपने रूम में ही खाना खा लेती हूँ 

"आती हूँ…’ मैंने भी कमरे से आवाज़ दी।

अपनी पेन रखी, डायरी को बैग में छुपाया, लैपटॉप ओन कर लिया। टीवी देखते हुए खाते है हम सब पापा, मम्मी, राहुल और मैं । शाम का खाना साथ में ही होता है पर आि मेरा मन नहीं था। किचन में जाकर देखा तो मम्मी सर्व कर चुकी थी। मैंने अपनी थाली उठाई और जाने लगी।

"मैं आज अपने कमरे में ही खाउंगी आप लोग साथ में खा लो…"

खाना लेकर मैं कमरे में आ गई। इंटरनेट कनेक्ट करके सोचा की कोई फ़नी सा वीडियो लगा लेती हूँ। फनी से याद आ गई 3 इजियट्स मूवी तो वही ऑनलाइन देखने लगी। खाना खाते-खाते देखती जा रही थी। खाना ख़त्म कर लिया पर मन कर रहा थी की पूरी मूवी देख लूँ। लैपटॉप बेड पर रख लिया मूवी देखते-देखते ही कब सो गई पता ही नहीं चला।


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