Nisha Singh

Drama

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Nisha Singh

Drama

पंछी चैप्टर-11 भाग-2

पंछी चैप्टर-11 भाग-2

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'रोहित को जानता है ये ?' अंशिका ने मुझसे पूछा।

'मुझे क्या पता मैं क्या रोहित की पी.ए हूँ?'

'अरे तो चिढ़ क्यों रही है?'

'कहाँ चिढ़ रही हूँ?'

'तुम दोनों हमेशा झगड़ते ही रहते हो।'

क्लास का टाइम ख़त्म हो चुका था। हम दोनों क्लास से बाहर निकल आये। रोहित उस न्यू एडमिशन के साथ हमारे आगे आगे चल रहा था, मुझे फुल इग्नोर करता हुआ। थोड़ा बुरा लग रहा था मुझे पर कोई बात नहीं नाराज़ है तो बना रहे कोई नहीं मनाने वाने वाला।

आज मैं घर जल्दी जा रही थी, समीर को मैसेज कर के मना कर दिया था मैंने कि आज नहीं मिल रहे हैं बस अब घर पहुँचने की जल्दी थी मुझे। तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी पिछले 3-4 दिनों से लगातार फिजिक्स पढ़े जा रही थी तो तबियत तो गड़बड़ होनी ही थी। सोचते -सोचते मैं बस तक पहुँच चुकी थी। बस में चलते वक़्त मेरी नज़र रोहित पर पड़ गई, वो नील के साथ बाइक पर कहीं जा रहा था। नील उसके पीछे बैठा था मेरी तरफ़ बिना देखे रोहित चला गया। रास्ते भर मैंने अंशिका से कोई बात नहीं की बस वही बोलती रही और मैं सुनती रही, मुझे समझाया भी बीच-बीच में पर उसकी बातों का कोई ख़ास असर नहीं हो रहा था मुझ पर।

घर पहुँच कर डोर बेल बांयी तो देखा घर का दरवाज़ा खुला हुआ था। मैं अंदर गई तो माहोल ही कुछ अलग था पापा राहुल को कुछ समझाइश दे रहे थे। मुझे जो कुछ सुनाई दिया उसमे था कि पापा उसे IIT में जाने के फ़ायदे समझा रहे थे। मन तो हुआ की पापा से रुक कर पूछूं की जब मैंने आपसे पूछा था, कितना मन था मेरा IIT में पढ़ने का तब आपके ये विचार कहाँ गए थे पर न जाने क्या सोचकर मैं अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई। मन में बहुत बेचैनी थी, पर कहती तो किस से

कोई सुनने वाला नहीं था। आूँखों से आंसू छलक आये सच कहूँ तो दिल में दर्द सा हो रहा था।

'अवनी… बेटा, आ गई आज जल्दी कैसे? '

मम्मी मेरे कमरे में आयी, हाथ में मेरे कपड़े थे शायद छत से आयी होंगी क्योंकि जब मैं अंदर आयी तब वो घर में दिखाईं नहीं दी थी।

'कुछ नहीं, तबियत थोड़ी सी ठीक नहीं तो वापस आ गई।'

मम्मी ने मेरा माथा छूकर देखा थोड़ा गर्म था शायद थकान की वजह से…

'तुझे तो बुखार सा लग रहा है… एक काम कर मैं अदरक वाली चाय लाती हूँ तू नाश्ता कर के दवाई ले ले। अच्छा है कल तेरे कॉलेज की छुट्टी है, एक दिन आराम कर लेगी तो ठीक रहेगा' कहती हुई मम्मी मेरे कमरे से बाहर निकल गईं। मैं भी कपड़े चेंज कर के बाहर आ गई।

'क्या हुआ?' मम्मी ने पूछा

'कुछ नहीं… चाय बना दी तुमने?' धीमी सी आवाज़ में मैंने कहा।

'कोई बात है? उदास सी क्यों है?'

'नहीं कुछ नहीं… बस चाय और नमकीन दे दो टोस्ट नहीं लूंगी, मन नहीं है।'

अपनी चाय और नमकीन लेकर मैं छत पर चली गई। शाम के वक़्त अच्छी हवा चलने लगती है, घर में अंदर मन नहीं लग रहा था तो सोचा क्यों ना टहलते हुए चाय पी जाए। छत की मुंडेर पर नमकीन की प्लेट रख कर मैं टहलने लगी पता नहीं कैसे-कैसे ख्याल आ रहे थे दिमाग में,कभी तो पुरानी बातें याद करके मन दुखी हो जाता था,तो कभी रोहित का रवैया मुझे गुस्सा दिला देता था। एक अजीब सी चिड़चिड़ाहट ने घेर रखा था। अब तो बस कल का इंतज़ार था मुझे कि कब कल हो और पिया और अंशिका के साथ में अपनी बातें शेयर कर सकूं। मन में विचार चल ही रहे थे कि अचानक मेरा फ़ोन बजा रोहित

का फ़ोन था मन नहीं था फोन उठाने का बात करने का तो ध्यान नहीं दिया। बेल बज कर बंद हो गई। मैं छत की दूसरी तरफ़ टहलने लगी। थोड़ी ही देर बाद फिर बेल बजी। मैंने उठा कर देखा तो फिर से रोहित का फ़ोन आ रहा था। इस बार मैंने पिक कर लिया।


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